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Sunday, November 24, 2024
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इंदिरा गांधी के करीबी, कांग्रेस नेता कमलनाथ ने भिंडरावाले को फंड किया था: पूर्व विशेष सचिव RAW

भिंडरावाले ने कभी खुलकर खालिस्तान की मांग नहीं की बल्कि उसने कहा अगर इंदिरा गांधी अपने हाथों से मेरे झोली में डाल दे तो ना भी नहीं करूँगा।

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हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान RAW के विशेष सचिव रह चुके बी.एस सिद्धू साहब ने सनसनीखेज खबर दी है। उनका कहना है की, कांग्रेस नेता कमलनाथ जो इंदिरा गांधी के वफादार थे और उनके साथ काम करते थे उन्होंने खालिस्तान आंदोलन के जनक भिंडरावाले को वित्त पोषित किया, उसका काम पंजाब के हिंदुओं को धमकाना और खालिस्तान आंदोलन चलाना था।

उनका कहना है की ‘वन अकबर रोड’ इंदिरा गाँधी का ऑफिस था, साथ ही ‘वन सफदरगंज’ ऑफिस से जुड़कर खालिस्तान का प्लान चलता था। इंदिरा गांधी के करीबियों ने पंजाब के हिन्दुओं को डराने के लिए ‘भिंडरावाले-खालिस्तान’ इस स्ट्रेटेजी का उपयोग किया। उन्होंने भिंडरावाले के जरिए खालिस्तान का जो मुद्दा कभी था ही नहीं उसे खड़ा करा दिया, उसके पीछे की मंशा थी की देश की बड़ी जनसँख्या के मन में भारत के विभाजन को लेकर एक और डर पैदा हो, जिसका कांग्रेस को चुनावों में फायदा पहुंचे।

इस इंटरव्यू में उन्होंने कुलदीप नायर की आत्मकथा ‘बियोंड द लाइन’ से कांग्रेस की तरफ से भिंडरावाले को चुनने के वाक़िया का जिक्र हुआ है। इस किताब के अनुसार कमलनाथ ने खालिस्तान आंदोलन के लिए सिख समुदाय में किसी उच्च पद पर आसीन, उच्च स्वर और खड्कू व्यक्ति उनकी प्राथमिकता होने की बात कुलदीप नायर से कि थी। कमलनाथ ने इस काम के लिए एक ओर सिख संत का इंटरव्यू भी लिया था पर वो बड़ा ही कमजोर होने के कारण उसे टाल दिया गया।

आपको बता दें की, कांग्रेस के ऑफिस के नाम वन होने और उन्ही ऑफिस से इस ऑपरेशन चलने की वजह से इसे बी.एस. सिद्धू ‘ऑपरेशन वन’ कहते है। बी.एस.सिद्धु ने कहा की इस ऑपरेशन वन में शामिल संजय गांधी भी शामिल थे। इन सभी ने मिलकर भिंडरवाले को फंड किया था। यह पैसा जरुरी नहीं की सीधे तौर पर कमलनाथ या इस ग्रुप से जुड़े लोगों ने भिंडरावाले को दिया हो, पर कुछ लोगों के जरिए ये पैसा दिया गया था। कांग्रेस के अमृतसर के तत्कालीन सांसद आर.एल. भाटिया भी भिंडरावाले और इस ग्रुप से लंबे समय तक संपर्क में थे।

बी.एस.सिद्धू का कहना है की कमलनाथ और संजय गांधी उस वक्त मुरारजी देसाई की सरकार को इस आंदोलन के जरिए कमजोर करना चाहते थे। साथ ही इसी आंदोलन की मदद से वो पंजाब में अकाली दल को भी पिछे धकेलने में जुटे थे। हम उनकी योजना की सफ़लता को इसी से आंकना चाहिए की 1979 में एसजीपीसी के चुनावों में भिंडरावाले को 140 में से मात्र 4 सीटें मिली थी। अकाली उस समय भी मजबूत थे पर 1980 में उनकी सरकार कोण बर्खास्त किया गया।

बी.एस.सिद्धू ने यह भी कहा की, भिंडरावाले ने कभी खुलकर खालिस्तान की मांग नहीं की बल्कि उसने कहा,”अगर इंदिरा गांधी अपने हाथों से मेरे झोली में डाल दे तो ना भी नहीं करूँगा।”

ऑपरेशन वन ने भिंडरावाले को ‘धार्मिक कारणों’ के बजाय ‘राजनितिक कारणों’ के लिए इस्तेमाल कर रहा था। वहीं झैल सिंग ने खालिस्तान की मांग के लिए दूसरा ग्रुप बनाया जिसका नाम रखा गया ‘दल खालसा’। इस ‘दल खालसा’ की पहली मीटिंग अरोमा होटल में हुई जिसका 600 रुपए का बिल भी झेल सिंग ने भरा।

बी.एस. सिद्धू के इस इंटरव्यू के बाद सोशल मिडिया में हड़कंप मचा है। कांग्रेस विरोधी दलों ने ऑपरेशन वन को देशद्रोह कहना शुरू कर दिया है। आलचकों का कहना है, जब खालिस्तान का मुद्दा अस्तित्व में ही नहीं था, तो उसे बनाकर कांग्रेस के नेताओं ने देश को दंगों और अलगाववाद की आग में झोंक दिया है।

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