महाराष्ट्र की राजनीति में एक चौंकाने वाली घटना तब घटी जब अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल सहित आठ अन्य प्रमुख नेता 2 जुलाई को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए। जिसके परिणामस्वरूप एनसीपी में बड़ा विभाजन हुआ। राजभवन में आयोजित एक समारोह में पवार को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया, जबकि अन्य को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। वहीं बगावत के बाद शरद पवार के उम्र को लेकर अजित पवार ने कहा था कि “62 की उम्र में सरकारी अधिकारी रिटायर हो जाते हैं। 75 साल की उम्र में राजनीति में बीजेपी नेता रिटायर हो जाते हैं, आप 83 के हो गए हैं, आपको कहीं तो रुकना होगा। वहीं उम्र संबंधी ताने का जवाब देते हुए शरद पवार ने कहा कि वो 82 साल के हो या 92 साल के इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो जब तक वो अच्छा काम कर रहे है। वो सक्रिय राजनीति में बने रहेंगे। और शरद पवार के इस बयान के बाद एक ही विचार लोगों के मन में आता है कि क्या आम जनता की तरह नेताओं के लिए भी एक रिटायरमेंट ऐज होनी चाहिए।
कल गुरुवार को शरद पवार दिल्ली पहुंचे और दिल्ली में स्थिति शरद पवार के घर पर एनसीपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इस बैठक में पार्टी के तमाम पदाधिकारी और 27 राज्यों की पार्टी समिति के नेता भी शामिल हुए। इस बैठक में शरद पवार के गुट ने कुल 8 प्रस्ताव पास कराए है। जिनमें एक प्रस्ताव अजित पवार और उन 8 एनसीपी विधायकों और सांसद सुनील तटकरे को पार्टी से बर्खास्त करने का था जिन्होंने पार्टी के साथ बगावत की और अब शिंदे सरकार में शामिल हो चुके है। हालांकि अजित पवार का कहना है कि शरद पवार ने आज जो बैठक बुलाई वो असंवैधानिक थी। और चुनाव आयोग को इस मामले में दखल देना चाहिए।
हालांकि महाराष्ट्र में घटी राजनीति घटना के बाद पूरे देश में सक्रिय राजनेताओं की एज को बहस छिड़ गई है। आज राजनीति में दो गुट बन गया है एक गुट में वो वरिष्ठ नेता जो उम्र के इस दायरे में आते है। जो दशकों से सत्ता की कुर्सी पर विराजमान है। जिनसे सवाल किया जाता है कि वो रिटायर क्यों नहीं होते और दूसरी तरफ वो युवा नेता है जो कहते है कि उन्हें भी मौका मिले और कहते है कि जब तक उनके ऊपर बैठे उम्रदराज के नेता पद से नहीं हटेंगे तो उन्हें मौका कैसे मिलेगा। ये चैलेंज कर रहे है इन उम्रदराज नेताओं को कि अब आप हटिए आपका जमाना गया अब हमारी बारी है। और यही हो रहा है शरद पवार के अपनी परिवार में। जहां उनका भतीजा अजित पवार उन्हें कह रहा है कि आपका जमाना खत्म हुआ। और मेरा टाइम शुरू हुआ है। आप हटिए और मुझे कुर्सी पर बैठने दीजिए।
हालांकि ये कोई नई बात नहीं है हमारे देश में ज्यादातर जो क्षेत्रीय दल है या ज्यादातर जो पार्टियां है वो सारी इसी तरह की है। अगर हम दो पार्टियों को छोड़ दे बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टी तो बाकी के ज्यादातर पार्टियां वो सब एक परिवार द्वारा संचालित है। वहीं लालू प्रसाद यादव का तो यहाँ तक कहना है कि राजनीति में रिटायरमेंट की बात करना बिल्कुल गलत है।
सोचनेवाली बात यह है कि भारत देश के लोगों की औसतन एज लगभग 28 वर्ष है मतलब ये है कि भारत की आधी आबादी की उम्र 28 साल से ज्यादा है और बाकी आधी आबादी की उम्र 28 साल से कम है। इसके साथ ही भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। लेकिन दुनिया के सबसे युवा देश में जहां औसतन ऐज 28 साल है वहाँ उस देश में लोकसभा के सांसदों की औसतन ऐज है 54 वर्ष। और इस तरह से दुनिया के सबसे युवा देश के आधे लोकसभा सांसद ऐसे है जो 54 साल से ज्यादा उम्र के है। इनमें से 239 सांसदों की उम्र 60 से 80 वर्ष के बीच है। और तो और 10 सांसद ऐसे भी है जिनकी उम्र 80 से 90 वर्ष के बीच में है। और एक सांसद की उम्र 93 वर्ष है। हमारे देश की राजनीति में लोगों का जो रोल पहले था वो आज भी बरकरार है। यहाँ रिटायरमेंट को लेकर कोई उम्र नहीं है।
लेकिन आज आम जनता की बात की जाएं तो पहला वर्ग है जो नौकरी करता है, किसी भी प्राइवेट या सरकारी नौकरी में काम करते है। और भारत में या पूरी दुनिया में नौकरी करनेवाले की रिटायरमेंट औसतन उम्र 60 वर्ष होती है। दूसरा वर्ग में वो आते है जो व्यवसाय करते है। यानी उनका स्वयं का व्यवसाय। इसमें छोटे से लेकर बड़े व्यवसायी हो सकते है। लेकिन इनकी भी एक तय उम्र सीमा होती है। और ये लोग भी रिटायर हो जाते है। जब उनका शरीर जवाब दे देता या अगली पीढ़ी व्यवसाय को संभालने में सक्षम हो जाती है। तीसरा वर्ग जो सेल्फ एम्प्लोयीड है जैसे- अभिनेता, लेखक, कलाकार और इस वर्ग के लोग भी तभी तक काम करते है जब तक लोगों में उनका प्रभाव बना रहे। यानी इन तीनों वर्गों में जो लोग है वो तभी तक काम करते है जब तक वो सक्षम होते है। लेकिन राजनीति में रिटायरमेंट का कोई सिद्धांत नहीं है।
भारत के संविधान में सांसदों और विधायकों के लिए न्यूनतम उम्र 25 वर्ष तो बताई गई है लेकिन संविधान में कही भी ये नहीं लिखा गया की सांसद और विधायक की अधिकतम उम्र क्या होगी। और यही वजह है कि भारत में 99% से ज्यादा नेता आजीवन सक्रिय राजनीति में बने रहते है। उदाहरण के लिए- वर्ष 2018 में जब तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके दिवंगत नेता एम करुणा निधि का 94 वर्ष के उम्र में निधन हुआ उस समय वो विधायक और डीएमके पार्टी के अध्यक्ष भी थे। वहीं पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 94 वर्ष की उम्र में पिछले साल विधानसभा का चुनाव लड़ा था। जिसमें वो हर गए थे। हालांकि इसके एक साल बाद ही 95 वर्ष की उम्र में प्रकाश सिंह बादल का निधन हो गया था।
इसी तरह पिछले साल 82 वर्ष की उम्र में जब मुलायम सिंह यादव का निधन हुआ तब वो समाजवादी पार्टी से लोकसभा सांसद थे। वहीं बालासाहेब ठाकरे का निधन 86 वर्ष की उम्र में हुआ मरणोपरांत वह भी शिवसेना के अध्यक्ष पद पर बने रहे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा आज भी 90 वर्ष की उम्र में राज्यसभा के सांसद है। वहीं भारत के सबसे पुरानी पार्टी काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे आज 80 वर्ष के है और सोनिया गांधी 76 वर्ष की है। और लोकसभा की सांसद है। 75 वर्ष के लालू प्रसाद यादव आज भी अपनी पारिवारिक पार्टी आरजेडी के अध्ययक्ष बने हुए है। 85 वर्ष के फारुख अब्दुल्ला आज भी अपने पारिवारिक पार्टी जम्मू कश्मीर नैशनल कॉन्फ्रेंस में अध्यक्ष बने हुए है। जबकि 79 साल के शिबू सोरेन आज भी पारिवारिक पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बने हुए है।
जबकि बीजेपी में लाल कृष्ण आडवाणी को 91 वर्ष की उम्र में और मुरली मनोहर जोशी 85 साल की उम्र में मार्गदर्शन मण्डल में ये दिग्गज काम कर रहे है। आडवाणी को प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पद पर ना बैठने के पीछे वजह भी उनकी एज ही थी। जिसके लिए काफी विवाद देखने मिला था। स्पष्ट शब्दों में कहें तो बीजेपी के ये नेता अब सक्रिय राजनीति में नहीं है और रिटायर हो चुके है। परिवार वाद पर चलनेवाली पार्टी के अध्यक्ष की उम्र औसतन 70 वर्ष है लेकिन ये नेता आज भी रिटायर नहीं होना चाहते। हालांकि ये राजनेता दो ही मौके पर रिटायर लेते है एक तो जब इन्हें जनता नकार दे और दूसरा जब इन्हें परिवार या उनकी पार्टी नकार दें।
भारत में किसी भी राजनेता से उसके पेशे के बारे में पूछिए। वह सफल हो या असफल, सरकार में हो या विपक्ष में- सब राजनीति को समाज सेवा बताते नहीं थकेंगे। भारत में राजनीति का मतलब समाज सेवा है, करियर नहीं। हालांकि शायद ही कोई राजनेता होगा, जो राजनीति को अपना करियर बताता मिलेगा। अगर राजनेता थोड़ा संजीदा हुआ, दूसरे शब्दों में कहें कि थोड़ा चतुर हुआ तो समाज सेवा के साथ देश सेवा को भी जोड़ देगा। भारत में समाज सेवा की आड़ में राजनीति आज सबसे चमकदार करियर है। हक़ीक़त तो यह है कि समाज सेवा की आड़ में राजनीति आज आकर्षक पेक्षा है। यहां एक बार सफल हुए नहीं, किसी सदन के सदस्य बने नहीं कि इतनी कमाई कर लेंगे जो सात पुश्तों तक नहीं ख़त्म होगी।
भारतीय राजनीति में भी रिटायरमेंट की उम्र को लेकर चर्चाएं होती रही हैं।
साल 2014 में केंद्रीय सत्ता में वापसी के बाद बीजेपी ने सम्मानजनक रिटायरमेंट का नियम बनाया। 70 साल से ज़्यादा आयु वाले नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया। इसे भारत में दो तरह से देखा गया। एक वर्ग का मानना था कि मार्गदर्शक मंडल में शामिल करके वरिष्ठ नेताओं को उनके वाजिब हक से वंचित किया गया। वहीं, दूसरे वर्ग का मानना था कि बीजेपी ने ऐसा करके भावी राजनीति को बेहतर बनाने की तैयारी की है। सोचनेवाली बात यह है कि नौकरशाही में रिटायरमेंट की तय उम्र है। वहीं राजनीति में न तो रिटायरमेंट की उम्र है और न ही संस्थागत व्यवस्था। नतीजतन भारतीय राजनीति में पीढ़ीगत बदलाव सुनिश्चित करना अब भी चुनौतीपूर्ण है।
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