गुजरात में नर्मदा आंदोलन के दरम्यान केवीआईसी के तत्कालीन अध्यक्ष वी.के. सक्सेना पर आरोप मढ़ने के लिए उन्होंने 20 वर्ष पहले मेधा पाटकर पर मानहानि का दावा किया था, जिसमें मेधा पाटकर अपने लगाए आरोपों को सही साबित नहीं कर पाई | इसी के साथ दिल्ली के LG और तत्कालीन केवीआईसी अध्यक्ष वी.के. सक्सेना ने में अपना दावा सिद्ध किया।
अदालत ने अपने सामने मौजूद सबूतों और इस तथ्य पर विचार करने के बाद पाटकर को सजा सुनाई है की यह मामला पिछले दो दशकों से चला रहा है। फिर भी अदालत ने सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया, जिससे मेधा पाटकर आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील कर सकें। सजा के बाद मेधा पाटकर ने अदालत के समक्ष जमानत याचिका भी दायर की है।
दरसल मेधा पाटकर और दिल्ली एलजी वी.के.सक्सेना के बीच वर्ष 2000 से कानूनी विवाद चल रहा है। तब मेधा पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित के लिए वी.के.सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ ‘काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख रहे सक्सेना ने 2001 में एक टीवी चैनल पर मेधा पाटकर द्वारा उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस बयान जारी करने के लिए पाटकर के खिलाफ दो मामले भी दर्ज किए थे।
साकेत कोर्ट ने 24 मई को सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन के नाम से प्रसिद्धी लेने वाली राजकीय नेता मेधा पाटकर को मानहानि के मामले में दोषी ठहराया था। इस अपराध में अधिकतम दो साल तक की साधारण कैद या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है। परंतु दिल्ली की साकेत कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उनकी उम्र, स्वास्थ्य और अवधि को देखते हुए ज्यादा सजा नहीं दी जा रही है।
याचिकाकर्ता वी.के.सक्सेना के वकील ने जज से कहा कि जुर्माने की रकम हमको नहीं चाहिए। जिस पर कोर्ट ने कहा कि एक बार मुआवजे की रकम आपको मिल जाये तो उसके बाद आप उस पैसे से जो करना चाहिए करिए।
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