विपक्षी एकता पर प्रशांत किशोर और गुलाम नबी आजाद की राय!

विपक्षी एकता को लेकर जहां चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा था कि बीजेपी के पास ऐसे मुद्दे जो विपक्ष के पास नहीं है। वहीं कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद विपक्षी एकता पर कहा कि ऐसी कोई एकजुटता दिखाई नहीं दे रही है।    

विपक्षी एकता पर प्रशांत किशोर और गुलाम नबी आजाद की राय!

कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद चर्चा में है, उनकी आत्मकथा “आजाद एन ऑटोबायोग्राफी में उन्होंने कांग्रेस को लेकर कई खुलासे किये है। इसमें सबसे बड़ी बात यह कही गई है कि जब कश्मीर से धारा 370 हटाने के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने ऐलान किया था तो उन्होंने इसका विरोध किया था और राज्यसभा में धरना दिया था। इसमें कई विपक्ष के नेता शामिल हुए थे, लेकिन कांग्रेस नेता जयराम रमेश शामिल नहीं हुए थे।ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या जयराम रमेश ने कश्मीर से धारा  370 हटाने का समर्थन किया था। अगर आजाद की बातों को माने तो यही उत्तर सामने आता है। या  कुछ और मामला था तो जयराम को सामने आकर इस पर अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए। क्या ऐसा जयराम कर सकते हैं ? यह अभी देखना होगा।

इसके अलावा आजाद ने वर्तमान में बीजेपी के नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा को भी लेकर बड़ा दावा किया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि हिमंत बिस्वा के पार्टी छोड़ने के मुद्दे पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी से बात की थी लेकिन दोनों नेताओं ने गंभीरता से नहीं लिया। जहां सोनिया गांधी ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जबकि राहुल गाँधी का कहना था कि उन्हें जाने दो। गौरतलब है हिमंत बिस्वा सरमा पहले कांग्रेसी नेता थे। बाद में मतभेद होने पर राहुल गांधी से मिलने गए थे लेकिन राहुल गांधी ने सरमा की बातें सुनने के बजाय अपने  कुत्तों को बिस्किट खिलाते रहे। यह आरोप खुद सरमा ने पार्टी छोड़ने पर लगाया था।

इसके अलावा, गुलाम नबी आजाद ने मीडिया से बात करते हुए वर्तमान राजनीति पर भी बड़ी बातें कही। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कोई विपक्ष नहीं है और न ही बन सकता है। उन्होंने कहा जो क्षेत्रीय दल हैं वे अपने राज्य में खुश हैं और वे बाहर निकलने से डरते हैं कि उनका बना बनाया खेल खत्म हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी कोई महत्वकांक्षा नहीं है। हालांकि वर्तमान में ऐसा नहीं दिखाई दे रहा क्योंकि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी, नीतीश कुमार  और केसीआर की महत्वकांक्षा दिल्ली पहुंचने की है। बहरहाल अभी देखना होगा कि दिल्ली कौन पहुंचता है।

वहीं, उन्होंने कहा कि कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व अपने दम पर किसी भी राज्य में कोई सीट नहीं जीता सकता है। जिन राज्यों में कांग्रेस रसातल में मिल गई है, वहां की क्षेत्रीय पार्टियों से कैसे गठबंधन किया जा सकता है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें है, लेकिन कांग्रेस ने एक भी सीट नहीं जीती है, ऐसे में कांग्रेस  टीएमसी को कैसे फ़ायदा पहुंचा सकती है। इस हालात में टीएमसी कांग्रेस से क्यों गठबंधन करेगी। टीएमसी क्यों कांग्रेस को 5 या इससे ज्यादा सीटें देगी? उन्होंने यह भी कहा कि कई राज्यों में कांग्रेस की वजह से ही क्षेत्रीय दलों को हार का सामना  करना पड़ा है।

दरअसल, आजाद की बात अपने आप में कई मतलब समेटे हुए है। क्योंकि, कांग्रेस सहित विपक्ष के कई राजनीति दल पीएम मोदी को हराने के लिए कई प्रकार की रणनीति बना रहे है जिसमें यह भी सामने आया है कि सभी क्षेत्रीय दल आगामी लोकसभा चुनाव में अपने-अपने राज्यों में मजबूती के साथ बीजेपी के सामने चुनावी मैदान में उतरेंगे। यह सीक्रेट प्लान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का बताया जा रहा है। इस संबंध में मेरी पिछली वीडियो में विस्तार से चर्चा की गई है। जिसमें ममता बनर्जी और केजरीवाल की सीक्रेट रणनीति के बारे में बताया गया है।

इसके अलावा, अक्सर विपक्ष के कई नेताओं को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि कांग्रेस के बिना विपक्ष की एकजुटता बेईमानी है, लेकिन क्या वर्तमान में कांग्रेस के साथ कोई राजनीति दल  गठबंधन करना चाहता है? यह सवाल अहम है, क्योंकि यह कांग्रेस के अस्तित्व से जुड़ा है। वर्तमान में केवल राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और बिहार में महागठबंधन के साथ सरकार में है। लेकिन पूछा जा रहा है कि क्या इन राज्यों में शीर्ष नेतृत्व का कोई प्रभाव है?  तो कहा जा सकता है कि नहीं, राहुल गांधी-सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का कोई प्रभाव नहीं है।

इसको इस उदाहरण से समझ सकते हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट में अदावत जारी है। इस नूराकुश्ती को खत्म करने के लिए प्रियंका गांधी ,राहुल गांधी यहां तक की सोनिया गांधी ने भी हस्तक्षेप कर चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई फ़ायदा दिखाई नहीं दे रहा है। कहा जा सकता है कि लोकल नेताओं के आगे कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व नकारा साबित हो रहा है।

अब, गुलाम नबी आजाद के उस बयान को दोबारा रिपीट करते हैं कि “विपक्षी एकता नहीं होने वाला है।” अगर हम यह मान लेते हैं कि विपक्ष एकजुट हो भी गया तो क्या पीएम मोदी को हरा सकता है। यह भी बड़ा सवाल हो सकता है। इस संबंध में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कुछ दिन पहले मीडिया से बात करते हुए कहा था कि अगर विपक्ष पीएम मोदी के खिलाफ लामबंद हो भी जाता है तो बीजेपी को हराना मुश्किल है। सीटें कम ज्यादा हो सकती हैं।

उन्होंने कहा था कि बीजेपी के पास मजबूत मुद्दा है, लेकिन विपक्ष मुद्दाविहीन है। उन्होंने कहा था कि  बीजेपी राष्ट्रवाद, हिंन्दुत्व जैसे मुद्दों को लेकर लड़ती है जो जनता से जल्द जुड़ जाते हैं। यह बात सही है कि वर्तमान में विपक्ष के पास मुद्दा  नहीं है। जिस तरह से कांग्रेस लोकतंत्र को लेकर सवाल उठाती है। यह मुद्दा आम जनता से जुड़ा हुआ नहीं है। क्योंकि, आज जिस तरह से लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं उससे साफ है कि लोग इस बातों से सहमत नहीं हैं। दूसरी बात की पीएम मोदी की अपनी लोकप्रियता है। उनके बोलने का अंदाज उन्हें ख़ास बनाता है। यही वजह है आज पीएम मोदी देश में ही नहीं विदेश में भी लोकप्रिय हैं।

बहरहाल, वर्तमान की राजनीति पीएम मोदी और विपक्ष के आसपास घूम रही है। विपक्ष का चेहरा कोई बनता है कि नहीं यह अभी देखना बाकी है क्योंकि विपक्ष की एकजुटता की बात की जा रही है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। तो देखते वागे क्या होता है।

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