प्रशांत कारुलकर
दुनिया भर में युद्धों की आग भड़की हुई है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मची हुई है। ऐसे में, भारतीय अर्थव्यवस्था का लचीलापन और मजबूती से टिके रहना एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की इस असाधारण स्थिति के कई कारण हैं। सबसे पहले, भारत का घरेलू बाजार काफी बड़ा है और इसमें उपभोक्ताओं की भारी ताकत है। यह घरेलू मांग अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, भले ही वैश्विक स्तर पर अस्थिरता हो।
दूसरे, भारत की सेवा क्षेत्र का तेजी से विकास हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाओं, और अन्य सेवाओं में भारत का निर्यात बढ़ रहा है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हो रही है और मुद्रा को स्थिरता मिल रही है।
तीसरा, भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई आर्थिक सुधारों को लागू किया है, जिससे व्यापार करने में आसानी और निवेश आकर्षित करने में मदद मिली है। इन सुधारों के कारण भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) में वृद्धि हुई है, जिससे बुनियादी ढांचे और आर्थिक विकास में निवेश बढ़ा है।
चौथा, भारत का एक बड़ा और युवा श्रम बल है, जो देश को श्रम-प्रधान उद्योगों में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्रदान करता है। यह भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था भी चुनौतियों से मुक्त नहीं है। मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, और व्यापार घाटा जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। साथ ही, भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता कम करनी चाहिए और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाना चाहिए।
कुल मिलाकर, भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूत आधार और लचीलापन है, जो इसे वैश्विक संकटों का सामना करने में सक्षम बनाता है। हालांकि, भविष्य में आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए सरकार को आवश्यक सुधारों को लागू करना और चुनौतियों को दूर करना होगा।
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