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Sunday, September 22, 2024
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NCP के विलेन अजित पवार!,हीरो बने शरद पवार? 

एनसीपी में फिलहाल अजित पवार विलेन बने हुए हैं। वहीं शरद पवार हीरो बन सकते थे, लेकिन उन्होंने पुराने ढर्रे पर चलकर कोई खास चमत्कार नहीं कर पाए।

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अगर किसी से पूछा जाए कि नीतीश कुमार और शरद पवार में क्या समानता है तो हर कोई एक ही उत्तर देगा कि दोनों नेता पलटी बहुत मारते है। दोनों नेता दूसरों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति करते हैं। दोनों नेता अपनी पार्टी से इतर नहीं सोच सकते हैं। जहां तक हो सके केवल अपनी पार्टी के नफा नुकसान के ही आकलन में लगे रहते हैं। आज दोनों नेता पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष को खड़ा करने की बात कर रहे हैं। इस बीच शरद पवार ने अपने इस्तीफे के ऐलान के साथ अपनी पार्टी में उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। लेकिन, क्या नीतीश कुमार भी अपने वजूद की परीक्षा के लिए शरद पवार के तरीके को अपनाएंगे ।

मेरा मानना है कि इसमें नीतीश कुमार फेल हो जाएंगे ? बहरहाल, महाराष्ट्र में पिछले चार दिनों से एनसीपी में जारी उठापटक का शुक्रवार को देर शाम पटाक्षेप हो गया। शरद पवार ने शुक्रवार को एनसीपी के अध्यक्ष पद नहीं छोड़ने का ऐलान कर दिया। यानी वे एनसीपी के अध्यक्ष पद पर बने रहेंगे।

हालांकि, शरद पवार द्वारा यू टर्न लिए जाने पर राजनीतिक जानकारों को हैरानी नहीं हुई। क्योंकि जानकार जानते थे कि शरद पवार बोलते कुछ और है, और करते कुछ और है। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि इससे एनसीपी को क्या फ़ायदा हुआ है। क्या पार्टी एकजुट हुई  है। क्या पार्टी संगठन मजबूत हुआ है। यही नहीं, सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या जो बगावत होने वाली थी अब वह नहीं होगी। क्या एनसीपी अब आगामी विधानसभा या लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीतेगी। यह तो इन चुनावों के होने के बाद ही पता चलेगा कि शरद पवार का यह पावर कितना कारगर साबित हुआ।

इससे इतर सवाल यह है कि शरद पवार सिर्फ एनसीपी में मजबूत हुए हैं। पार्टी की बगावत कुछ समय के लिए रुका है हमेशा के लिए नहीं। यह बात शरद पवार ने शुक्रवार को भी कहा जो पार्टी छोड़कर जाना चाहते हैं वे जा सकते हैं। शरद पवार भी जानते हैं कि हर किसी की अपनी अपनी महत्वकांक्षा होती है। तो क्यों न जाएं। बहरहाल यह मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि शरद पवार के लिए यह अच्छा मौक़ा था जिसे वे भुना सकते थे, इसके जरिये पार्टी में नई जान फूंक सकते थे। लेकिन उन्होंने वैसा नहीं किया जो अक्सर बीजेपी करती आई है। शरद पवार अध्यक्ष पद छोड़कर देश की अन्य राजनीतिक दलों के नजीर बन सकते थे। जिस पार्टी में लोग कुंडली मारकर बैठे हैं। शरद पवार अपने समर्थकों के बीच हीरो बन सकते थे। वे कह सकते थे कि अब वे पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए नए चेहरे चाहते हैं, अब नया नेतृत्व चाहते है, ताकि पार्टी का खोया गौरव वापस लाया जा सके। बता दें कि एनसीपी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीन लिया गया है। मै पार्टी का मार्गदर्शक  करता रहूंगा।

लेकिन शरद पवार ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कोई अलग से मापदंड नहीं बनाया बल्कि उसी पुराने ढर्रे पर चलते नजर आये जिसे उन्होंने खुद बनाया है। शरद पवार अपने फैसले पर अडिग होकर पलटी मारने वाले नेता की इमेज से दूर हो सकते थे। लेकिन उन्होंने अपने ऊपर लगे पलटी मार के टैग को चिपकाए रखा। मगर, शरद पवार ने अपने पावर का उपयोग पार्टी में ऊर्जा भरने के लिए नहीं किया,बल्कि अपने कार्यकर्ताओं के जोश को ठंडा कर दिया। शरद पवार के इस्तीफे के बाद से जिस तरह से उनके समर्थकों में जोश देखा गया वह अद्भुत था। लेकिन अब वह जोश में नहीं आ सकते।

अब सवाल यह है कि इसके क्या मायने हो सकते हैं. क्या इस पावर गेम के केंद्र बिंदु में अजित पवार थे। अगर अजित पवार थे तो क्या अब कभी भी अजित पवार बगावत नहीं करेंगे ? यह सवाल बार बार आने का मतलब है कि चाचा भतीजे का यह टकराव कब थमेगा। इसकी अपनी नियति है तो उसे कौन रोकेगा। दूसरा अगर अजित पवार सीएम बना चाहते हैं तो वह खुद पार्टी को मजबूत कर क्यों नहीं इस पद से पहुंचते हैं। वैसे अभी तक यही कहा जा रहा है कि शरद पवार का ड्रामा पार्टी को बचाने के लिए था लेकिन कब तक ?

वैसे यह बात सही है कि शरद पवार के इस ड्रामे के दौरान वे ही मजबूत होकर उभरे हैं। जबकि  अजित पवार इस ड्रामे में केवल विलेन रहे। उन पर तमाम तरह का तोहमत लगाए गए, क्या इस तरह से अपमान को सहते रहेंगे ? हालांकि अभी तो अजित पवार एनसीपी में दूसरे नंबर के नेता के तौर पर जाने जाते हैं लेकिन यह याद रहे सत्ता मिलने पर हर कोई अपनी वफादारी भूल जाता है। आज भले अजित पवार को पार्टी में उनके नेता विलेन मान रहे हों वक्त बदलने पर वे उनके साथ हो जाएंगे। हालांकि, जब शरद पवार इस्तीफा दे रहे थे तो दूसरा कोई नेता शरद पवार के समर्थन में नहीं उतारा था। लेकिन अजित पवार यहां शरद पवार के समर्थकों से कहा कि वे बार बार इस्तीफा वापस लेने की बात न करें। लेकिन शरद पवार ने वही किया जो वह चाहते थे। उन्होंने अपने सामर्थकों की आड़ लेकर अपना इस्तीफा वापस ले लिया।

बहरहाल, शुक्रवार को शरद पवार ने कहा कि वे अब नए लोगों को पार्टी में मौक़ा देंगे। पार्टी में नए लोगों की जरुरत है। अगर यह माना जाए कि कुछ समय बाद शरद पवार पार्टी को नया लुक देने वाले हैं तो साफ़ है कि पुराने नेताओं पर गाज गिरना तय है। जो रोना धोना कर रहे थे। अनाथ होने की बात कर रहे थे उनका पत्ता कटेगा। ऐसे में सवाल है कि क्या वे एनसीपी का दामन थामे रहेंगे यह बड़ा सवाल है। जिस बगावत को रोकने के लिए शरद पवार ने इतना तामझाम दिखाए उसका उनके न रहने पर क्या हश्र होगा यह भगवान जाने,पर इतना कहा जा सकता है कि अंजाम जैसा शरद पवार ने सोचकर रखा है वैसा ही होगा।

बहरहाल, तो क्या शरद पवार अब अजित पवार को सीएम बनाने की कोशिश करेंगे?  क्योंकि अभी शरद पवार और अजित पवार महाराष्ट्र के दौरे पर हैं। लेकिन शक है कि शरद पवार अजित पवार को सीएम की कुर्सी तक पहुंचने देंगे। क्योंकि शरद पवार ने अजित पवार के सपने  कई बार तोड़ें हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि शरद पवार के कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। जिस तरह से शरद पवार अजित पवार पर भरोसा नहीं करते उसी प्रकार अजित पवार शरद पवार पर भरोसा नहीं करते हैं।


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