महाराष्ट्र में विपक्षी महा विकास आघाड़ी के घटक दलों ने शक्ति प्रदर्शन के तहत राज्य में एकनाथ शिंदे-भारतीय जनता पार्टी सरकार के खिलाफ शनिवार को मुंबई में ‘हल्ला बोल‘ विरोध मार्च निकाला और छत्रपति शिवाजी महाराज समेत प्रतिष्ठित हस्तियों के खिलाफ ‘‘अपमानजनक’’ टिप्पणी करने के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को हटाने की मांग की। वहीं शरद पवार के साथ मार्च करने वाले अन्य लोगों में शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले, एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल, विपक्ष के नेताअजीत पवार और विपक्ष के नेता (परिषद) अंबदास दानवे, कांग्रेस विधायक दल के नेता बालासाब थोराट व अन्य शामिल रहे। विरोध के मुख्य बिंदु, महान हस्तियों का लगातार अपमान, राज्य के राज्यपाल को उनकी हालिया टिप्पणी के लिए हटाना, गुजरात में उद्योगों की उड़ान और महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद है, जो आचानक चर्चा का विषय बन गया है।
अजित पवार ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र को बचाने के लिए राज्यपाल को हटाना चाहिए। शरद पवार ने कहा कि राज्य की राष्ट्रीय हस्तियों का अपमान करने के लिए केंद्र को राज्यपाल कोश्यारी को हटाना चाहिए। पिछले महीने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल कोश्यारी ने शिवाजी महाराज को ‘‘पुराने जमाने के प्रतीक’’ के रूप में बताया था। उन्होंने इस साल की शुरुआत में समाज सुधारक महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी भी की थी। शरद पवार ने कहा कि अगर राज्यपाल को नहीं हटाया गया तो हमें उन्हें सबक सिखाने के लिए कदम उठाने होंगे। इस मोर्चे में एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने कहा कि अगर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को नहीं हटाया गया तो महाराष्ट्र जल उठेगा।
मोर्चा में अजित पवार, संजय राउत, उद्धव ठाकरे के अन्य नेताओं ने भी सम्बोधित किया। लेकिन शरद पवार ने उकसावे वाले बयान देकर महाराष्ट्र को आग में क्यों झोंकना चाहते हैं। क्या राजनीति के नाम पर शरद पवार महाराष्ट्र के विनाश पर उतारू है ? शरद पवार का यह बयान अजीब इसलिए है कि वे महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं। इस दौरान संजय राउत ने कहा कि देवेंद्र फडणवीस और शिंदे की सरकार फरवरी महीना नहीं देख पाएगी।
भला ये मार्च किसलिए था, अगर देश के महापुरुषों, महाराष्ट्र के अपमान का विरोध करने के लिए तो सोचनेवाली बात है कि भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने जब विनायक दामोदर सावरकर पर अंग्रेजों की मदद करने का आरोप लगाया। और एक चिट्ठी दिखाते हुए प्रेस कांफ्रेस में कहा था कि सावरकर ने कारागार में रहने के दौरान अंग्रेजों के डर से माफीनामे पर हस्ताक्षर करके महात्मा गांधी और अन्य समकालीन भारतीय नेताओं को धोखा दिया था। उस समय महा विकास आघाडी क्या सो रही थी, उस समय इस तरह का महामोर्चा क्यों नहीं निकाला गया विनायक दामोदर सावरकर के अपमान में, हालांकि इस मार्च से पहले महा विकास आघाडी सरकार में दो नेताओं ने भी गलती की। दरअसल शिवसेना की उपनेता सुषमा अंधारे ने वारकरी पंथ को लेकर एक बेबाक बयान दिया था, जिससे उबरने के लिए शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने अजीबोगरीब बयान दिया कि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था।
अब सवाल उठता है कि मार्च किसके खिलाफ निकाला गया। 6 दिसंबर को डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस था। महाराष्ट्र में डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर और छत्रपति शिवाजी महाराज को भगवान का दर्जा दिया जाता हैं। बावजूद इसके महा परिनिर्वाण के दिन संजय राउत ने बयान दिया कि बाबासाहेब आंबेडकर उनके दिल में बसते हैं, लेकिन उनकी जुबान फिसल गई और उन्होंने कहा कि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का जन्म महाराष्ट्र में हुआ है। दरअसल बाबासाहेब का जन्म मध्य प्रदेश में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था उनका घर महू छावनी में था। मीडिया के सामने बोलने से पहले संजय राउत इसके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
यह विरोधाभासी लगता है कि दिए गए बयान के विरोध में एक भव्य मार्च निकाला गया। कुछ दिन पहले बीजेपी नेता प्रसाद लाड ने ‘स्वराज्य कोंकण भूमि‘ के कार्यक्रम में बोलते हुए बयान दिया था कि शिवाजी महाराज का जन्म कोंकण में हुआ था। कार्यक्रम में उनके बगल में बैठे संजय जाधव ने अपने बयान को सही करते हुए कहा कि शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी में हुआ था। लाड के बयान की विरोधियों ने आलोचना की थी। लाड ने सोशल मीडिया का भी सहारा लिया और इस बयान के लिए माफी मांगी। लेकिन विपक्ष की आलोचना जारी रही। संजय राउत ने उस वक्त भी इसकी जमकर आलोचना की थी। बताया कि यह कैसे शिवाजी महाराज का अपमान है। इस मुद्दे को लेकर ऐसी राजनीति हुई कि कोई भी बयान खारिज किया जाएगा, आंदोलन किए जाएंगे, जूतों का हार पहनाया जाएगा।
दरअसल बीजेपी का कोई नेता उदाहरण भी देता है तो कहा जाता है कि यह अपमान है। राउत का यह कथन कि अम्बेडकर का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, बहुत विवादास्पद नहीं था। लेकिन इस घटना ने दिखा दिया कि कैसे गलत बात का राजनीतिकरण किया जा सकता है। बीजेपी ने राउत के बयान की कड़ी आलोचना की। राउत ने बयान दिया कि मेरे बयान में राजनीति मत लाइए। आलोचना की कि भाजपा नेताओं के दिमाग में कीड़े हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने हमारी आलोचना बर्दाश्त नहीं की है। पिछले कुछ दिनों से छत्रपति शिवाजी महाराज के अपमान और महाराष्ट्र के अपमान पर राजनीति शुरू हो गई है।
शिवसेना की उपनेता सुषमा अंधारे देवी को श्रद्धांजलि देने कोल्हापुर गईं लेकिन उन्हीं सुषमाताई ने वारकरी संप्रदाय की आलोचना की। इन घटनाओं से पता चलता है कि हम जो बयान देते हैं, वह हम पर उल्टा पड़ता है। इस घटना से लग रहा है कि संजय राउत के साथ भी ऐसा ही हुआ था। इसलिए वे समझाते नजर आ रहे हैं कि उन्होंने कोई गलत बयान नहीं दिया है। नासिक में उद्धव ठाकरे समूह के 11 पार्षदों के शिंदे समूह में शामिल होने के बाद राउत ने उन्हें दलाल बताया। यानी बीजेपी के नेता आपकी पार्टी में आते हैं तो वह अच्छा होता है, लेकिन आपकी पार्टी छोड़ते हैं तो हर चीज में दलाल की दोहरी भूमिका नजर आती है। आरोप लगते हुए वे शिकायत करते है कि राजनीति की जा रही है। पर आम जनता को भी पता है कि क्या चल रहा है सियासती गलियारें में और लोग इस दोहरी भूमिका को नोटिस भी कर रहे हैं।
इस महा मोर्चे को लेकर एमवीए सरकार की तरफ से कहा गया था कि इसमें कुल सवा लाख लोग शामिल होंगे वहीं एनसीपी के नेता जितेंद्र आव्हाण ने ट्वीट कर कहा था कि इस मोर्चे में सवा लाख लोगों ने अपनी मोजूदगी बनाई है लेकिन यह सत्य नहीं रहा क्यूंकी इस मोर्चे में शामिल पुलिस प्रशासन ने स्वयं इस बात की जानकारी दी कि इस मोर्चे में 60-65 हजार लोग शामिल रहे। वहीं अमरावती की लोकसभा सांसद नवनीत राणा ने एम वी ए पर तंज कसते हुए कहा कि इस मोर्चे में मुश्किल से 3 हजार लोग ही शामिल थे। यानी मुंबईवासियों ने अपना साथ इस महा मोर्चे में नहीं दिया क्यूंकी यह मुद्दा सियासती है यह राजनेता लोग अपने स्वार्थवश इस तरह के मोर्चे को निकाल कर जनता और अपना दोनों का समय बर्बाद कर रहे है। महामोर्चा को ध्यान में रखते हुए मुंबई ट्रैफिक पुलिस ने कुछ सड़कों को आवाजाही के लिए बंद कर दिया था जिससे आम लोगों को समस्या हुई। जिस समस्या का निवारण आप बैठ कर कर सकते है तो इसके लिए इस तरह का महामोर्चा निकालना यह समझ से परे है।
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महा आघाडी के मोर्चे की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि यह मोर्चा उद्धव ठाकरे की पार्टी की तरह नैनो मोर्चा था। उन्होंने कहा कि संतो, वारकरी संप्रदाय को गाली देने वाले, जिन्हें यह भी नहीं पता कि बाबा साहेब आंबेडकर का जन्म कहां हुआ है, वे लोग किस मुंह से मोर्चा निकाल रहे हैं। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे महाराष्ट्र से लोगों को जुटाने के बावजूद मोर्चो नैनो रहा। विपक्ष को पूरा आजाद मैदान भरने वाला मोर्चा निकालना चाहिए था पर वे ऐसा नहीं कर सके। उन्होंने कहा कि तीन दल मिल कर इतना छोटा मोर्चा निकाल सके। आज कोई मोर्चे का ड्रोन शॉट नहीं दिखा सका। केवल क्लोजअप दिखाए गए क्योंकि ड्रोन शॉट लायक मोर्चा था ही नहीं। हमने उनसे विनती की थी कि मोर्चा को आजाद मैदान तक लाए। लेकिन मोर्चे में इतने लोग नहीं थे कि आजाद मैदान में दिखाई दे सके, इस लिए उन्होंने ऐसी जगह चुनी जहां सड़क सकरी हो। मैं जानना चाहता हूं कि उद्धव ने मोर्चे का कौन सा विशाल स्वरुप देख लिया। दरअसल उनकी पार्टी की तरह यह मोर्चा भी नैनो रहा।
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