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Saturday, November 23, 2024
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….तो इसलिए एमपी  में चुनाव लड़ना चाहते हैं अखिलेश यादव 

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कांग्रेस और सपा के बीच की कड़वाहट अब खुलकर सामने आ गई है। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों में गठजोड़ नहीं होने पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव तिलमिलाए हुए है। अखिलेश यादव के तेवर देख लेने वाली लग रही है। उन्होंने कहा भी था कि जैसा व्यवहार कांग्रेस ने सपा नेताओं के साथ किया है। वैसा ही व्यवहार सपा भी करेगी। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सपा इंडिया गठबंधन से बाहर होती है तो वह 2024 के लोकसभा चुनाव में अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस के साथ उतर सकती है। अब सवाल उठ रहा है कि आखिर अखिलेश यादव कांग्रेस से इतना चिढ़ें क्यों हैं ? और क्या वजह है कि अखिलेश यादव मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ना चाहते हैं ?

दरअसल, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच विवाद की शुरुआत मध्य प्रदेश से शुरू हुई है।  अखिलेश यादव ने पिछले दिनों कहा था कि जब कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को सपा को सीट नहीं देनी थी तो उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ एक बजे तक बैठक क्यों की। उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस को राज्य स्तर पर गठबंधन नहीं करना था तो पहले बता देते, हम उनके साथ  बैठक ही नहीं करते। हम अपने नेताओं को उनके पास नहीं भेजते और न ही उनका फोन उठाते। अब मध्य प्रदेश में सपा अपने दम पर चुनाव लड़ रही है।

सपा ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का मन बनाया है। इसमें से 22 उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया गया है। बाकी के उम्मीदवारों के नाम सपा जल्द ही घोषणा कर सकती है। बताया जा रहा है कि सपा मध्य प्रदेश में बागी नेताओं पर नजर गड़ाए गए है। बीजेपी और कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर नाराज नेता सपा के चुनाव लड़ सकते हैं। कहा जा रहा है कि सपा जातीय और धार्मिक समीकरण को देखते हुए अपने उम्मीदवार उतारेगी।

अब सवाल यह है कि अखिलेश यादव मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ने को इतने उतावले क्यों है। तो  सपा अपने स्थापना के समय से ही मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ रही है, लेकिन, उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिली। वहीं, कहा जा रहा है कि सपा यूपी से सटे मध्य प्रदेश के बुंदलेखंड से  आस लगाई हुई है। हालांकि, सपा का पुराना रिकॉर्ड देखने पर पता चलता है कि पार्टी पहली बार 1993 में अपने उम्मीदवार मध्य प्रदेश में उतारी थी। तब सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। जबकि अगले विधानसभा चुनाव में सपा ने चार सीटें जीती थी। वहीं ,2003 में सपा ने सात सीटों पर जीत दर्ज किया था। मगर इसके बाद से सपा के सीटों में लगातार गिरावट देखी गई। 2018 में सपा से केवल एक उम्मीदवार जीत दर्ज किया था।

मगर, सपा ने कई सीटों पर जोरदार प्रदर्शन किया है। यही वजह है कि अखिलेश यादव मध्य प्रदेश में सपा में चुनाव लड़ने को आतुर हैं। सपा नेता अपनी पार्टी को नए मुकाम देने के लिए भी जोर आजमाइश कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि सपा मध्य प्रदेश की कुछ सीटों पर कांग्रेस के वोटों में सेंधमारी कर पार्टी को टक्कर दी है। यही वजह रही थी कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दो सीटों से बहुमत से दूर रह गई थी। इसमें सपा की भूमिका स्पष्ट देखी जा सकती है।  मैहर सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार को 3 हजार के आसपास वोट मिले थे। जबकि सपा उम्मीदवार ने इस सीट से 11 हजार से अधिक वोट पाया था।

इसी तरह से पारसवाड़ा और बालाघाट सीट की बात करें तो यहां सपा दूसरे नंबर पर थी, जबकि कांग्रेस तीसरे नंबर थी। एक अन्य सीट पर सपा दूसरे नंबर पर थी, वहीं कांग्रेस चौथे स्थान पर खिसक गई थी। इससे साफ पता चलता है कि इन सीटों पर सपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है। यह भी कहा जा रहा है कि इस बार भी कांग्रेस को सपा नुकसान पहुंचा सकती है। बुंदेलखंड की 29 सीटों पर यादव वोटरों का प्रभाव है। इसके अलावा ग्वालियर और चंबल में यादव वोटर अधिक संख्या में है। बता दें कि सपा का यादव कोर वोट बैंक हैं।

अब सवाल यह कि अखिलेश यादव कांग्रेस से चिढ़े क्यों है, इसके एक नहीं कई कारण है। देखा जाए तो अखिलेश यादव पहले से ही कांग्रेस के साथ जाने से कतरा रहे थे। लेकिन, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के परिवार की वजह से उन्होंने इस गठबंधन में शामिल हुए है। अखिलेश यादव के साथ, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी  साथ थे। जो तीसरे मोर्चे की बात कर रहे थे। लेकिन, जब नीतीश कुमार ने कांग्रेस के साथ मिलकर गठबंधन की बात की तो के चंद्रशेखर राव अपना अलग रास्ता अपना लिया। शुरू में बीजेपी के खिलाफ तीसरा मोर्चा बनाने की बात के चंद्रशेखर राव ने ही की थी। के चंद्रशेखर राव उद्धव ठाकरे और नीतीश कुमार से भी मिले थे।

दरअसल, अखिलेश यादव की पार्टी यूपी में मजबूत है और कांग्रेस राज्य में निर्जीव पड़ी हुई है। अखिलेश यादव किसी भी कीमत पर यूपी में कांग्रेस को घुसना नहीं देने चाहते हैं। अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन में शामिल होने के बाद से उनकी महत्वकाक्षाएं भी हिलोरे मारने लगी थी। अखिलेश यादव चाहते थे कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर यादव बहुल सीटों पर पकड़ बना ले। लेकिन, कांग्रेस ने वही किया जो अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में कांग्रेस साथ करने वाले थे। अब यही फार्मूला सपा भी यूपी में लोकसभा चुनाव के दौरान दोहरा सकती है।अखिलेश ही नहीं लगभग इंडिया गठबंधन के सभी दल इसी फार्मूले पर चलने वाले हैं। जो गठबंधन के बिखराव का संकेत दे रहा है और एकजुटता पर संशय पैदा कर दिया है।

अब, कांग्रेस ने यूपी में अपना दम दिखाने के लिए अजय राय को उतारा है। अजय राय पीएम मोदी के खिलाफ दो बार चुनाव लड़ चुके हैं। इसके साथ अपने बयान को लेकर चर्चा में भी रहे है। कांग्रेस यही चाहती थी कि पहले राज्य में पार्टी को चर्चा में लाना होगा। और ऐसे व्यक्ति को कमान सौंपी जाए जो तीखा बोलता हो। उसमें अजय राय फिट बैठते हैं। अजय राय ने कानपुर और आजमगढ़ में अखिलेश यादव पर हमला बोला है। जिससे अखिलेश यादव चिढ़ हुए है।यही वजह रही थी की उन्होंने अजय राय का बिना नाम लिए चिरकुट कहा था। आजमगढ़ में जैसे अजय राय ने अखिलेश यादव के दुखती राग हाथ रखा तो सपा प्रमुख ने भी अमेठी को लेकर बयान दिया। अब कहा जा रहा है कि सपा अमेठी और रायबरेली से अपना उम्मीदवार उतार सकती है। अब सवाल यह है कि अखिलेश यादव हुए कांग्रेस की लड़ाई इंडिया गठबंधन पर क्या प्रभाव डालेगा ? क्या अखिलेश यादव भी कांग्रेस को यूपी में गच्चा देंगे।ऐसे में गठबंधन का  स्वरूप और भविष्य 2024 के लोकसभा चुनाव तक कैसा रहने वाला है ?

 

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