26 C
Mumbai
Sunday, November 24, 2024
होमब्लॉगआलाकमान राजनीति का सत्ता शिखर     

आलाकमान राजनीति का सत्ता शिखर     

Google News Follow

Related

आलाकमान, यह नाम सभी ने सुना होगा। आलाकमान राजनीति का वह सत्ता शिखर है जो सभी  निर्णय लेता है। उसके फैसले से सरकार बन सकती है तो गिर भी सकती है। यह सत्ता हर राजनीति दल में है। आलाकमान का अपना काम करने का तरीका है। उसके निर्णय से पार्टी का पत्ता भी नहीं हिलता है। किसी भी नेता को अंदर बाहर करने का निर्णय यही सत्ता लेती है। लेकिन जब उसके निर्णय में हीलाहवाली होती है तो पार्टी में फूट, बगावत और भटकाव होता है  । जिसका असर यह होता है कि पार्टी की रणनीति किसी चुनाव में कारगर नहीं होती है। आज भारत में कई राजनीतिक दल है, उसके सारे निर्णय शीर्ष नेतृत्व ही लेता है। जिसे आलाकमान कहा जाता है, इसे हाईकमान भी कहते हैं।

आज हम आलाकमान के साथ राजस्थान की राजनीति पर चर्चा करेंगे। कांग्रेस आलाकमान के निर्णय से ही राजस्थान में अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने हुए हैं। कांग्रेस के इसी निर्णय की वजह से सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। उनका सपना कब पूरा होगा यह तो समय बताएगा, लेकिन अभी राज्य में संशय की स्थिति है। कांग्रेस कार्यकर्ता केवल कठपुतली की तरह अशोक गहलोत और सचिन पायलट की रैली और घोषणाओं में जयकारे लगा रहे हैं। उन्हें पता नहीं है कि आगे क्या होगा? क्या राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव का चेहरा होंगे या इस चुनाव में कांग्रेस सीएम चेहरा की घोषणा ही नहीं करेगी। अगर ऐसा होता है तो यह निर्णय आलाकमान का होगा।

ऐसा समझा जा सकता है कि आलाकमान इस पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया है। आलाकमान भी असमंजस की स्थिति में है, वह भी सही निर्णय नहीं ले पा रहा है। कांग्रेस का आलाकमान नफा नुकसान की गणित लगा रहा है। आलाकामन को राज्य में होने वाली गतिविधियों की पूरी जानकारी है। लेकिन वह करने और कहने से डर रहा है। कहीं पंजाब जैसी हालत न हो जाए।यही वजह है कि अशोक गहलोत अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में घोषणाओं की झड़ी लगाए हुए हैं।

इससे साफ़ है कि गहलोत इस बात से चिंता मुक्त हैं कि उनकी जगह कोई दूसरा व्यक्ति मुख्यमंत्री बनेगा। गहलोत एक के बाद एक घोषणाएं करते जा रहे हैं। भले घोषणाओं का फ़ायदा जनता को मिले या ना मिले,लेकिन उनके पास यह कहने का मौक़ा रहेगा कि उन्होंने जनता की सुख सुविधा के लिए राज्य का खजाना खोल दिया था। लेकिन जनता ने नहीं लूटा तो मै क्या करूं।

गहलोत राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। वे अपने तरकस में कई ऐसे तीर रखें है, जिससे वे कई लोगों को साध सकते हैं। गहलोत ने अपना हुनर दिखाया भी है, जिसका नतीजा सभी के सामने था। एक समय वह आलाकमान को ही चुनौती दे दिए थे। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में  आलाकमान से रार ठान लिए थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि उनकी जगह मलिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस की कमान सौंपनी पड़ी। बावजूद इसके राजस्थान की नूराकुश्ती खत्म होने के बजाय बढ़ गई। हाल फिलहाल राजस्थान में कांग्रेस की यह रार खत्म होने वाली नहीं है। हम यह भी कह सकते हैं कि आगे जाकर यह रार विकराल रूप धारण कर सकती है जिसकी कांग्रेस को आशंका है। ऐसा न हो कि कांग्रेस यह विवाद खत्म न कर पाए और बाजी कोई और मार ले जाए।

बहरहाल, राज्य में दूसरी पार्टी बीजेपी सक्रिय है। उसके नेता सत्ता पक्ष पर रोज अटैक करते हैं। बावजूद इसके बीजेपी में भी गुटबाजी चरम पर है। राज्य के नेता भी आलाकमान की ओर देख रहे हैं। चुनाव सिर पर है पर बीजेपी ने राज्य की गुटबाजी खत्म नहीं कर पायी है। एक दिन पहले ही बीजेपी नेता वसुंधरा राजे द्वारा किया गया ट्वीट चर्चा का विषय बना हुआ है। उन्होंने कहा कि  पांच साल का समय किसी भी सरकार के लिए कम होता है। कितना भी भागदौड़ कर लो ,लेकिन कुछ काम छूट ही जाते हैं। उन्होंने कहा कि साजसज्जा हम करते हैं और फीता कांग्रेस के लोग काटते हैं।

गौरतलब है कि वसुंधरा राजे एक वीडियो अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है। जो वायरल हो रहा। इस वीडियो के कई मायने भी निकाले जा रहे हैं। वर्तमान में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया को पद पर बनाये रखने और हटाए जाने को लेकर विवाद है। जबकि राज्य में दूसरा खेमा वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहता है। लेकिन इस पर पार्टी कोई निर्णय नहीं कर पाई है। बीजेपी का आलाकमान भी कई बार राज्य के नेताओं से कह चुका है कि वे आपसी मतभेद को सुलझाएं और चुनाव पर ध्यान दें, लेकिन साफ है कि इसके लिए भी राज्य के नेता आलाकमान की ओर देख रहे हैं।

मगर, यही बात कांग्रेस आलाकमान अपने नेताओ से नहीं कह पाती है। अशोक गहलोत भले  कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बन पाए, लेकिन उनके ही उम्र के मल्लिकार्जुन खड़गे हाईकमान की टीम में शामिल हो गए यानी कांग्रेस अध्यक्ष बन गए। जिसके बाद उम्मीद जताई गई की खड़गे राजस्थान के विवाद को सुलझा देंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसा लगा कि कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के बाद पायलट और गहलोत विवाद खत्म कर देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, फटे टाट को सील
गुथकर आलाकमान आगे बढ़ गया। उसके बाद कहा जाने लगा कि गुजरात हिमाचल चुनाव के बाद इस मुद्दे पर मिल बैठकर बात होगी और पायलट को नई जिम्मेदारी मिलेगी। मगर इस बार भी कुछ नहीं हुआ।

फिर कहा गया कि अब राज्य के चुनाव में ज्यादा दिन बाकी नहीं है। इसलिए आलाकमान सरकार बदलने के मूड में नहीं है। क्योंकि ऐसा ही कुछ पंजाब में कांग्रेस के साथ हो चुका है। जिसकी वजह से कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी थी। अब कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक छत्तीसगढ़ के रायपुर में होने वाली है। तो क्या कांग्रेस पायलट गहलोत विवाद पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी। यह बड़ा सवाल है।

अगर कोई फैसला नहीं होगा तो दोनों नेताओं को समझाइश दी जायेगी और कहा जाएगा धीरज रखिये समय आने पर उचित निर्णय किया जाएगा। कोई किसी के खिलाफ हल्के शब्दों का प्रयोग न करे आदि आदि कह कर आलाकमान तमाशबीन बन जाएगा। यानी एक बार फिर फटे टाट को सिला जाना तय है। तो दोस्तों यही तो है आलाकमान का काम पार्टी के विवाद को दबाकर कुछ समय के लिए टाल देना। सिल गुथकर चुप हो जाना।

 ये भी पढ़ें 

 

यूपी में राष्ट्रवाद बनाम जातिवाद

रामचरित मानस बनाम गेस्ट हाउस कांड       

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,295फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
195,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें