अफगानिस्तान के कट्टर पंथी तालिबान महिलाओं को बुर्के में रहने के लिए किस तरह से मजबूर करते है। अब इन तालिबानों ने अनिश्चितकाल के लिए महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है। तालिबान ने सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही महिलाओं की आजादी पर रोक लगाने वाले कई फैसले लिए हैं। जिसमें टीवी कार्यक्रमों में महिलाओं को दिखाये जाने पर रोक लगा दी गई, महिलाओं के ब्यूटी पार्लर बंद करवा दिये गए, तालिबान ने महिलाओं को सार्वजनिक रूप से सिर से पैर तक कपड़ा पहनने का आदेश दिया, उनके पार्क और जिम में जाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया, लड़कियों के खेलों में भाग लेने पर रोक लगा दी गई। वहीं तालिबानी शासकों ने अब अपने ताजा फैसले में महिलाओं की शिक्षा पर रोक लगा दी है। इसको लेकर उच्च शिक्षा मंत्रालय ने देश के सभी सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों को फरमान जारी किया है। जिसमें उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की किसी भी महिला को अपने कॉलेज में दाखिला नहीं दे सकते। और अगर कोई विश्वविद्यालय इस फैसले का विरोध करता है तो उस पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी।
यह फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब विश्वविद्यालय के विद्यार्थी अपने अंतिम साल के परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। इस फैसले के बाद अब कई छात्राएं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकेंगी। नई घोषणा के बाद अब अफगानिस्तान की छात्राएं अधिकतम 6वीं कक्षा तक की ही पढ़ाई कर सकेंगी। 3 महीने पहले ही तालिबान ने महिलाओं को विश्वविद्यालय के प्रवेश परीक्षा में बैठने की इजाजत दी थी। हजारों युवतियों और महिलाओं ने अफगानिस्तान के कई राज्यों में एग्जाम दिए थे। हालांकि, विश्वविद्यालय में विषयों के चयन को लेकर तालिबान ने प्रतिबंध लगाए थे। महिलाएं अभियांत्रिक, अर्थशास्त्र, विज्ञान और कृषि शिक्षा जैसे विषय नहीं पढ़ सकती थीं।
दरअसल दूसरी बार अफगानिस्तान की सत्ता में आनेवाले तालिबान ने खुद को बदलने का वादा किया था, लेकिन उसने अपने तालिबानी फैसलों से एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह बदलने वाला नहीं है। तालिबान ने कई ऐसे निर्णय लिए, जिससे लोगों के बुनियादी अधिकारों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ा, खासकर की महिलाओं एवं लड़कियों के लिए। यूनिवर्सिटी पर बैन की खबर से अफगान छात्राएं व्यथित हैं। सभी छात्राएं एक दूसरे को गले लगा रहे हैं, रो और चिल्ला रहे है ‘ सभी पीड़ित छात्रों का कहना है कि हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है’? आप हैरान हो जाएंगे जानकर की इस बार अफगानिस्तान पूरी दुनिया का एकलौता देश है जहां लड़कियों की सेकेंडरी एजुकेशन पर बैन लगा हुआ है। अब वहाँ लड़कियों के उच्च शिक्षा पर भी रोक लग गई है। यानी अब अफगानिस्तान की लाखों लड़कियां 6ं ठी क्लास के बाद किसी भी तरह की शिक्षा हासिल नहीं कर पायेंगी।
तालिबान के इस फैसले के बाद अफगानिस्तान में एक 52 वर्षीय शिक्षिका ने कहा, “मेरी एक छात्रा तालिबान के इस फैसले से बेहद परेशान है। मुझे नहीं पता कि मैं उसे कैसे दिलासा दूँ। उनमें से एक छात्रा काबुल चली गई है। उसने कई कठिनाइयों को पार करते हुए यहाँ के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया था। लेकिन आज उसकी सारी उम्मीदें और सपने चकनाचूर हो गए हैं।”
शिक्षिका ने कहा जब 1990 के दशक के अंत में तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुआ था, उस वक्त ‘मीना विश्वविद्यालय’ में पढ़ाई करती थीं। उन्होंने बताया, “मैं अपनी छात्रा के डर को अच्छी तरह से समझ सकती हूँ, क्योंकि पिछली बार जब वे सत्ता में आए थे, तब मुझे भी कई सालों तक अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। जिस दिन तालिबान ने राजधानी काबुल पर कब्जा किया था, मुझे उसी दिन पता चल गया था कि अब वे विश्वविद्यालयों में लड़कियों के प्रवेश कर प्रतिबंध लगाएँगे।”
उन्होंने आगे कहा, “भले ही अब वे स्मार्टफोन रखते हों, सोशल मीडिया पर उनका अकाउंट हो और बड़ी कारों में चलते हो, लेकिन ये अभी भी वही तालिबान है, जिसने मुझे शिक्षा से वंचित रखा और अब ये मेरे छात्रों का भी भविष्य खराब कर रहे हैं।”
दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद से ही महिलाओं की सुरक्षा और शिक्षा को लेकर सवाल उठने लगे थे। ऐसे में तालिबान का महिलाओं की शिक्षा को लेकर लिया गया यह फैसला चौंकाने वाला नहीं है। गौरतलब है कि नवंबर 2022 में तालिबान की बर्बरता का एक वीडियो भी सामने आया था। यह पूर्वोत्तर अफगानिस्तान में बदख्शाँ विश्वविद्यालय के परिसर का था। इसमें तालिबानी शासकों ने छात्राओं को कॉलेज परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया था। छात्रों पर डंडे बरसाए गए थे। जिस अधिकारी को छात्रों पर डंडों का इस्तेमाल करते हुए देखा गया था, वह तालिबान सरकार के ‘मोरल मंत्रालय’ से संबंधित था। वायरल वीडियो में तालिबान का एक अधिकारी छात्राओं को डंडों से दौड़ा-दौड़ा कर पीटते हुए दिख रहा था, क्योंकि वे अपने शिक्षा के अधिकार को लेकर विरोध कर रही थीं। अपनी कट्टरपंथी विचारधारा को लेकर कुख्यात अफगानिस्तान का तालिबान शासन दुनिया को भ्रमित करने का काम कर रहा है।
वहीं तालिबान ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि इस तरह के प्रतिबंध राष्ट्रीय हित और महिलाओं का सम्मान बनाए रखने के लिए किया गया है। तालिबान के कई अधिकारियों ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा प्रतिबंध अस्थायी हैं और इसके पीछे फंड की कमी है। तालिबान ने कहा कि फिर से नया पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है, जो इस्लामी तर्ज पर हो। तालिबान ने सत्ता में आने के बाद महिलाओं को रोजगार के अधिकांश क्षेत्रों से प्रतिबंधित कर दिया है।
तालिबान के आदेश को संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने परेशान करने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा, “यह कल्पना करना मुश्किल है कि महिलाओं की शिक्षा और उनकी भागीदारी के बिना कोई देश कैसे विकास कर सकता है। उन सभी चुनौतियों से कैसे निपट सकता है, जो उसके सामने हैं।” वहीं, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने भी तालिबान के महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का कहना है, “शिक्षा पर बैन लगाना न केवल महिलाओं और लड़कियों के समान अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि इससे देश के भविष्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।” अमेरिका और ब्रिटिश संयुक्त राष्ट्र दूत दोनों ने परिषद की बैठक के दौरान इस कदम की निंदा की। UN के उप राजदूत रॉबर्ट वुड ने कहा, ‘तालिबान तब तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का वैध सदस्य नहीं हो सकता जब तक कि वे सभी अफगानों के अधिकारों, विशेष रूप महिला के मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करते हैं।’
देखा जाये तो कुल मिलाकर तालिबान सरकार का प्रयास है कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका को पूरी तरह खत्म कर दिया, जो इस प्रकार है तालिबान का मानना है कि शिक्षित महिला अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती है इसलिए उसे शिक्षित होने से रोका जाये। जो हालात दिख रहे हैं उसके मुताबिक अफगानिस्तान में महिलाएं इस समय सबसे कठिन दौर से गुजर रही हैं क्योंकि अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का उनको कोई अधिकार नहीं रह गया है। उन्हें क्या पहनना है, कैसे रहना है, कहां जाना है, क्या काम करना है आदि बातें अब खुद तय करने का हक महिलाओं को नहीं है। अफगानिस्तान में महिलाएं जो कष्ट झेल रही हैं उनसे सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही बचा सकता है। तालिबान सरकार एक के बाद एक ऐसे हुक्म जारी कर रही है जिससे महिलाओं के सपनों, उनकी उम्मीदों, उनके अधिकारों पर तो चोट पहुँच ही रही है साथ ही अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महिलाओं की भूमिका भी पूरी तरह खत्म होती जा रही है।
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