रामनवमी पर शोभायात्रा के दौरान बंगाल से लेकर बिहार तक और महाराष्ट्र से लेकर गुजरात तक हिंसक झड़पें हुई हैं। हरियाणा तेलंगाना में भी शोभायात्रा के दौरान पथराव किया गया। इनमें महाराष्ट्र के संभाजी नगर, गुजरात के वड़ोदरा, पश्चिम बंगाल के हावड़ा के अलावा हरियाणा के सोनीपत और बिहार के सासाराम व बिहारशरीफ स्थिति ज्यादा भयावह रही। बिगड़े हालात में इन सभी स्थानों पर प्रशासन ने धारा 144 लगाई और इंटरनेट तक बंद कर दिया।
पश्चिम बंगाल के हावड़ा के शिवपुर इलाके में हिंसा की पहली लहर उठी। दो समुदाय आपस में मामूली बात को लेकर भिड़ गए। दो गुटों में पत्थरबाजी हुई और देखते ही देखते दर्जनों दुकानें और गाड़ियों को भीड़ ने आग लगा दी। पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े। कई लोग पुलिस की गिरफ्त में हैं। शोभायात्रा के दौरान इस इलाके में हिंसा भड़की थी। कुछ लोग छत से पत्थर फेंक रहे हैं, कुछ उपद्रवी शोभा यात्रा में बाधा डाल रहे हैं। पत्थरबाजी के बाद वहां हंगामा बरप गया।
सासाराम में रामनवमी की शोभायात्रा को लेकर शुरू हुआ विवाद शुक्रवार को हिंसक हो गया था। दोनों तरफ से जमकर पत्थरबाजी हुई। घरों पर बम चलाए गए। कुछ घरों को आग के हवाले कर दिया गया है। पुलिस से हालात काबू करने के लिए हवाई फायरिंग करनी पड़ी। हालात काबू में लाने के लिए सासाराम में इंटरनेट बंद कर दिया गया है। यहां पर 18 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। गृहमंत्री अमित शाह रविवार को सासाराम आने वाले थे, लेकिन हिंसा के चलते उनका दौरा रद्द हो गया है।
महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर के किराडपुरा इलाके में दो गुटों के बीच हिंसक झड़प हुई। मौके पर पहुंची पुलिस पर भी लोगों ने पथराव किया और उनके वाहनों में आग लगा दी। हमले में 10 पुलिसकर्मी समेत 12 लोग घायल हो गए। बंगाल-बिहार और महाराष्ट्र इन तीन राज्यों में अब तक 80 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया है। इनमें गुजरात में 24, महाराष्ट्र में 20 और बंगाल में 36 लोग शामिल हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने बंगाल के राज्यपाल से घटना की जानकारी ली है।
अशान्ति फैलाने को लेकर पश्चिम बंगाल में अलग ही मामला देखने मिला। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि यह सब भारतीय जनता पार्टी की साज़िश है। ममता बनर्जी ने हिंदुओं को चेतावनी देते हुए कहा कि मुस्लिम रमजान में हिंसा नहीं करते। उन्होंने हिंसा की सारी जिम्मेदारी भाजपा और हिंदुओं पर फोड़ा। ममता बनर्जी ने आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी हर मौक़े पर, हर त्योहार पर ऐसा करती है ताकि पश्चिम बंगाल को अशांत दिखाया जा सके। यह बताया जा सके कि पश्चिम बंगाल की क़ानून व्यवस्था ठीक नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि पुलिस भी इस दौरान कुछ क्यों नहीं कर पाई तो ममता का जवाब था कि शोभायात्रा निकालने वालों ने इतना उपद्रव मचाया कि पुलिस भी कुछ कर नहीं पा रही थी। सीएम ममता ने यह भी कहा कि भाजपा की ओर से दंगे फैलाने के लिए लोग बाहर से बुलाए गए हैं।
वहीं जब सवाल किया गया कि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ उपद्रवी तत्वों ने शोभायात्रा पर पथराव किया और कुछ वाहनों को भी फूंक डाला? इसपर ममता ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय ने ऐसा कुछ भी नहीं किया क्योंकि वे सब तो रमज़ान और रोज़ा में व्यस्त हैं। उनके पास इस सबके लिए वक्त ही नहीं है।
कुल मिलाकर शोभायात्रा पर पथराव और वाहनों पर हमलों का दोष भी ममता शोभायात्रा निकालने वालों पर यानी हिन्दुओं पर ही मढ़ रही हैं। मुख्यमंत्री जैसे ज़िम्मेदार पद पर बैठकर तो कम से कम इस तरह के एकतरफ़ा बयान नहीं देना चाहिए। ममता का कहना तो यह भी है कि मुस्लिम इलाक़ों से शोभायात्रा निकाली ही क्यों? अब क्या ममता बनर्जी इलाक़ों का भी बँटवारा कर देना चाहती हैं? कि ये इलाक़ा मुस्लिमों का है, यहाँ हिन्दू न जाएँ और वो इलाक़ा हिन्दुओं का है, वहाँ मुस्लिम न जाएँ! इस तरह के एकतरफ़ा विचार कभी भी समग्र समाज का भला नहीं कर सकते। बल्कि इस तरह के बयानों के कारण हिंसात्मक घटनाओं को बल मिलता है और हिंसा फैलाने वाले असामाजिक तत्वों को प्रोत्साहन भी मिलता है। ममता बनर्जी ने जिस तरह का बयान दिया है, ऐसी बयानबाज़ी से हर किसी को बचना चाहिए, चाहे वह शोभायात्रा का अवसर हो या जुलूस का मौक़ा।
हालांकि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने हावड़ा में रामनवमी के जुलूस के दौरान हुई हिंसा को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधा। स्मृति ने ममता बनर्जी पर जुलूस के दौरान पथराव करने वालों को क्लीन चिट देने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा “सवाल यह है कि ममता कब तक हिंदू समुदाय पर हमले करती रहेंगी।” स्मृति ईरानी ने कहा कि ममता के शासन में हुई यह पहली घटना नहीं है। साल 2022 में लक्ष्मी पूजा कर रहे दलितों पर हमला किया गया था। उस समय भी ममता चुप थीं। इससे पहले बंगाल भाजपा के नेता ने ममता बनर्जी पर आरोप लगाया था। उन्होंने मामले की जाँच NIA से कराने की माँग की थी।
बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस के महासचिव और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने कहा कि अपराधियों का कोई धर्म नहीं होता। उन्होंने कहा कि ये भाजपा ही है, जो कार्रवाई करने से पहले अपराधियों के धर्म के बारे में बात करती है। हालांकि अभिषेक बनर्जी यहीं नहीं रूके। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी ने सभी लोगों से शांति की अपील की, लेकिन भाजपा के किसी नेता ने ऐसी अपील नहीं की। उन्होंने कहा कि भाजपा चाहती है कि शांति कभी ना हो। बनर्जी ने आरोप लगाया कि शोभायात्रा में शामिल लोग तलवार, बंदूक, पिस्तौल जैसे हथियार लिए हुए थे।
पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिंसा कोई नई बात नहीं है। राज्य में 70 के दशक से नक्सल के उदय के साथ हुआ हिंसा का दौर अब भी जारी है। नक्सल के उदय के साथ राज्य में शुरु हुआ हिंसा में पार्टियां और चेहरे तो बदलते रहे हैं, लेकिन हिंसा का स्वरूप नहीं बदला है। राज्य का सियासी इतिहास इस बात का गवाह है कि सूबे में जब भी सत्तारूढ़ दल को किसी भी विरोधी दल से चुनौती मिलती है तो हिंसा का दौर तेज होता जाता है। बात चाहे राज्य में टीएसी और वाम दलों के बीच संघर्ष के लंबे दौर की हो या बीते 4 सालों से टीएमसी और भाजपा के बीच की। बंगाल में इन दिनों भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में है और वह सत्तारूढ टीएमसी को बड़ी चुनौती दे रहे है।
साथ ही ममता का यह बयान कि वह मोदी के खिलाफ दिल्ली में भी धरना दे सकती है, उनकी भविष्य की राजनीति की ओर साफ इशारा है। 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद ममता बनर्जी अब 2024 में मोदी के खिलाफ अपने को एक चेहरे को स्थापित करने के साथ-साथ विपक्ष का एक साझा चेहरा बनने की कोशिश में है। ममता बनर्जी एक लंबे समय से राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की मुहिम में भी लगी हुई है। इस मुहिम में अब तक ममता को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का खुलकर साथ मिल चुका है। वहीं एनसीपी नेता शरद पवार से ममता बनर्जी की कई दौर की मुलाकात हो चुकी है। जबकि ममता कई मौकों पर विपक्षी दल को 2024 के लिए एक साझा मंच बनाने का संकेत दे चुकी है। वहीं बात यदि साल 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो राज्य में भाजपा ने टीएमसी को बड़ा झटका देते हुए राज्य में 42 सीटों में 18 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी और इसमें हिंदुत्व के कार्ड की बड़ी भूमिका थी।
बंगाल में रामनवमी से शुरु हुई हिंसा की इस ताजा कड़ी को इस साल बंगाल में होने वाले पंचायत चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। ममता बनर्जी की निगाहें अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ इस साल होने वाले पंचायत चुनाव पर भी टिकी है। पंचायत चुनाव में टीएमसी का सीधा मुकाबला भाजपा से ही होगी। वहीं पश्चिम बंगाल की कुल आबादी में मुस्लिम वोटरों की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी के आस-पास है ऐसे में ममता अपने इस कोर वोट बैंक को किसी भी हालात में नाराज नहीं करना चाहती है और इसलिए वह इस तरह के बयान दे रही है। हालांकि हर जगह पार्टी के स्तर और फायदे के हिसाब से टिप्पणी करना ये बेहद अशोभनीय है। ममता बनर्जी एक राज्य की सीएम है इस नाते हिन्दू-मुस्लिम वाद-विवाद को जोर ना देकर उसपर विराम लगाना अति आवश्यक था। जिसकी उपेक्षा ममता बनर्जी से करना यह हास्यास्पद प्रतीत होता है।
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