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Friday, September 20, 2024
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क्या बाढ़ का बहाना बनाकर केजरीवाल बेंगलुरु बैठक से करेंगे किनारा?

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सोनिया गांधी ने विपक्षी नेताओं की बेंगलुरु में होने वाली बैठक से पहले अपने घर पर डिनर के लिए बुलाया है। इस बैठक में लगभग 24 राजनीति दलों के नेताओं को बुलाया गया है। इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी बुलाया गया है। वहीं, खबर यह भी है कि बेंगलुरु की बैठक में ममता बनर्जी ने आने से इंकार कर दिया था, लेकिन खुद सोनिया गांधी ने फोन कर उन्हें बुलाया। उन्होंने पैर के चोट का बहाना बनाकर अपने प्रतिनिधि भेजने की बात कहीं थी। वहीं केजरीवाल ने भी यह तय नहीं किया है कि सोनिया गांधी की पार्टी में शामिल होंगे की नहीं। सवाल यह कि क्या ममता बनर्जी अपने पैर की चोट की वजह से इस बैठक में शामिल नहीं हो रही हैं या बात कुछ और है।

केजरीवाल ने इस संबंध में कोई बयान जारी नहीं किया है। ऐसे माना जा रहा है शायद ही केजरीवाल इस बैठक में शामिल हों। ममता बनर्जी ने जब पैर में चोट होने पर भी पंचायत चुनाव में रैली कर सकती हैं तो बैठक में शामिल होने में क्या हर्ज है। ऐसा कहा जा सकता है कि ममता बनर्जी ने चोट का बहना बनाकर इस बैठक में आने से इंकार किया है। ममता बनर्जी अपनी महत्वाकांक्षा को ताख पर नहीं रखा है। बस उसे जाहिर नहीं कर रही हैं। ममता बनर्जी सही समय का इन्तजार कर रही है। उसके बाद अपना पत्ता खोलेंगी।

ममता बनर्जी कांग्रेस के छाँव से निकलना चाहती हैं,लेकिन मज़बूरी में साथ आना पड़ रहा है। टीएमसी ने यह साफ़ कर दिया है कि वह बंगाल में किसी के साथ सीट शेयर नहीं करेंगी। टीएमसी का कहना है कि वह राज्य में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। उसे विपक्ष की जरूतनहीं है। साफ है कि ऐसे बयानों से विपक्षी एकता को झटका लग सकता है। वैसे बंगाल में कांग्रेस और टीएमसी का महाभारत बाकी है। हालांकि, कांग्रेस नेता अधीर रंजन कांग्रेस के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन क्या अधीर रंजन ममता बनर्जी के सामने यह लड़ाई जीत पाएंगे ? यह सवाल इसलिए की अधीर रंजन के समर्थन कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व खुलकर सामने नहीं आ रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व दो स्तर पर लड़ाई लड़ रहा है। एक ममता बनर्जी को साथ बनाये रखना चाहता है तो दूसरी ओर  अधीर रंजन को भी लड़ाई में रखना चाहता है। साफ है कि कांग्रेस पूरी तरह से बंगाल से नहीं हटाने वाली, यहां वह कुछ सीटों पर अपना दांवा ठोंकने वाली है। जिससे ममता बनर्जी और कांग्रेस आमने सामने आ सकते हैं।

बताया जा रहा है कि ,17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली बैठक में एक कॉमन एजेंडा पर चर्चा हो सकती है। इतना ही नहीं यह भी कहा जा रहा है कि इस बैठक में तीन वर्किंग ग्रुप का गठन किया जा सकता है। साफ कि विपक्ष के नेताओं को सोनिया गांधी एक ट्रैक पर लाने की कोशिश करने के लिए ही बेंगलुरु से पहले दिल्ली में बैठक बुलाई है। इस ग्रुप का मुख्य काम सभी राज्यों में गठबंधन का रूपरेखा तैयार करना है। बताया जा रहा है कि यह ग्रुप तय करेंगा कि कौन सा प्रत्याशी बीजेपी उम्मीदवार के सामने खड़ा होगा। साथ ही इस ग्रुप को यह भी जिम्मेदारी दी गई है कि वह जीत सुनिश्चित करे। इसके लिए कौन सा मुद्दा और कौन सी रणनीति पर काम किया जाएगा।

अब अगर विपक्षी एकता के दूसरे सबसे बड़ा नेता केजरीवाल की बात करें तो उन्होंने अभी तक सोनिया गांधी की पार्टी में जाने की हामी नहीं भरी है।  दूसरा नेता कहने का मतब है कि कांग्रेस के बाद आप की ही दो राज्यों दिल्ली और पंजाब में सरकार है। केजरीवाल, ममता बनर्जी की ही तरह दिल्ली में आई बाढ़ का बहाना और बीजी शेड्यूल का बहाना बनाकर दोनों पार्टी में जाने से इंकार कर सकते हैं। केजरीवाल पहले की केंद्र के अध्यादेश पर उसके विरोध में कांग्रेस से समर्थन मांग रहे हैं। केजरीवाल का कहना है कि कांग्रेस इस संबंध में सार्वजनिक रूप से घोषणा करे। तो साफ है कि केजरीवाल को सिर्फ बहाना चाहिए, जो सबके सामने है। कांग्रेस भी कोई जल्दबाजी में कदम नहीं उठाना चाहती है, क्योंकि उसे बढ़ा नुकसान हो सकता है।

वैसे भी दिल्ली ,पंजाब और गोवा में कांग्रेस के लिए आम आदमी मुसीबत बन चुकी है। अगर केजरीवाल विपक्ष की एकता से दूर होंगे तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा अगर किसी भुगतना होगा तो कांग्रेस को। आप दिल्ली ,पंजाब ,राजस्थान ,मध्य प्रदेश और गोवा में  कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती है। अगर कांग्रेस आप के साथ खड़ा होती है तो दिल्ली और पंजाब में सीट पर समझौता करना पड़ सकता है। जिस पर राज्य के नेता सहमत नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस कौन सा रास्ता निकालती है यह देखना होगा।

 

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