पिछले दिनों स्वीडन में मस्जिद के सामने कुरान जलाई गई थी। जिसके खिलाफ ओआईसी ने संयुक्त राष्ट्र में निंदा प्रस्ताव लाया था। इस निंदा प्रस्ताव का भारत सहित कई देशों ने समर्थन किया है, तो कई देशों ने इसका विरोध किया। भारत द्वारा इस निंदा प्रस्ताव का समर्थन किये जाने की चर्चा हो रही है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर भारत ने इस निंदा प्रस्ताव का समर्थन क्यों किया ? जबकि बीते साल जब बीजेपी की पूर्व नेता नूपुर शर्मा ने एक विवादित बयान दिया था।
तो मुस्लिम देशों के संगठनों यानी की ओआईसी ने इसकी निंदा की थी और तब बीजेपी उन्हें पार्टी से निकाल दिया था। ओआईसी लगातार भारत विरोधी बयान देता रहा है। ओआईसी ने कई बार कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ बोलता रहा है।
पहले यह जान लेते है कि मामला क्या है। दरअसल, पिछले माह बकरीद की छुट्टी के दिन एक इराकी प्रवासी ने स्टॉकहोम मस्जिद के सामने पहले कुरान की एक प्रति को फाड़े उसके बाद उसे जला दिए। इससे जुड़ा वीडियो भी वायरल हुआ था। सबसे बड़ी बात यह कि कुरान जलाने वाले व्यक्ति ने स्वीडन प्रशासन से इस संबंध अनुमति ली थी।कुरान जलाने वाले व्यक्ति ने इस संबंध में कहा था कि ” मै यह अभियक्ति की आजादी की अहमियत पर ध्यान दिलाने के लिए ऐसा किया।” इसके बाद मुस्लिम देशों ने कड़ी आपत्ति जताई थी। हालांकि क्या सही है ,क्या गलत है हम इस बहस में नहीं जाते है। हम बस इस बात पर बात करेंगे कि आखिर भारत ने ओआईसी द्वारा यूएन में लाए गए निंदा प्रस्ताव का समर्थन क्यों किया।
बता दें कि ओआईसी 57 मुस्लिम देशों का संगठन है। यह संगठन लगातार भारत पर मुस्लिम समाज पर दोयम दर्जे का व्यवहार करने का आरोप लगता रहा है। इतना ही नहीं, बीते साल जब बीजेपी की नूपुर शर्मा ने एक विवादित टिप्पणी की थी, तो ओआईसी ने इसकी निंदा की थी। जिस पर भारत ने लताड़ लगाई थी। वहीं, ओआईसी जम्मू कश्मीर के मामले पर पाकिस्तान के पक्ष में बोलता रहा है। हालांकि भारत ओआईसी को कोई महत्व नहीं देता है। 2022 में ओआईसी के महासचिव हिसेन ब्राहिम ताहा ने एक बयान जारी कर पीएम मोदी से जम्मू कश्मीर में धारा 370 बहाल करने की मांग की थी।
गौरतलब है कि भारत हमेशा से सभी धर्मो का सम्मान करता है। हिन्दू धर्म में “सर्वधर्म समभाव” एक अवधारणा है। जिसका मतलब होता है कि सभी धर्म समान हैं। भारत इसी मूल मंत्र के साथ आगे बढ़ता रहा है। भले दुनिया भर में भारत के बारे में तमाम बातें कही जाती है। लेकिन, भारत अपने मूल अवधारणा से कभी नहीं हटा। भारत के संविधान में सभी धर्मो को समान अधिकार दिया गया है। यहां सभी जाति धर्म के लोग अपने अपने हिसाब से रहते मनाते हैं। भारत में न केवल हिंदू ,बल्कि सिख ,जैन ईसाई और दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम समुदाय भी यहां रहती है। भारत की यही विविधापूर्ण रहन सहन उसकी पहचान है। इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत ने अपने मूल स्वभाव के ही अनुसार, स्वीडन में कुरान को जलाये जाने की निंदा की।
इसलिए कहा जा सकता है कि जो लोग यह कहते हैं कि भारत में मुस्लिम समुदाय के साथ गलत व्यवहार किया जाता है या बहुसंख्य को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसा कहने वालों को यूएन में निंदा प्रस्ताव का समर्थन उनके गाल पर तमाचा है. कहा जा सकता है कि लोग भारत के मूल सिद्धांत से वाकिफ नहीं है. हाल ही में जब पीएम मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे उस समय भी पीएम मोदी अल्पसंख्यकों को लेकर सवाल पूछा गया था. तब पीएम मोदी सवाल पूछने वाले पत्रकार को करारा जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र हमारे डीएनए में है.
भारत में किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं होता है. लोकतंत्र हमारे रगो में है. लोकतंत्र हम जीते है. उन्होंने यह भी कहा था कि हमारे पूर्वजों ने उसे संविधान के रूप में ढाला है. उन्होंने कहा था कि भारत में न धर्म के आधार पर. न जाति के आधार पर, न ही उम्र के और न भूभाग के आधार पर भेदभाव होता है. ऐसे में अगर भारत ने कुरान जलाने पर ओआईसी के निंदा प्रस्ताव का समर्थन किया तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए.
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