कर्नाटक के हावेरी ज़िले में सामूहिक बलात्कार के सात आरोपियों को ज़मानत मिलने के बाद विजय जुलूस निकाला गया, जिससे पूरे राज्य में आक्रोश की लहर दौड़ गई है। रिहाई के तुरंत बाद आरोपियों ने मुस्कुराते हुए विजय चिन्ह दिखाए और बाइक, कार व डीजे की धुन पर अक्की अलूर कस्बे की सड़कों पर खुलेआम जश्न मनाते हुए जुलूस निकाला गया।
मामला जनवरी 2024 का है, जब एक अंतरधार्मिक जोड़ा हनागल के एक निजी होटल में ठहरा था। उसी दौरान, एक भीड़ होटल के कमरे में घुसी, महिला को जबरन खींचकर पास के जंगल में ले गई और कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया। पीड़िता 26 वर्षीय महिला है, जो 40 वर्षीय केएसआरटीसी बस ड्राइवर के साथ रिश्ते में थी।
इस गंभीर अपराध में 19 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था, जिनमें से सात को मुख्य आरोपी माना गया। हाल ही में हावेरी सत्र न्यायालय ने इन सातों — आफताब चंदनकट्टी, मदार साब मंडक्की, समीवुल्ला लालनवर, मोहम्मद सादिक आगासिमानी, शोएब मुल्ला, तौसीप चोटी और रियाज साविकेरी — को ज़मानत दे दी। ये सभी लगभग सोलह महीनों से न्यायिक हिरासत में थे।
आरोपियों की रिहाई पर निकाले गए जुलूस का वीडियो सामने आने के बाद प्रदेशभर में रोष फैल गया है। सोशल मीडिया पर लोगों ने सवाल उठाए हैं कि जब सामूहिक बलात्कार जैसे संगीन आरोप लंबित हैं, तब इस तरह खुलेआम विजय जुलूस निकालना न केवल पीड़िता का अपमान है, बल्कि न्याय प्रक्रिया की अवमानना भी प्रतीत होती है।
रिपोर्ट के अनुसार, मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए अपने बयान में पीड़िता ने सभी आरोपियों की पहचान की थी, लेकिन बाद की अदालती कार्यवाही में वह उनकी पुष्टि नहीं कर पाई। इसके चलते अभियोजन पक्ष का मामला कमज़ोर पड़ गया, जिससे ज़मानत की राह आसान हो गई।
गौरतलब है कि यह मामला शुरुआत में ‘मॉरल पुलिसिंग’ के रूप में सामने आया था। पुलिस ने पहले इसे एक निजी होटल में अंतरधार्मिक जोड़े के मिलने का मामला माना, लेकिन जब पीड़िता ने विस्तृत बयान दिए और सामूहिक बलात्कार के आरोप लगाए, तब जाकर IPC की धारा 376D के तहत मामला दर्ज हुआ।
अब तक कुल 19 आरोपी गिरफ़्तार हो चुके हैं, जिनमें से पहले 12 को पहले ही ज़मानत मिल चुकी थी। सात मुख्य आरोपियों की ज़मानत याचिका अदालत ने कई बार खारिज की थी, लेकिन अब उन्हें रिहा कर दिया गया है। इस घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा, न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और सामुदायिक सद्भाव को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। राज्य सरकार और न्यायालय की चुप्पी पर भी आलोचना हो रही है।
जनता, महिला अधिकार संगठनों और विपक्षी दलों ने इस जुलूस पर कार्रवाई की मांग की है। वे चाहते हैं कि आरोपियों के इस सार्वजनिक प्रदर्शन को उकसाने और पीड़िता को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के प्रयास के रूप में देखा जाए। यह मामला सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था, सामाजिक संवेदनशीलता और महिला सुरक्षा की गहराई से जांच करने का एक अवसर है। ऐसे मामलों में जल्दबाज़ी नहीं, बल्कि सतर्कता और गंभीरता अपेक्षित है।
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