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Friday, September 20, 2024
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शिंदे गुट बालासाहेब का असली वारिस?

शिंदे गट ने विधानसभा के केंद्रीय कक्ष में शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का तैल चित्र लगाने का निर्णय लिया।

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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने विधानसभा के केंद्रीय कक्ष में शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का तैल चित्र लगाने का निर्णय लिया है। लेकिन यह फैसला सिर्फ एक तेल चित्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका महत्व यह है कि यह तेल चित्र शिंदे फडणवीस सरकार के समय और उनके द्वारा लिए गए निर्णय है। आज शिवसेना की दो दल बन गई है। दोनों पक्षों का दावा है कि हम बालासाहेब के विचारों के सच्चे उत्तराधिकारी हैं। लेकिन उसमें एकनाथ शिंदे समूह को बालासाहेब की शिवसेना का नाम मिला जबकि उद्धव की पार्टी को उद्धव बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना का नाम मिला। लेकिन इसके बावजूद मुख्यमंत्री बनने के बाद शिंदे ने विधानसभा में बालासाहेब का तेल चित्र लगाने का फैसला किया।

असली शिवसेना कौन है, इसे लेकर एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच बहस जारी है। वहीं बालासाहेब ठाकरे के नाम के इस्तेमाल को लेकर उद्धव ठाकरे गुट और शिंदे गुट भी आमने-सामने आ गए हैं। वहीं इस राजनीतिक सत्ता संघर्ष के दौरान, बालासाहेब ठाकरे की तेल चित्र अब विधानसभा के केंद्रीय कक्ष में प्रदर्शित की जाएगी। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को पत्र लिखकर मांग की थी। उसके बाद विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने तीन महीने में बाला साहेब का तैलचित्र लगाने का निर्णय लिया है। विधानसभा में अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने इसकी घोषणा की। नार्वेकर ने बताया कि बाला साहेब ठाकरे की जयंती यानी 23 फरवरी 2023 को इस तेल चित्र का अनावरण किया जाएगा।

एक समय आया जब एकनाथ शिंदे और उनके साथ 40 विधायक शिवसेना के विरोध में सामने आए, उन्होंने आपत्ति जताई कि उद्धव ठाकरे बालासाहेब ठाकरे के विचारों के अनुसार शासन नहीं कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे ने उस समय आरोप लगाया कि बालासाहेब ठाकरे मेरे पिता हैं, आप उनके नाम को चुरा रहे हैं। जबकि बालासाहेब एक राष्ट्रीय नेता थे, इसलिए उनके नाम को चोरी करने का कोई सवाल ही नहीं है, दरअसल बालासाहेब ठाकरे वे सभी के नेता हैं। शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का महाराष्ट्र की राजनीति में दबदबा था और अब भी है। शिवसेना और बालासाहेब का अटूट रिश्ता है। पिछले ढाई साल में महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार थी। उद्धव ठाकरे उस सरकार के मुख्यमंत्री थे। वास्तव में, उन्हें सुझाव देना चाहिए था कि इस अवधि के दौरान विधानसभा के मुख्य हॉल में बालासाहेब ठाकरे की तैल चित्र स्थापित की जाएं। हालांकि, महा विकास अघाड़ी सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के वारीस ऐसा नहीं कर सके। वहीं महाराष्ट्र में शिंदे-भाजपा सरकार के सत्ता में आने के ठीक तीन महीने बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को यह मंजूरी मिली।

माविया सरकार बनने के बाद उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे। उस समय इस तरह के तेल चित्र को क्यूँ नहीं लगाया गया। एकनाथ शिंदे ने वह किया है जो बाला साहेब के बेटे के मुख्यमंत्री रहते संभव नहीं था, यह केवल इस तैल चित्र का ही मामला नहीं है बल्कि शिवाजी पार्क के मैदान से कुछ ही दूरी पर पुराने महापौर के आवास पर बालासाहेब के राष्ट्रीय स्तर के स्मारक के मामले में भी है। तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में बालासाहेब ठाकरे के स्मारक का काम भी धीमी गति से शुरू हुआ था। इस स्मारक को बनाने के लिए देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री रहने पर इस जगह को कानूनन स्थानांतरित कर दिया गया था। संक्षेप में, इस स्मारक का भार उस समय भी सरकार पर था और अब भी है।

वहीं इस फैसले को लेकर बीजेपी नेता सुधीर मुनगंटीवार ने उद्धव ठाकरे पर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि बालासाहेब ठाकरे के विचार पर चलने वाली शिवसेना के नेता मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने हिंदू ह्रदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे की तैल चित्र लगाने का निर्णय लिया। सदन को उन्हें इस बात के लिए बधाई देनी चाहिए कि दिवंगत हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे के नाम में वीरता और हिंदुत्व की प्रबल भावना थी। हम इस तैल चित्र को विधान भवन के सभागार में स्थापित कर रहे हैं। मैं शिंदे सरकार को जितनी भी बधाई दूं कम है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि पिछले दो सालों में यानी उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में ये तैलचित्र लगाया गया होता तो ज्यादा खुशी होती।

मुनगंटीवार का कथन बिलकुल ठीक है। क्‍योंकि अगर उद्धव ठाकरे मुख्‍यमंत्री थे तो उस समय ये तेल चित्र क्यूँ नहीं लगाया गया, जो दावा करते हैं कि बालासाहेब का कॉपीराइट उनका है। उन्होंने इस कार्य को गति नहीं दी लेकिन जो लोग कहते हैं कि हम बाला साहेब के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं, उन्होंने ऐसा करके अपनी काबिलियत साबित की है। अब दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में भी बालासाहेब ठाकरे की एक प्रतिमा लगाई जानी चाहिए। साथ ही, नए संसद भवन में बालासाहेब ठाकरे की तेल चित्र लगाई जानी चाहिए। इस तरह की मांग शिवसेना के शिंदे समूह के सभी सांसदों ने कि है। इसे लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जल्द ही बातचीत करेंगे।

जब हम एक नेता में विश्वास करते हैं, तो हमें उसके विचार विरासत में मिलते हैं। उस विचार को आगे बढ़ाना केवल बात करना नहीं है, बल्कि वास्तव में उसे क्रियान्वित करना है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की एक भव्य प्रतिमा का निर्माण राजनीति के लिए उनके नाम का उपयोग करने के एकमात्र उद्देश्य से नहीं किया है, बल्कि उनके विचारों का सम्मान करने के लिए किया हैं। वह इस छवि को खड़ा करके दुनिया भर में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिष्ठा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने दिल्ली में सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति स्थापित की, काशी विश्वेश्वर मंदिर में महारानी अहिल्या देवी की मूर्ति स्थापित की और हिंदू धर्म में उनके महत्व को दिखाया।

यह सही नहीं है कि हम भाषण देते समय केवल आदरणीय नेताओं का नाम लें और उनके विचारों को वास्तव में आगे बढ़ाने के लिए कुछ न करें, उनके विचारों की विरासत को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाएं। इसी तरह एकनाथ शिंदे भी केवल यह मानकर राजनीति में नहीं आए कि हम बालासाहेब के सच्चे उत्तराधिकारी हैं। इसलिए उन्होंने लेजिस्लेटिव असेंबली हॉल में तेल चित्र लगाकर बालासाहेब के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई है, ताकि आने वाली पीढ़ियों की स्मृति में बालासाहेब की छवि बनी रहे। दुर्भाग्य से, उद्धव ठाकरे ने इसे संभव नहीं बनाया है।

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