पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हुए आठ दिन बीत चुके हैं। मतदान के नतीजे भी घोषित कर दिए गए हैं। बावजूद इसके जारी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। हिंसा में अभी तक 50 लोगों की जान गई है, इनमें सर्वाधिक टीएमसी के 30 कार्यकर्ता हैं और जबकि भाजपा के सात कार्यकर्ताओं की जान गई है। राज्य में तृणमूल कांग्रेस का शासन है और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में उनकी ही पार्टी के इतने कार्यकर्ताओं की मौत पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
वहीं इस चुनावी हिंसा में अब तक कांग्रेस के चार, लेफ्ट के पांच, आईएसएफ के तीन और अन्य तीन लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं। भले ही पंचायत चुनावों में सत्तारूढ़ तृणमूल ने पूर्ण बहुमत हासिल किया हो, लेकिन साथ ही उनके 30 कार्यकर्ताओं की मौत कुछ और ही ‘संदेश’ देती है। वहीं कई लोगों के अनुसार, तृणमूल के कई लोग आंतरिक गुटबाजी लड़ाई में मारे गए है। यानि कि तृणमूल के लोग ही तृणमूल के लोगों के हाथों मरे हैं।
कई लोगों के मुताबिक, सत्ता पक्ष और विपक्ष के खेमे के बीच मरने वालों की संख्या में इतना अंतर है कि इसे सिर्फ गुटबाजी नहीं कहा जा सकता। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विभिन्न क्षेत्रों में ‘हिंसा’ को अंजाम देते समय ‘प्रतिरोध’ के कारण तृणमूल के लोगों की जान चली गई। इस घटना को लेकर विभिन्न राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर सवाल कर रहे हैं और आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, मौतों की संख्या के मामले में दक्षिण 24 परगना टॉप पर है। वहीं मुर्शिदाबाद में 13, कूचबिहार में 6, मालदा में 5, उत्तर दिनाजपुर में 3, पूर्व बर्धमान में 3, नदिया में तीन, उत्तर 24 परगना में दो, पुरुलिया में दो और बीरभूम में चुनावी हिंसा में 1 की जान गई है। हालांकि ये कोई नई बात नहीं है बंगाल में पंचायत चुनावों में राजनीतिक हिंसा की दशकों पुरानी ‘परंपरा’ है।
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