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Friday, December 5, 2025
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श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल के बाद भारत?

अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक हो सकता है, लेकिन अमेरिका का दोस्त होना घातक है।

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पाकिस्तान के पॉप्युलर प्रधानमंत्री इमरान खान की रूस और चीन से क़रीबी, अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका को मदद करने से परहेज और अमेरिका से दुरी, यह बातें अमेरिकन्स को खल रही थी, तो अमेरिकन डिपस्टेट ने पाकिस्तान में तख़्तापलट करवाया। सत्ता पक्ष की कुछ पार्टियाँ और विपक्षी पार्टियों के मुंह में डॉलर्स की गड्डियां ठूंस दी। पाकिस्तानी जनरल को बनाया रिंगमास्टर और इमरान खान को भेज दिया जेल। यह तख़्तापलट खूबी के साथ किया गया था, इमरान की गिरफ्तारी से पहले संसद में अविश्वास प्रस्ताव पारित किया गया था। पाकिस्तान के बाद यह आग श्रीलंका तक पहुंची, लाखों की भीड़ ने श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन पर हमला कर दिया।

श्रीलंका के बाद बांग्लादेश की बारी आई, अमेरिकी डीप स्टे्ट को बांग्लादेश का सेंट मार्टिन आइलैंड चाहिए था, लेकीन भारत और चीन से अच्छे रिश्तों के चलते शेख हसीना ने यह देने से मना कर दिया। फिर डिपस्टेट ने बांग्लादेश में भी आग लगाई, लोगों ने शेख हसीना के आवास पर हमला कर दिया, उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा… और आज नेपाल की हालत दुनिया देख रही है। नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफ़ा दिया है, सरकार बर्खास्त हो चूकी है मगर हिंसा का दौर अभी भी शुरू नहीं हुआ। जेन झी द्वारा यह तख़्तापलट करवाया गया, इन आंदोलनकारियो ने केवल सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करने के कारण इतना बड़ा क़दम उठाया यह बात पचती नहीं है।

नेपाल एक विकसनशील देश है, इस देश के पास ज्यादा संसाधन नहीं है। चीन, अमेरिका जैसे देश यहां तख़्तापलट को अंजाम दे सकते है इसमें कोई दोराय नहीं है। वैसे भी इस देश पर कम्युनिस्ट सरकार सवार थी, जो चीन की पक्षधर थी, इसीसे गुस्साए लोगों ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया, यानी चीन इस तख्तापलट के पिछे नहीं है। अभी तक आंदोलनकारियों ने केवल संविधान बदलने की मांग की है राजसत्ता के वापसी की नहीं इसीलिए इसके पिछे भारत नहीं है यह भी सिद्ध होता है। मगर नेपाल को जलाने में अमेरिका का हाथ नज़र आता है। 

सबसे महत्वपूर्ण बात यही है की, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल यह सारे देश राजसत्ता की आग में झुलस गए और यह सभी देश भारत के चौतरफा है। इसीलिए भारत सतर्क है, सचेत है। भारत की एजेंसियां और भी चौकन्नी हो चुकी है। नेपाल की जेल से 6000 कैदियों के भागने, पूर्व प्रधानमंत्री शेर बाहदुर देउबा, वित्तमंत्री को भीड़ से पिटे जाने, नेपाल की पार्लिमेंट में आग लगाने के  कई किस्से महज तीन दिन में हुए है, इसीलिए भारत की सरकार लगातार नेपाल की आर्मी से संपर्क में है। भारत की कोशिश है की इस आग की लपटें हमारी देश तक न पहुंचे। 

नेपाल की अराजकता देख भारत के अराजकतावादियों का कतई स्खलन होता दिखता है। उनका ऐसा स्खलन श्रीलंका और बांग्लादेश के समय भी दिख रहा था। पीएम मोदी को हटाने के स्वप्न देखने वालों में सबसे अधिक रूचि गांधी-नेहरू परिवार और उनके चाटुकारों की है, उनके बाद वामपंथी जमात की है। उन्हें दिन भर भारत में तख्तापलट और हिंसक आंदोलनों के स्वप्न आते रहतें है, उन्हें मोदीजी और अमित शाह रास्ते से भागते दिख रहें है। 

वास्तविक पीएम मोदी ग्यारह सालों से देश की कमान सभले हुए है। इतने सालों में उन्होंने कोई भी ऐसा फैसला नहीं लिया की भारत को किसी और देश के फायदे के लिए अपने देश के हितो के साथ समझौता करना पड़े। उनकी इसी नीति के कारण भारत की बड़ी जनसँख्या उनके पिछे खड़ी है, देश का बहुसंख्य वर्ग पीएम मोदी को पिछले ७० सालों में देश का सबसे बेहतरीन प्रधानमंत्री मानता है।

मोदी सरकार ने अपने पुराने वादें पुरे किए है। डिजिटल क्षेत्र में प्रगति की है, जिससे सरकार आपके फ़ोन पर उपलब्ध है, सरकार और जनता के बीच विश्वास का एक मज़बूत रिश्ता बना हुआ है। यही विश्वास, किसी भी बाहरी हस्तक्षेप का सामना करने के लिए भारत के काम आता है, चाहे वो डीप स्टेट ही क्यों न हो। भारत ने पिछले एक दशक में आर्थिक स्थिरता बनाए रखी है। वैश्विक निवेश आकर्षित करने की क्षमता, डिजिटल अर्थव्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि, यह सभी भारत की स्वतंत्र अर्थव्यवस्था के आधार स्तंभ हैं। भारत की आर्थिक स्थिरता भारत को अपने पड़ोसियों के मुक़ाबले ज़्यादा मज़बूत बनाती है। इसीलिए कोरोना जैसे संकट के बाद भी, बिना किसी बाहरी दबाव के, भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी बनी हुई है।

पीएम मोदी जब तक ऊँचे पायदान पर खड़े है भारत को कोई और डिक्टेट नहीं कर सकता यह बात जो बाइडन भी समझ चुके थे, डीप स्टेट भी समझ गया और अब 50 प्रतिशत टेर्रिफ लगाने वाले डोनाल्ड ट्रम्प भी समझ गए होंगे। 

भारत में बसे अराजक तत्व डोनाल्ड लू, एरिक गार्सिटी जैसे अमेरिकी सीएआईए के प्यादों से मिलकर भारत में ऐसे ही तख़्तापलट करने की कोशिशें कर चुके है। किसान आंदोलन, सीआईए आंदोलन, अदानी को लेकर झूठा प्रचार और हाल ही में वोट चोरी का झूठ यह सभी मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के हथखण्डे थे। जो बाइडन की सरकार ने तो पीएम मोदी को हटाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। लेकीन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। 

लेकीन हाल ही में अमेरिका के साथ तीन बार व्यापार समझौता असफल हुआ, भारत पर 50 प्रतिशत टेर्रिफ लगाए, लेकीन भारत ने फिर भी अमेरिका के फायदे के लिए भारत के किसानों और मछुवारों के साथ अन्याय नहीं सहा। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर कहा था की “उन्हें इसके लिए व्यक्तिगत क़ीमत चुकानी पड़ सकती है।” यह कोई तालीयां बटोरने के लिए दिया गया  वक्तव्य नहीं है। यह सन्देश है की पीएम मोदी का अमेरिका से पंगा लेना बेहद जोख़िम भरा है।

डोनाल्ड ट्रंप के खूसट सलाहकार पीटर नवारो, हावर्ड ल्युटनिक पीएम मोदी और भारत पर कठोर भूमिका लेते दीखते है। खुद डोनाल्ड ट्रंप भारत की अर्थव्यवस्था को मृत अर्थव्यवस्था कह चुके है। लेकीन कल तक उन्होंने दो बार पीएम मोदी से मित्रता का सोशल मीडिया प्रदर्शन किया है। दोनों नेताओं ने फिर एक बार समझौते की मेज पर बैठने का फैसला लिया है। ट्रंप हमेशा पीएम मोदी से बात करते वक्त उनके बीच की दोस्ती की बात करते है।  आज भी कर रहें है, लेकीन ट्रंप सरकार की ओर से आने वाले बयानो से आहत पीएम मोदी ने मेरे दोस्त डोनाल्ड ट्रंप की लाइन छोड़ दी है। शायद उन्हें भी हेनरी किसींजर की यह बात समझ आने लगी है की “अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक हो सकता है, लेकिन अमेरिका का दोस्त होना घातक है।”

पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच साथ संबंध सुधारेंगे या इस दोस्ती से पीएम मोदी को व्यक्तिगत क़ीमत चुकानी होगी, यह सवाल मोदी समर्थक जनता में दिखाई देता है।

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