महाराष्ट्र की राजनीति में फिलहाल जबरदस्त उथल पुथल देखी जा रही है। उद्धव ठाकरे गुट जहां बीजेपी और एकनाथ शिंदे को घेरने की कोशिश कर रहा है। वहीं, बीजेपी उद्धव के हर दांव को फेल करने में लगी है। ठाकरे गुट ने संजय राउत को आगे कर दिया है, जो हर रोज नए अफवाहों के साथ चर्चा में बने हुए है। बहरहाल तमाम हलचल के बीच शरद पवार का वह बयान चर्चा में रहा, जिसमें उन्होंने कहा था कि अब रोटी बदलने का समय आ गया है। वहीं, उद्धव ठाकरे द्वारा अजित पवार को दी गई सलाह पर उन्होंने पलटवार किया था कि “जिस तरह से राज ठाकरे ने अपने चाचा का ध्यान रखा, उसी तरह वे अपने चाचा का भी ख्याल रखेंगे।
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र के राजनीति गलियारे में यह चर्चा है कि एनसीपी में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले अजित पवार बीजेपी का दामन थामेंगे। इतना ही नहीं, अजित पवार ने भी एक कार्यक्रम में कहा था कि एनसीपी के हिस्से में उपमुख्यमंत्री का पद बहुत हो चुका। अब वे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। इसके बाद से राज्य में और हड़कंप मच गया। साथ ही यह भी कहा गया कि अजित पवार अपने साथ एनसीपी के कई विधायकों को भी तोड़ेंगे। हालांकि, इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो समय आने के बाद ही पता चलेगा।
वैसे यह राजनीति की पुरानी रिवायत है। भारत में ऐसी कई राजनीतिक पार्टियां हैं, जिसके मुखिया अपने सगे संबंधियों के कंधे पर जिम्मेदारी देकर पार्टी को आगे बढ़े या बढ़ाये। लेकिन जब पार्टी की कमान जब सौंपने का समय आया तो पार्टी के मुखिया पलटी मार गए हैं और अपने बेटे या बेटी को ही पार्टी की कमान सौपे। इसके कई उदाहरण है। तो पहले हम महाराष्ट्र से ही शुरूआत करते है, सबसे पहले बात करते हैं शिवसेना की। जिसे बाला साहेब ठाकरे ने बनाया, लेकिन जब पार्टी की कमान सौंपने का समय आया तो बाला साहेब ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को चुना। कहा जाता है कि राज ठाकरे शिवसेना के ऐसा चेहरा थे, जिसमें बाला साहेब ठाकरे का अक्स देखा जाता था।
मगर उन्हें एक समय के बाद पार्टी से किनारे लगा दिया गया। राज ठाकरे को खुद पता नहीं था कि उनका शिवसेना में क्या रोल है। बाद में उन्होंने शिवसेना से अलग होकर अपनी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना पार्टी बना ली। तो क्या अजित पवार नई पार्टी का गठन करेंगे या किसी अन्य पार्टी का दामन थामेंगे। यह बड़ा सवाल है। हालांकि,अजित पवार द्वारा दिए गए बयान का मतलब तो यही निकलता है। आगे वह क्या करते हैं। यह अभी देखना होगा।
इसी तरह, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का भी यही हाल रहा। जब मुलायम सिंह यादव की राजनीति से सक्रियता कम हो गई तो अखिलेश यादव ने कथित तौर पर जबरन पार्टी के मुखिया बन गए। जिसकी वजह से समाजवादी पार्टी में दो फाड़ हो गई थी। दरअसल, मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव मुलायम सिंह के साथ साये की तरह रहते थे। उस समय कहा जाता था कि मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल सिंह यादव के ही हाथ में पार्टी की कमान होगी, लेकिन जिस तरह से अखिलेश यादव ने पार्टी की कमान को अपने हाथ में लिया उस पर सवाल खड़ा हुआ।
इसके साथ ही मुलायम सिंह यादव पर भी अंगुलियां उठी, कहा गया कि मुलायम सिंह यादव ने षड़यंत्र रचकर अखिलेश यादव को पार्टी की कमान सौंपी। जिसके बाद शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ लिया और अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया। खट्टे मीठे अनुभव के बाद जब बीते साल मुलायम सिंह का निधन हो गया तो शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और परिवार से अलग नहीं होने की कसम खाये।
राजनीति गलियारे में यही दो परिवार नहीं हैं जिन्हें अपने सगे संबंधियों के बगावत के दिन देखें। कुछ ऐसा ही रामविलास पासवान की पार्टी के साथ भी हो चुका है। रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने जन लोकशक्ति पार्टी को हाईजैक कर लिया था। काफी उठापटक के बाद रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने भी अपनी नई पार्टी लोक जनशक्ति (रामविलास पासवान) पार्टी का गठन किया था। तो ये वे पार्टियां है जो अपनों के बगावत से टूट फूट होती रही।
अब एक बार फिर आते हैं शरद पवार के उस बयान पर जिसमें वे कहते हैं कि अब रोटी बदलने का समय आ गया है। तो साफ है कि शरद पवार एनसीपी में बदलाव के मूड में है। शरद पवार ने यह बात उस हवा को देखकर कहे हैं, जो वर्तमान में महाराष्ट्र में चल रही है। अब सवाल यह है कि शरद पवार पार्टी की कमान किसे सौंपेंगे ? क्या अजित पवार को? तो इस संबंध में जानकारों ने बताया कि अब शरद पवार को अजित पवार पर विश्वास नहीं रह गया है।
ऐसे में उन्हें पार्टी की कमान सौंपने का सवाल ही नहीं उठता। अगर बिना लाग लपेट की बात की जाए तो सुप्रिया सुले को शरद पवार पार्टी की कमान सौंप सकते हैं। जैसा सभी पारिवारिक पार्टियां करती आई हैं। माना जा रहा है कि शरद पावर भी कुछ अलग नहीं करेंगे बल्कि अपने ही खून पर विश्ववास जताएंगे। ऐसा मीडिया की रिपोर्ट में भी कहा जा रहा है।
दरअसल, उद्धव ठाकरे हाल ही में शरद पवार के आवास पर उनसे मुलाक़ात की थी तो उस समय मौके पर अजित पवार मौजूद नहीं थे। लेकिन सुप्रिया सुले उपस्थित थीं। इस समय की एक तस्वीर भी सामने आई ,जिसमें सुप्रिया सुले, उद्धव ठाकरे, संजय राउत और शरद पवार दिखाई दे रहे हैं। कुछ समय से यह भी कहा जा रहा है कि शरद पवार महाराष्ट्र में किसी महिला को सीएम बनाने की वकालत कर रहे हैं। ऐसे में उनकी बेटी सुप्रिया सुले को सत्ता तक ले जाने के लिए शरद पवार चाहेंगे कि अजित पवार एनसीपी से कलटी मार लें, और सुप्रिया सुले के लिए रास्ता साफ़ हो जाए। लेकिन क्या यह सब इतना आसान होगा, यह कहना मुश्किल है। क्योंकि बहुत कठिन है डगर पनघट की।
तो सवाल है कि अजित पवार कैसे अपने चाचा का ख्याल रखेंगे, क्या राज ठाकरे के नक्शेकदम पर चलकर या कोई और प्लान सोच रखा है ? वहीं क्या शरद पवार समय रहते तवे की रोटी बदल देंगे या रोटी जल जायेगी? यह तो समय के गर्भ में है फिलहाल लोगों की अजित पवार के हर कदम और बयान अपना अपना मतलब और मायने निकाल रहे हैं।
मन की बात का 100वां एपिसोड, यूएन मुख्यालय में भी लाइव सुना जाएगा