काशी के ‘लाल’ बहादुर शास्त्री की सादगी आज भी है एक मिसाल

काशी के ‘लाल’ बहादुर शास्त्री की सादगी आज भी है एक मिसाल

महात्मा गांधी के जन्मदिन के साथ ही भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिन मनाया जाता है। दोनों महापुरुषों का जन्म 2 अक्टूबर को हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री की आज 188 वीं जयंती है। दोनों महापुरुष भारत की आजादी के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। लाल बहादुर काशी के लाल के नाम से जाने जाते हैं। उनकी सादगी आज के राजनीतिज्ञों के लिए बहुत कुछ सिखाती है। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर, 1904 को हुआ था।  उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद और माता का नाम रामदुलारी देवी था। 1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेश प्रसाद की बेटी ललिता से हुआ। ललिता शास्त्री से उन्हें 6 संतानें, दो बेटियां और चार बेटे हुए।

देश को अंग्रेजों से आजाद कराने में शास्त्री जी का खास योगदान रहा है। साल 1920 में शास्त्री जी देश आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे और स्वाधीनता संग्राम के कई आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन आंदोलनों में मुख्‍य रूप से 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन हैं। बचपन में ही शास्त्री जी के पिता की मौत हो गई थी, जिसके कारण वे मां के साथ अपने ननिहाल मिर्जापुर चले गए। यहीं पर उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई।

उन्होंने शिक्षा हासिल करने के लिए विषम परिस्थितियों का डटकर सामना किया। बताया जाता है कि वह रोजाना नदी तैरकर स्कूल जाया करते थे, क्योंकि उस समय बहुत कम गांवों में ही स्कूल होते थे। जाति-व्यवस्था का विरोध करते हुए 12 साल की उम्र में ही उन्होंने अपना उपनाम ‘श्रीवास्तव’ छोड़ दिया. ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ है विद्वान। महज 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। 15 अगस्त 1947 को शास्त्री जी पुलिस और परिवहन मंत्री बने। उनके कार्यकाल के दौरान ही पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति की गई थी। उन्होंने ही अनियंत्रित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठी-डंडों के बजाय पानी के जेट का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था। शास्त्री जी के पास शेवरले इम्पाला कार थी, जिसका वो आधिकारिक उपयोग के लिए इस्तेमाल करते थे। बताया जाता है कि एक बार उनके बेटे ने ऑफिशियल कार का इस्तेमाल किया।

जब शास्त्री जी को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने अपने ड्राइवर से पूछा कि निजी इस्तेमाल के लिए कार का कितनी दूरी पर तक इस्तेमाल किया गया इसके बाद उन्होंने सरकारी खाते में पैसे जमा करवा दिए। 1952 में शास्त्री जी रेल मंत्री बने थे। 1956 में तमिलनाडु में एक ट्रेन दुर्घटना हुई, जिसमें करीब 150 यात्रियों की मौत हो गई। इस घटना के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सेना के जवानों और किसानों महत्व बताने के लिए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भी दिया। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने अपने परिवार के कहने पर एक फिएट कार खरीदी।  उस दौरान वह 12,000 रुपये में थी, लेकिन उनके बैंक खाते में केवल 7,000 रुपये थे। कार खरीदने के लिए उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से 5,000 रुपये के बैंक लोन के लिए आवेदन किया था। उस कार को नई दिल्ली के शास्त्री मेमोरियल में रखा गया है। साल 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश में अनाज की कमी हो गई। देश को खाने की कमी की समस्या से गुजरना पड़ा था।

उस दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी तनख्वाह लेनी बंद कर दी थी। उन्होंने देशवासियों से अपील की थी कि वो हफ्ते में एक दिन एक वक्त व्रत रखें। उनकी इस अपील को मानते हुए सोमवार शाम को भोजनालयों ने शटर बंद कर दिए। लोगों ने भी एक वक्त व्रत रखना शुरू कर दिया था। देशवासियों ने इसे ‘शास्त्री व्रत’ कहना शुरू कर दिया था। लाल बहादुर शास्त्री 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद गए थे। यहां पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर एग्रीमेंट के कुछ ही घंटों बाद (11 जनवरी) उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मौत आज भी एक रहस्य मानी जाती है। बता दें कि शास्त्री जी मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति थे। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सादगी की एक मिसाल है। उन्होंने अपने पद पर रहते हुए हमेशा जनता और अपने दिल की बात सुनी। उन्होंने राजनीति में भी नैतिकता को सर्वोपरि रखा। एक मानक गढ़ा जो आज की राजनीति में कम ही देखने को मिलता है।

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