साल 2002 के चर्चित नीतीश कटारा हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (12 अगस्त) को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि जिन दोषियों को एक निश्चित अवधि की सजा सुनाई गई हो, उन्हें सजा पूरी होने के बाद रिहा किया जाना चाहिए। यह आदेश न सिर्फ मामले के दोषी सुखदेव यादव उर्फ पहलवान के लिए, बल्कि उन सभी कैदियों पर लागू होगा, जिन्होंने अपनी निर्धारित सजा पूरी कर ली है।
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा, “अगर यही रवैया रहा तो हर दोषी जेल में ही मरेगा।” कोर्ट ने निर्देश दिया कि अपनी सजा पूरी कर चुके सभी कैदियों को तुरंत रिहा किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही जुलाई 2025 में सुखदेव पहलवान की रिहाई का आदेश दिया था, क्योंकि उसने 20 साल की सजा मार्च में पूरी कर ली थी। इसके बावजूद सजा पुनरीक्षण बोर्ड (एसआरबी) ने उसके आचरण का हवाला देते हुए रिहाई रोक दी। इस पर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया और सवाल किया कि “एक अदालत के आदेश की अनदेखी कोई बोर्ड कैसे कर सकता है?”
दिल्ली सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे ने दलील दी कि आजीवन कारावास का मतलब प्राकृतिक जीवन के शेष समय तक जेल में रहना है और 20 साल के बाद स्वतः रिहाई नहीं हो सकती। वहीं, बचाव पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ मृदुल ने कहा कि उनके मुवक्किल ने 9 मार्च 2025 को पूरी सजा काट ली है और आगे हिरासत में रखने का कोई कानूनी आधार नहीं है।
तीन अक्टूबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने विकास यादव और विशाल यादव को बिना छूट के 25 साल की सजा सुनाई थी, जबकि सह-दोषी सुखदेव यादव को 20 साल की सजा मिली थी। मामला 16-17 फरवरी 2002 की रात का है, जब नीतीश कटारा का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी गई थी, कथित तौर पर विकास यादव की बहन भारती यादव से संबंधों के कारण।
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