अगर आपके घर के पास अलग-अलग फ़िरक़े की 9 मस्जिदें हो, और हर मस्जिद से दिन में पांच बार, अलग-अलग समय पकड़कर अजान दी जाए, यानि दिन में 45 बार आपको अजान सुननी होगी। अजान तो फिर भी ठीक है, अगर मस्जिदों में लाऊड स्पीकरों से एक एक दिन पकड़कर दुनियाभर की तकरीरे होने लगे, जिससे आपको कुछ समझ ही न आता हो और आप समझाना भी नहीं चाहते, तो फिर सोचिए आपकी हालत क्या होगी। पिछले कुछ सालों से यही हो रहा है मुस्लिम इलाके में रहने वाले हिंदू लोगों के साथ। वहीं कोर्ट ने लाऊडस्पीकर पर कारवाई करना अब पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी माना है।
मुंबई के कुर्ला में नेहरू नगर और चूनाभट्टी की कुछ सोसायटी के करीब 9-10 मस्जिदें है। मस्जिदों की संख्या ज्यादा है, फ़िलहाल इससे वहां के लोगों को कोई दिक्कत नहीं है, लेकीन दिन में पांच बार बजने वाली अजान उन्हें पैतालीस बार सुननी पड़ती है। इनका उस अजान से कोई लेना देना भी नहीं है। लेकिन लाऊडस्पीकर की आवाज़ इतनी तेज होती है की सिर भी फटने लगता है। मस्जिदों से ख़ुत्बे, लंबी लंबी तकरीरे और अजान के शोर से परेशान इन सोसयटीज ने पुलिस से शिकायत की।
उच्च न्यायालय ने इससे पहले भी शांतिपूर्ण वातवरण के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रकार के लाऊड स्पीकर, साउंड इक्विपमेंट और डीजे पर आवाज की मर्यादा को बताते हुए प्रतिबंधात्मक कारवाई के आदेश दिए है। पुलिस प्रशासन द्वारा इसका पालन न करना न्यायपालिका का अवमान है।
लोगों की शिकायतों पर ध्यान देते हुए पुलिस को भी स्थानिकों को मदद करनी चाहिए थी। पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, बार बार शिकायतों पर पुलिस ने मस्जिदों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण का मामला प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) का मामला बताया। पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के काम करने के तरीकों की बात करें उनकी करवाई होने के लिए 2 वर्ष या इससे अधिक समय भी जा सकता है। उनकी कारवाई होने तक स्थानिकों को ध्वनि प्रदूषित वातावरण में समय बिताना होगा। बेसिकली पुलिस अपने गले से फंदा छुड़वाकर PCB के गले में डालना चाहती थी। भाईजान से बिरयानी खाकर, भाईजान की हड्डी पकड़ना उन्हें गलत लगता होगा।
सोसायटी वालों ने कानून की सहायता लेते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, कोर्ट ने इस बात को माना की ऐसी कोई धार्मिक गतिविधी नहीं जिसमें लाउडस्पीकर की जरूरत हो। साथ ही कोर्ट ने मामले में राज्य सरकार को निर्देश देकर कहा की इस तरह के लाऊड स्पीकर को रोकना पुलिस विभाग का काम है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि पुलिस अधिकारी ऐसे लाउडस्पीकर के डेसिबल लेवल की निगरानी के लिए मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करें। अगर उल्लंघन पाया जाता है, तो पुलिस को उपकरण जब्त कर लेना चाहिए और उचित कारवाई करनी चाहिए। करवाई के तहत ध्वनि मर्यादाओं का उल्लंघन करने वालों को पहले समझ दी जाए, फिर भी दूसरी बार में मर्यादा का उल्लंघन हो तो 5000 रु. से दंडित किया जाए, और फिर भी ध्वनि मर्यादाओं का उल्लंघन हो तो लाऊड स्पीकर को जब्त किया जाए।
दोस्तों मुंब्रा, चेम्बुर, घाटकोपर, बांद्रा जैसे घनी जनसंख्या के इलाकों में अगर आप जाएंगे तो लगातार किसी मस्जिद से लाऊडस्पीकर कि आवाज आपके कानों में गूंजेगी। मस्जिदो से तकरीरे, ख़ुत्बे, अजान चलती रहती है। एक मस्जिद का ख़त्म होता है, दूसरे मस्जिद शुरू हो जाती है। आस-पास स्कुल, हॉस्पिटल, वृद्धाश्रम हो तो उन्हें भी इसी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसमें भी दो मुद्दे है, पहला तो ये है की आपको अधिकार नहीं की आप किसी के शांतिपूर्ण वातावरण को प्रदूषित करें या फिर किसी की शांति को भंग करें। फिर ये प्रतिवाद दिया जाता है की हिंदू त्योहारों पर मंदिरों से भी स्पीकर और डीजे बजाए जाते है। लेकीन हिंदू त्यौहार कुछ दिनों के लिए आते है। कुछ जगहों पर ही लाऊड स्पीकरों के साथ मनाए जाते है। हिंदू त्योहारों में मर्यादा होती है। तय समय के बाद ये ध्वनिक्षेपक बंद करवाए जाते है। पुलिस भी शादियों में बजने वाले स्पीकर बंद करने के लिए समय पर 10 बजे आती है।
अब दूसरी परेशानी ये है कि हिंदू दिन में पांच बार ये नहीं सुनना चाहते की किसी का खुदा अकबर है या नहीं ।अगर आपका खुदा आपके लिए अकबर है, तो हिंदू के हिसाब से हिंदुओं का खुदा अकबर है। अगर कुछ समय के लिए धार्मिक कार्यों के लिए लाऊड स्पीकर चलाया जाए, मर्यादा में चलाया जाए तो ठीक है। लगातार अलग अलग कोनों से बजाया जाए तो ये दांभिकता है, अवडंबर है। समाज को सताने की प्रवृत्ती है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी लाऊडस्पीकर के मुद्दे से कई बार झगड़ें होते रहते है। सऊदी अरब ने तो मस्जिदों के लाऊड स्पीकर पर स्वयं ही प्रतिबंध लगाया है। जहां से इस्लाम निकला वो भी इतनी जोर से अजान नहीं देना चाहते के किसी और को तकलीफ हो, लेकिन भारत के कन्वर्टेड मुस्लिम एकदम लड़ जाते है, लाऊडस्पीकर के मुद्दे पर जीने मरने की बाते करने लगते है।
अब ये मुद्दा अदालत ने भी पुलिस प्रशासन पर डाल दिया है और महाराष्ट्र में इस वक्त भाजपा की सत्ता भी है। ऐसे में हम विश्वास करते है पुलिस भी न्यायलय के निर्णयों को गंभीरता से लेगी और निर्देशों का अवमान नहीं करेगी। क्योंकि पुलिस का हिंदू त्योहारों पर म्यूसिक सिस्टम को बंद करना और हर रोज बजने वाले मस्जिदों के स्पीकरों को छूट देना ऐसा दोहरा चरित्र लंबे समय तक सामान्य जनता मान्य नहीं करेगी।
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https://www.youtube.com/watch?v=K4gqL1jvvWU