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Saturday, November 23, 2024
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2024 के मैदान में कौन टिकेगा ?  

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एकाएक बीजेपी से अलग होकर नीतीश कुमार ने महागठबंधन का दामन थाम लिया। इसके बाद शपथ लेने के चंद मिनट बाद उनमें पीएम का भूत घूस गया। क्षेत्रीय राजनीति से पलभर में राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुमार ने छलांग लगा दी। बड़ी अजीब बात है बिहार की जनता के लिए, जो नीतीश जैसे नेता को सिर आँखों पर रखा। लेकिन नीतीश कुमार ने बिहार की जनता की कद्र करने के बजाय उसका अनादर ही किया। 22 साल राज करने के बाद भी राज्य पिछड़ा और बीमारू बना हुआ है। उन्होंने शपथ लेने के बाद विपक्ष को मजबूत करने का ऐलान किया तो यह साफ़ हो गया कि नीतीश कुमार भी ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी की पीएम वेटिंग लिस्ट में शामिल हो गए। कहा जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए नीतीश ने पलटी मारी है। हालांकि, विपक्ष ने उन्हें कोई भाव नहीं दिया। विपक्ष को नीतीश कुमार की सत्ता के लिए बार बार दलबदल की राजनीति रास नहीं आई। शरद पवार, अखिलेश यादव और एकदुका नेताओं को छोड़कर किसी ने भी नीतीश कुमार को आठवीं बार मुख्यमंत्री बनने पर बधाई नहीं दी।

बहरहाल, आज हम नीतीश कुमार, राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के बारे में बात करेंगे। पीएम मोदी के खिलाफ कौन विपक्ष को लीड करेगा। यह सबसे बड़ा सवाल है ? साथ ही इन चार नेताओं में क्या सियासी दांव पेंच है, इनकी क्या कमजोरियां है ? तमाम बातें हैं जो इन चारों नेताओं को एक दूसरे से अलग करती हैं। सवाल यह कि क्या इसमें से कोई एक नेता पीएम पद का उम्मीदवार होगा तो पीएम मोदी के सामने टिक पायेगा। क्या ये चारों नेताओं में राष्ट्रीय स्तर पर मास अपील है?

तो चलिए शुरू करते हैं। पहले केजरीवाल से शुरू करते हैं। केजरीवाल 2014 से ही पीएम मोदी के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। 2014 में बनारस से पीएम मोदी के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में नरेंद्र मोदी को पांच लाख इक्यासी हजार से ज्यादा वोट मिले थे, जबकि अरविंद केजरीवाल को दो लाख से ज्यादा मत मिला था। इसके बाद से केजरीवाल पीएम मोदी पर हमला करना छोड़ दिया था,लेकिन कुछ समय से फिर शुरू हो गए हैं। केजरीवाल लोगों में खैरात बांटने के पक्ष में हैं ,लेकिन इस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त नजर आ रही है। केजरीवाल सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेलते हैं। जो  बहुसंख्य लोगों में उनका रवैया पसंद नहीं आता है। केजरीवाल हिंदी भाषी राज्यों में पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। दक्षिण भारत और पूर्वी राज्यों में केजरीवाल की पकड़ नहीं है। लेकिन केजरीवाल पीएम पद के लिए लाइन में लगे हुए हैं। केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, पर उनके नेता सत्येंद्र जैन पर धनशोधन का आरोप है और वे जेल में हैं। साथ ही आम आदमी पार्टी कुछ लोगों के हाथों में है। उन्हें ही जिम्मेदारी दी गई है जो उनके करीबी हैं। हिन्दुओं के साथ दुर्व्यवहार होने पर चुप्पी साध लेते हैं।

अब बात करते हैं नीतीश कुमार की। हाल ही में बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस, आरजेडी और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई है।नीतीश कुमार पीएम मोदी के धुर विरोधी रहे हैं। 2013 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया था तो नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था। नीतीश कुमार की छवि साफ सुथरी है, लेकिन राजनीति  विचारधारा की कमी है।वे बार बार राजनीतिक मूल्यों से समझौता कर लेते हैं। नीतीश सत्ता के लिए किसी भी पार्टी से हाथ मिला लेते हैं। उनके पास देश के लिए कोई स्पष्ट विजन नहीं हैं। यही वजह है कि 22 साल तक बिहार की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद बिहार आज  भी आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ राज्य है। बिहार के लोगों को दूसरे राज्यों में पलायन से रोकने के लिए अभी तक कोई कार्य योजना नहीं बना पाए। सबसे बड़ी बात यह है कि हिंदुत्व पर नीतीश कभी खुलकर नहीं बोलते। नीतीश भी सॉफ्ट हिंदुत्व पर राजनीति करते आये हैं। युवाओं में भी पकड़ के नाम पर कुछ नहीं है सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता न के बराबर है।

वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी जो चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं। देश का ऐसा नेता जो भटका हुआ है। जो खुद को हिन्दू बताता है, लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं होने का दावा करता है। शब्दों के घालमेल और भूलभुलैया में राहुल गांधी कभी स्पष्ट नहीं कर पाए कि वह करना क्या चाहते हैं और क्या बोलना चाहते हैं। कांग्रेस को परिवारवाद की पार्टी कहा जाता है। राहुल गांधी बहुसंख्यक लोगों के प्रति होने वाले अत्याचार पर चुप्पी साध लेती है। राष्ट्रवाद, हिंदुत्व आदि विषयों पर बोलने से राहुल गांधी गोल मटोल जवाब देते हैं। लेकिन किसी मुस्लिम के साथ कुछ भी होने पर मोर्चा खोल देते हैं। कांग्रेस धीरे धीरे राज्यों में सिमट रही है। राहुल गांधी अभी तक कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं निभाई है। जबकि 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस सत्ता में रही लेकिन राहुल गांधी कभी भी सक्रिय भूमिका में नजर नहीं आये। कई महत्वपूर्ण मौके पर राहुल गांधी देश से बाहर रहे। इससे कहा जाता है कि राहुल गांधी अपनी जिम्मेदारियों से भागने वालों में से हैं। उन्हें गंभीर नेता के तौर पर नहीं जाना जाता है।

इसी तरह, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी जमीनी स्तर की नेता हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान नहीं है। उनके पास भी देश के लिए कोई स्पष्ट रूपरेखा नहीं है। ममता की बंगाल छोड़ अन्य राज्यों में कोई पकड़ नहीं है। वे हिंदी भी अच्छी बोल नहीं पाती हैं. ममता की यह सबसे बड़ी कमजोरी है। उनकी पार्टी  बाहरी राज्यों में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है। लेकिन कोई सफलता नहीं मिली है। इसी साल ममता की पार्टी गोवा विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी उम्मीदवार नहीं जीता। गोवा विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने सभी चालीस सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन पार्टी कोई करिश्मा नहीं कर पाई। ममता को मुस्लिमों का हमदर्द कहा जाता है। बंगाल में उन्होंने कई योजनाएं मुस्लिमों के लिए चलाई हैं। ममता पर तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है। केवल बंगाल के सहारे देश की राजनीति में पैठ बनाना ममता के लिए मुश्किल है। हालांकि ममता बनर्जी की छवि साफ सुथरी है लेकिन  उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी पर कोयला घोटाले से जुड़ा केस है, उसकी जांच हो रही है। वहीं,  हाल ही में उनके मंत्री रहे पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर से 50 करोड़ रूपये कैश मिलने से ममता की छवि को धक्का लगा है। साथ ही वंशवाद को भी बढ़ावा देने का आरोप है।

अब बात करते हैं पीएम मोदी की। बीजेपी पार्टी से आने वाले नेताओं सबसे चर्चित नेता हैं।  उनकी पकड़ हिंदी भाषा के साथ मौके के अनुसार क्षेत्रीय भाषा में भी बोलते हैं। यह पीएम मोदी की खूबी है। बीजेपी देश भर में फैली हुई है। पीएम मोदी के 2014 में  देश की कमान संभालने के बाद से बीजेपी  जिन राज्यों में नहीं थी वहां भी सत्ता पर काबिज हुई है। भारत का बच्चा मोदी का फैन है। पीएम मोदी हर छोटी बड़ी बातों पर सोशल मीडिया के जरिये लोगों से जुड़े रहते हैं। भारत के लोग उन्हें हिंदुत्व का चेहरा मानते हैं। अयोध्या में राम मंदिर बनाने, कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने का श्रेय पीएम मोदी  को जाता है। इसके अलावा भी पीएम मोदी ने राष्ट्रवाद और देशभक्ति के लिए हमेशा देश को  जागरूक करते रहते हैं। हिंदुत्व पर कोई दिखावा नहीं करते ,यही वजह है कि पीएम मोदी  की देश में लोकप्रियता चरम पर है।

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