पिछले दो लोकसभा चुनाव कई राजनीति दल मात खाने के बाद भी विपक्ष अकड़ा हुआ है। बिना रणनीति के कुछ भी बोलना, कुछ भी करना विपक्ष का शगल बना हुआ है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद तो विपक्ष के हर नेता का तेवर और सुर बदला हुआ नजर है। ऐसा लगता है कि आज ही लोकसभा चुनाव हो और देशभर सभी लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर लेगा। है न अजीब बात,लेकिन क्या विपक्ष सच्चाई को नकार रहा है ? यह बड़ा सवाल हो सकता है। सपना देखना बुरा नहीं है लेकिन सच्चाई को नकारना अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा है। तो क्या विपक्ष अतिविश्वास से भरा हुआ है। यह तो 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा लेकिन अभी ऐसा ही लग रहा है।
गौरतलब है कि कर्नाटक जीत के बाद कांग्रेस अति उत्साहित नजर आ रही है। 20 मई को सिद्धारमैया सीएम पद और डीके शिवकुमार उपमुख्यमंत्री की शपथ लेंगे। इस शपथ समारोह में विपक्ष के कई नेता शामिल होने वाले है। वहीं, कई दलों के नेताओं को इस समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है। जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के सीआर, राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया जयंत चौधरी, चंद्रबाबू नायडू आदि को नहीं बुलाया गया है। सबसे बड़ी बात यह कि 2018 में भी इसी तरह का विपक्ष का जुटान हुआ था। जिसमें इस समय के विपक्ष के कई नेता शामिल नहीं होंगे या उन्हें बुलावा नहीं भेजा गया है। जबकि, ऐसे कई नए चेहरे हैं जो इस बार के समारोह में शामिल होंगे।
बता दें कि 2018 में कांग्रेस जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। उस समय एचडी कुमारस्वामी सीएम बने थे। कुमारस्वामी के शपथ समारोह में भी विपक्ष जमावड़ा लगा था। जिसमें तब विपक्ष के नेताओं में शामिल मायावती की सोनिया गांधी से गले मिलते हुए तस्वीर खूब चर्चा बटोरी थी। लेकिन इस बार के समारोह में मायावती को नियंत्रण नहीं दिया गया है। लेकिन ममता बनर्जी को निमंत्रण दिया गया था, लेकिन कहा जा रहा है कि वे समारोह में शामिल नहीं होंगी। वे अपना प्रतिनिधि भेजेंगी। वहीं, 2018 में ममता बनर्जी और सीताराम येचुरी में भी हाय हैलो करते तस्वीरें सामने आई थी।
इस बार भी सीपीएम मार्क्सवादी के महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई के महासचिव डी राजा भी शामिल होंगे। इस बार के समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, महबूबा मुफ़्ती, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, एनसीपी मुखिया शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अभिनेता और नेता कमल हसन को भी बुलाया गया है।
बता दें कि 2018 के शपथ समारोह में चंद्र बाबू नायडू और राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया रहे अजित सिंह चौधरी शामिल हुए थे, लेकिन इस बार चंद्रबाबू नायडू को नहीं बुलाया गया है। जबकि अजित सिंह चौधरी का 2021 में निधन हो गया। वहीं, उनके बेटा जयंत चौधरी पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। इस समय अखिलेश यादव और जयंत चौधरी में अच्छी बन रही है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में दोनों साथ मिलकर चुनाव लड़े थे।
गौरतलब है कि इस बार भी कुछ भी नहीं बदला है. केवल मंच बदला है और कुछ चेहरे। इस बार पीएम के उम्मीदवारों में कई नाम है। जबकि पिछली बार ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई थीं, लेकिन 2018 में भी कांग्रेस ने शपथ ग्रहण समारोह को शक्ति प्रदर्शन के रूप में इस्तेमाल किया था। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए इस बार नीतीश कुमार घूम घूमकर विपक्ष के नेताओं को एकजुट करने का काम कर रहे हैं। जबकि बड़ा सवाल यह है कि पिछले दिनों नीतीश कुमार नवीन पटनायक से मिले थे। दोनों नेताओं की बैठक के बाद नवीन पटनायक ने यह कहकर विपक्ष की हवा निकाल दी थी कि इस संबंध में कोई बात ही नहीं हुई।
इसी तरह, ममता बनर्जी को भले बुलावा भेजा गया हो, मगर कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस टीएमसी मुखिया से दूरी बनाए हुए थी। लेकिन, चुनाव परिणाम आने के बाद ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ आने के लिए हामी भरी थी.जबकि उससे पहले ममता बनर्जी ने कहा था कि टीएमसी लोकसभा का चुनाव अकेले दम पर लड़ेंगी। लेकिन, ये वही कहावत हो गई कि पल में तोला, पल में माशा। यानी समय देखते हुए ममता बनर्जी गिरगिट की तरह रंग बदल रही है।
बहरहाल, केजरीवाल को कांग्रेस द्वारा निमंत्रण नहीं देने की बात समझ में आती है। 2013 से लेकर अब तक अरविंद केजरीवाल ने केवल कांग्रेस को झटके पर झटका दिया है। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से दो राज्य छीन लिए हैं जिसमें पंजाब और दिल्ली शामिल है। इसके साथ ही गुजरात, गोवा में लगातार आम आदमी कांग्रेस का वोट छिनती नजर आ रही है। इस साल राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं। जहां आम आदमी पार्टी लगातार सक्रिय है। माना जा रहा है कि इन चुनावों में भी कांग्रेस को आम आदमी पार्टी बड़ा झटका देगी।
पिछले दिनों आप नेताओं की गिरफ्तारी पर कांग्रेस ने चुप्पी साध रखी थी। हालांकि, बीच में केजरीवाल ने नीतीश कुमार से मुलाकात कर विपक्ष को नई आस जगा दी थी, लेकिन, कांग्रेस ने कर्नाटक शपथ ग्रहण समारोह में नहीं बुलाकर खटास को और बड़ा दिया है। इसी तरह तेलंगाना के सीएम केसीआर कांग्रेस और बीजेपी से इतर तीसरा मोर्चा बनाये जाने की कवायद कर रहे थे, इसके साथ ही उन्होंने नीतीश कुमार से भी मिले हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कर्नाटक परिणाम के बाद जानबूझकर केसीआर से दूरी बनाई है।
बताया जा रहा है तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ताल ठोंकने वाली है। जिससे केसीआर की भारत राष्ट्र समिति सजग हो गई है और अपने कार्यकर्ताओं को कांग्रेस से सतर्क रहने को कहा है। इतना ही नहीं केसीआर महाराष्ट्र में भी अपनी पैठ बना रहे हैं। वहीं, जगनमोहन रेड्डी पीएम मोदी के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस उनसे दुरी ही बनाने में अपना भला समझा है।
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