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Sunday, November 24, 2024
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विपक्ष में मतभेद,कांग्रेस के साथ गेम

वेस्ट बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ खेल कर दिया है। सागरदिघी सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बेरोन विश्वास ने जीत दर्ज की थी। दो दिन पहले ही कांग्रेस विधायक टीएमसी में शामिल हो गए। एक बार फिर कांग्रेस बंगाल में शून्य हो गई।

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मुझे बचपन में मेरे पिताजी ने एक लोमड़ी की कहानी सुनाई थी। वैसे लोमड़ी बड़ी चालाक होती है। इसी तरह यह भी लोमड़ी बहुत चालाक थी। लेकिन उसे रहने के लिए अपना घर,जिसे हम लोग बिल भी कहते हैं, नहीं था। जिसकी वजह से लोमड़ी गर्मी के दिनों में दूसरे के घर यानी बिल में रहती थी। जब उसका कुछ जानवर विरोध करते तो लोमड़ी कहती की सर्दी आने के पर वह अपना घर बना लेगी, लेकिन लोमड़ी ऐसा नहीं करती। और उसे ठंड में ही रहना पड़ता या दूसरे जानवरों के बिल में रहती। वह बार ऐसा ही करती थी। ऐसा ही कुछ हाल आजकल विपक्ष की एकता की बात करने वाले राजनीति दलों का हैं।

ये राजनीति दल कहते हैं कि जल्द ही लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति तैयार हो जायेगी। सीट बंटवारे पर भी सभी राजनीति दलों को मना लिया जाएगा। लेकिन ममता बनर्जी, कांग्रेस और केजरीवाल के रुख को देखते हुए ऐसा नहीं लग रहा है। क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की हुंकार भरने वाले राजनीति दल अपने फायदे के लिए अपना राग अलाप रहे हैं। तो आइये जानते है विपक्ष में क्या चल रहा है।

तो दोस्तों लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। बावजूद इसके विपक्षी एकजुटता की बात केवल हवा हवाई लग रही है। राहुल गांधी अमेरिका में लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं और अपनी सदस्यता जाने का रोना रो रहे हैं। उनकी सांसदी की सदस्यता जाने पर विपक्ष के राजनीति दल उनके साथ आये थे। और एकसुर में केंद्र सरकार की आलोचना की थी,जबकि राहुल गांधी की सांसदी जाने में केंद्र सरकार का कोई लेना देना नहीं है, यह कोर्ट का निर्णय था और यह मामला अभी भी कोर्ट में है।

बहरहाल, इस  बीच वेस्ट बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ खेल कर दिया है। जिस   टीएमसी पार्टी के साथ मिलकर कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने का सपना देख रही थी। उसी पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ विश्वासघात कर दिया। अब लहूलुहान कांग्रेस अपने घाव पर मरहम लगाने के लिए बीजेपी का नाम ले लेकर ममता बनर्जी को कोस रही है। और फटेहाल हाल में विपक्ष के साथ जाने की बात कर रही है। आज कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के ऊपर निर्भर नजर आ रही है। जो खुद को ओल्ड इस गोल्ड कहती है।

दरअसल, तीन माह पहले यानी मार्च में जिस सागरदिघी सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बेरोन विश्वास ने जीत दर्ज की थी। अब वह सीट भी टीएमसी की हो गई है। दो दिन पहले ही कांग्रेस विधायक टीएमसी में शामिल हो गए। एक बार फिर कांग्रेस बंगाल में शून्य हो गई। बता दें कि सागरदिघी सीट पर कांग्रेस ने लेफ्ट की मदद से जीत हासिल की थी, लेकिन तीन माह बाद विश्वास टीएमसी में शामिल हो गए जिससे कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। इस सीट को टीएमसी लगातार तीन चुनावों से जीतती आ रही थी।

ऐसे में यह सवाल है कि क्या इस विश्वासघात के बावजूद कांग्रेस विपक्ष के साथ आएगी। विपक्ष की हुंकार भरने वाले नीतीश कुमार क्या इस पर ममता बनर्जी से सवाल करेंगे ? क्या यह मान लिया जाए की अगर विपक्ष एकजुट होता है तो इसमें ममता बनर्जी की ही चलेगी ? जिस तरह से ममता बनर्जी ने विपक्ष को एकजुट करने में नीतीश के साथ होकर अपनी बात मनवा रही है उससे लगता है कि विपक्ष में आपसी सहमति नहीं है। और ममता बनर्जी सुपर बॉस बनी हुई है। बताया जा रहा है कि विपक्ष की पहले बैठक दिल्ली में होने वाली थीं लेकिन उसे अब पटना में शिफ्ट कर दिया गया है।

यह भी कहा जा रहा है कि विपक्ष को साधकर ममता बनर्जी खुद को पीएम उम्मीदवार घोषित करा सकती हैं। हालांकि, विपक्ष के नेता बार बार कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद ही पीएम चेहरा घोषित किया जाएगा, लेकिन विपक्ष में ममता बनर्जी का बढ़ता दबदबा यह दिखाता है कि विपक्ष वही करेगा जो ममता बनर्जी चाहती हैं। वैसे, अब बंगाल में कांग्रेस के लिए कुछ बचा नहीं है। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस यहां अपना कोई उम्मीदवार भी नहीं उतार सकता है। क्योंकि ममता बनर्जी बार बार कहती आ रही है कि जो पार्टी जिस राज्य में मजबूत है, वही उस राज्य में बीजेपी के खिलाफ लड़ेगी। तो क्या ऐसे में विपक्षी एकता बन पायेगी। यह बड़ा सवाल है।

कांग्रेस को लेकर ममता बनर्जी का ही रुख कड़ा नहीं है, बल्कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का भी है। पिछले दिनों यूपी विधान परिषद के लिए हुए चुनाव से कांग्रेस ने दूरी बना ली थी। जबकि कांग्रेस के दो एमएलसी सपा के उम्मीदवार का समर्थन कर सकते थे, लेकिन उन्होंने समर्थन नहीं दिया बल्कि चुनाव का बहिष्कार किया। ऐसे में यह सवाल है कि जब ऐसे मौके पर ये दल आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ नहीं आ रहे हैं तो लोकसभा चुनाव में क्या एकजुट होंगे। कांग्रेस के दोनों एमएलसी इस चुनाव का बहिष्कार किया था। दोनों पार्टियों का रुख सख्त है, कोई भी एक कदम पीछे जाने को तैयार नहीं है।

इतना ही नहीं, सपा ने कांग्रेस के खिलाफ एक और दांव चला है। बताया जा रहा है कि समाजवादी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में अमेठी और रायबरेली से अपना उम्मीदवार उतारेगी। रायबरेली से सोनिया गांधी चुनाव लड़ती रही हैं, जबकि अमेठी से राहुल गांधी चुनाव लड़ते रहे हैं। हालांकि, राहुल गांधी 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की उम्मीदवार स्मृति ईरानी से हार गए थे और केरल के वायनाड में जीत दर्ज किये थे। उन्होंने दो जगह से चुनाव लड़ा था। वर्तमान में राहुल गाँधी की मानहानि केस में उनकी सांसदी की सदस्यता छीन गई है।

कहा जा रहा है कि इस बार अगर सोनिया गांधी रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ती हैं तो प्रियंका गांधी यहां से चुनाव लड़ सकती हैं। वहीं सपा के ऐलान से विपक्ष को बड़ा झटका लग सकता है। बताते चले कि पहले के चुनावों में इन दोनों सीटों पर सपा अपना उम्मीदवार नहीं उतारती थी। एक तरह से वह कांग्रेस का समर्थन कर रही थी। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में सपा भी कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में शायद ही एक दो सीट देने के लिए राजी हो। यानी कहा जा सकता है कि विपक्ष को विपक्ष ही तोड़ने पर आमादा है।

इसी तरह, पंजाब कांग्रेस के नेताओं के कहने पर कांग्रेस आलाकमान ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश का खिलाफत नहीं करेगा। कहने का मतलब है कि आप नेता और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटा रहे है। लेकिन कांग्रेस ने केजरीवाल को समर्थन देने से साफ इंकार कर दिया है। बता दें कि दिल्ली में अफसरों की नियुक्ति और तबादले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने इसके खिलाफ अध्यादेश लाकर फैसले को बदल दिया। इस संबंध में विस्तार जानने के लिए हमारी पिछली वीडियो आप देख सकते हैं।

इतना ही नहीं, कांग्रेस ने आप के साथ लोकसभा चुनाव भी लड़ने से इंकार कर दिया है। इस संबंध में नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि हमारे विचार जब नहीं मिल रहे हैं तो गठबंधन नहीं हो सकता है। बता दें कि कांग्रेस ने कर्नाटक में हुए शपथ समारोह में केजरीवाल को नहीं बुलाया था। एक तरह से कहा जाए तो कांग्रेस ने पहले से ही आप से किनारा करने का इशारा कर दिया था। विपक्ष का जुटान होने से पहले टूटने लगा है। तो क्या सभी दल अपना स्वार्थ छोड़कर  साथ आएंगे ? क्या ममता बनर्जी कांग्रेस को किनारा कर रही हैं ? क्या कांग्रेस ममता के सीट शेयरिंग प्लान सहमत होगी। यह बड़ा सवाल है।

 

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