बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने मूक-बधिर पति की हत्या की आरोपी महिला रुक्साना शेख को जमानत दे दी है। अदालत ने कहा कि मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है और वर्तमान में आरोपी को हिरासत में रखना प्री-ट्रायल सजा जैसा होगा, जो न्यायसंगत नहीं है।
रुक्साना शेख पर आरोप है कि उसने अपने प्रेमी जय चावड़ा और एक अन्य साथी शिवजीत सिंह के साथ मिलकर अपने पति अरशद शेख की हत्या की साजिश रची थी। पुलिस के अनुसार, 7 अगस्त 2024 को रुक्साना को गिरफ्तार किया गया था। चावड़ा को दादर रेलवे स्टेशन पर अरशद की लाश एक सूटकेस में भरकर ले जाते हुए पकड़ा गया था।
न्यायमूर्ति अमित बोरकर ने 12 जून को फैसला सुनाते हुए कहा, “अपराध की प्रकृति निस्संदेह गंभीर है, लेकिन संदेह, चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, प्रमाण की जगह नहीं ले सकता। अगर मुकदमा अभी लंबा चलना है, तो हिरासत में रखना न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा।”
अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने भले ही कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स, कथित प्रेम संबंधों और घटना से जुड़े रस्सी और तार की बरामदगी का हवाला दिया हो, लेकिन रुक्साना को सीधे हत्या से जोड़ने वाला कोई प्रत्यक्ष सबूत अदालत के समक्ष नहीं रखा गया। अभियोजन ने दावा किया कि रुक्साना और चावड़ा के बीच लंबे समय से संबंध थे और उन्होंने दो स्वतंत्र गवाहों के सामने जांच के दौरान स्वीकारोक्ति दी थी। उन्होंने तर्क दिया कि इन्हीं संबंधों ने हत्या के पीछे की मंशा (motive) को जन्म दिया।
रुक्साना के वकील ने अदालत के सामने तर्क रखा कि यह मामला पूरी तरह अनुमान और संदेह पर आधारित है।
“मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है और इसे पूरा होने में लंबा समय लग सकता है। ऐसे में आरोपी को आगे हिरासत में रखना पूर्व-निर्णय जैसा होगा,” उन्होंने कहा।
हाईकोर्ट ने रुक्साना शेख को ₹50,000 के निजी मुचलके और कम से कम एक सॉल्वेंट ज़मानतदार के साथ रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने उसकी रिहाई के साथ कुछ सख्त शर्तें भी लागू की हैं। उसे स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वह किसी भी स्थिति में गवाहों से संपर्क नहीं करेगी, न ही किसी सबूत के साथ छेड़छाड़ करेगी। इसके अलावा, उसे बिना अदालत की अनुमति के मुंबई की न्यायिक सीमा से बाहर जाने की भी मनाही है। ये शर्तें यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि रुक्साना मुकदमे की प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करे और निष्पक्ष न्याय में कोई बाधा न आए।
यह मामला उन जटिल परिस्थितिजन्य मामलों में से एक है, जहां न्यायालय ने संदेह और अनुमान के आधार पर सजा न देने की भारतीय न्याय प्रणाली की मूल भावना को दोहराया है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि मुकदमा अभी लंबा चलेगा और अंतिम निर्णय आने तक आरोपी निर्दोष मानी जाएगी।
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