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पहले गाली, अब संजय राउत ने थूका, आगे क्या?

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महाराष्ट्र की राजनीति के इतने बुरे दिन कभी नहीं आए। पत्रकारों के सामने भाषण देने से शुरुआत करने वाले अब कैमरे के सामने थूकने पर आ गए हैं। एनसीपी नेता अजीत पवार ने जब इसकी निंदा की तो संजय राउत ने कहा कि उस डैम में पेशाब करने से बेहतर है कि थूक दिया जाए। यह एक ऐसा व्यवहार है जिसे आम आदमी समझ सकता है। एमवीए के अने के बाद कभी राजनीति को पलटने की बात करने वाले राउत की राजनीति ने करवट ली है।

एक समय था जब पत्रकारों को यह कहने में गर्व होता था कि मैं एक पत्रकार हूं। लेकिन जब से चैनल के मालिकों ने खुद पॉकेट पत्रकारिता शुरू की है, तब से पत्रकारिता का जन्म हुआ है। कोविड महामारी के दौरान चैनल वालों ने उस समय के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की तारीफ मेंन कसीदें पढे, पत्रकारों की तरफ से एक संस्कारी और विचारशील मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव का जय-जयकार किया गया था, लेकिन उनके अनुयायी आज पत्रकारों के कैमरों के सामने थूकने का काम कर रहे हैं।

पत्रकारिता से नेता बने संजय राउत का यही काम है। रहते रहते राउत कैमरे के सामने आकर महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति को लेकर लेक्चर देते थे। उनकी भाषा थी कि महाराष्ट्र की राजनीति में विरोध है लेकिन कोई दुश्मनी नहीं है। संजय राउत सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ बैठकर अब विधायक के नाम पर थूक रहे हैं। वे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कोई शत्रु भी ऐसा नहीं करेगा। वो जिन लोगों के विरोध में बोल रहे है उनकी वजह से ही एक जमाने में वो राज्यसभा सांसद बने थे।

सवाल की शुरुवात सीएम एकनाथ शिंदे और चिरंजीव श्रीकांत शिंदे से हुई । उनके बारे में पूछे जाने पर राउत भड़क गए। फिर संजय शिरसाट के बारे में दोहराया गया। टीवी9 के एक रिपोर्टर द्वारा संजय शिरसाट के बारे में पूछे जाने पर राउत ने कैमरे के सामने छींटाकशी की। जब अजित पवार ने इस कृत्य की आलोचना की तो राउत ने थूकने का समर्थन किया। पेशाब करने से बेहतर है थूकना, उन्होंने इस तरह का जवाब दिया।

अजित पवार ने जब बांध में मूतने का विवादित बयान दिया तो कम से कम आलोचना होने पर उन्हें शर्म तो आई थी। इसके लिए उन्होंने एक दिन का उपवास किया था और स्वयं को शुद्ध किया था। भले ही यह एक राजनीतिक नाटक था, लेकिन उन्होंने इसे सार्वजनिक शर्मिंदगी के लिए किया। और उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने कार्यों के लिए खेद व्यक्त किया था। हालांकि संजय राउत ने इस तरह का बयान सिर्फ दिया था उन्होंने ऐसा कुछ किया नहीं था। लेकिन संजय राउत ने तो थूक कर दिखाया है।

फिर भी संजय राउत को इसका कोई अफ़सोस ना है ना होगा। ऐसे लगता है कि उन्होंने अपनी सारी लाज मुंब्रा की खाड़ी में डुबो दी है। उन्होंने थूकने का भी खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने पहले पत्रकारों को सार्वजनिक रूप से गाली देकर अपनी मर्दानगी का परिचय दिया है। जहां संजय राउत ने अपने करियर की नींव रखी गई थी, अब प्रेस के सामने थूक कर उसका समापन कर दिया है। पत्रकारिता का आलम यह है कि कोई भी यहाँ आकर थूक कर चला जाता है। बावजूद इसके पत्रकारों की मजबूरी बन गई है कि वो इसी संजय राउत के आगे पीछे बूम लेकर नाचते झूमते नजर आते है। हालांकि सोचनेवाली बात है कि चैनल के मालिकों का अपना कोई अस्तित्व यहाँ नजर नहीं या रहा है तो इन पत्रकारों का क्या अस्तित्व होगा। यदि इसी तरह की स्थिति जारी रही, तो राउत कल एक पत्रकार को एक ऐसे सवाल के लिए पीटने से नहीं हिचकिचाएंगे जो उसे पसंद नहीं है।

शिवसेना नेता संजय शिरसाट ने पत्राचार मामले की जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक समिति के जरिए कराने की मांग की थी। इस मामले में राउत ही नहीं, बल्कि कुछ बिल्डर और अधिकारी भी शामिल हैं। शिरसात ने कहा कि मैं उनके नाम उस समिति के समक्ष रखूंगा। वहीं शिरसाट ने बयान दिया था कि अगर राउत की बकबक जारी रही तो उसे जल्द ही जेल भेज दिया जाएगा। पत्राचार का विषय यह शिरसाट का लगातार विषय है। राउत को जेल भेजने की चर्चा है। इसका परिणाम राउत का थूकने के रूप में सामने आया।

महाराष्ट्र की राजनीति बहुत ही निचले स्तर पर आ गई है। इसमें राउत का सबसे बड़ा योगदान है। राउत के सिर में गंभीर चोट लग गई है, लोग यहां तक ​​की बातें करने लगे हैं। ‘मैं नंगा आदमी हूं’ राउत ने कुछ दिन पहले ही यह बयान दिया था। हालांकि अब राउत ने अब इसका प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। परिस्थितीनुसार व्यक्ति भी कभी-कभी अपना आपा खो देता है, जब उसके मुंह से एक बुरा शब्द निकल जाता है। लेकिन सोचनेवाली बात यह है कि संजय राउत जैसे व्यक्ति हमेशा से ही अपने नियंत्रण से बाहर कैसे हो सकता है?

नितेश राणे ने कुछ दिन पहले कहा था कि ‘संजय राउत की जुबान पर रिसर्च करने के लिए मैं विश्व स्वास्थ्य संगठन को पत्र लिखने जा रहा हूं। दरअसल राउत के दिमाग पर रिसर्च होनी चाहिए, जिससे उन्हें कैमरे के सामने थूकने और गाली देने की अक्ल आती है।’ यहाँ तक की इस मासूमियत पर राउत ने खुद की तुलना स्वतंत्रता सेनानी सावरकर से कर दी। उन्होंने कहा कि सावरकर ने दिखा दिया था कि बेईमान पर थूकना संस्कृति है। राउत ने वीर सावरकर से अपनी तुलना कर अपना अपमान किया है। इतना अपमान तो राहुल गांधी ने भी नहीं किया होगा।

वहीं राउत जब भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में थे तब भी उन्होंने अपनी तुलना क्रांतिकारियों से की थी। जिन पत्रकारों पर राउत ने थूका उनके पास अब क्या बचा है, भगवान जाने। हिंदी सिनेमा में ऐसे कई खलनायक हुए हैं, जिन्हें पर्दे पर देखते ही लोग उनके दीवाने हो जाते थे. यहाँ तक की लोग उन्हें गालियां भी देते थे। राउत ने उन्हें भी पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने ऐसा व्यवहार किया है कि खलनायक भी इसके सामने फीके और हल्के लगने लगे। राउत का व्यवहार चौंकाने वाला है, क्या उनके सहकर्मी, दोस्त, यहां तक ​​कि उनका परिवार भी उनके थूकने को सही ठहरा सकता है?

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