राहुल गांधी के पास अब क्या हैं विकल्प?

राहुल गांधी के पास अब क्या हैं विकल्प?

‘मोदी सरनेम’ के आपराधिक मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने सूरत कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए राहुल गाँधी को राहत देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का दोषी ठहराने का आदेश उचित है और उक्त आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि राहुल गाँधी के खिलाफ कम से कम 10 आपराधिक मामले लंबित हैं। सूरत कोर्ट ने कॉन्ग्रेस नेता को आपराधिक मानहानि केस में दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी। इसके बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता चली गई थी। इस फैसले को राहुल गाँधी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस हेमंत प्रच्छक ने 7 जुलाई 2023 को फैसला सुनाते हुए कहा कि सजा पर रोक नहीं लगाना राहुल गाँधी के साथ किसी तरह का अन्याय नहीं होगा। उन्होंने कॉन्ग्रेस नेता के खिलाफ चल रहे अन्य आपराधिक मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि राजनीति में समझदारी होना जरूरी है।

लोकसभा चुनाव के दौरान 13 अप्रैल 2019 को राहुल गाँधी ने कर्नाटक की एक सभा में कहा था कि ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है?’ राहुल गाँधी ने कहा था, “नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी इन सभी के नाम में मोदी लगा हुआ है। सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों लगा होता है।” इसको लेकर गुजरात और झारखंड के जगहों पर राहुल गाँधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा किया गया था। इस बयान के बाद भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ सूरत में मामला दर्ज कराया था। राहुल गाँधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत केस दर्ज करवाया था, जो आपराधिक मानहानि से संबंधित था।

23 मार्च को इस मामले में राहुल गांधी को दोषी ठहराते हुए 2 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद उन्हें जमानत भी दे दी गई। हालाँकि, सूरत की अदालत ने उन्हें अपील करने के लिए 30 दिनों का समय दिया था, लेकिन उन्होंने ना ही ऊपरी अदालतों में अपील की और ना ही माफी माँगी। आखिरकार 30 दिन बीतने के बाद उनकी संसद सदस्यता चली गई। सजा सुनाए जाने के दौरान राहुल गाँधी केरल में वायनाड से सांसद थे।

हालांकि उस समय राहुल गांधी के पास तीन विकल्प मौजूद थे। इसमें से दो विकल्प का उपयोग राहुल गांधी ने कर लिया है जिसमें पहला निचली अदालत में उन्होंने अपील की जो खारिज हो गई। अब हाईकोर्ट में अपील की लेकिन यहाँ भी याचिका खारिज हो गई। हालांकि अब राहुल गांधी के पास सिर्फ एक विकल्प बचा हुआ है। वो है सुप्रीम कोर्ट का एकमात्र विकल्प लेकिन यहाँ से भी अगर राहुल गांधी को राहत नहीं मिली तो राहुल गांधी को जेल ही जाना पड़ सकता है और वो 2024 में होने लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया से भी दूर हो सकते है। यानी वो अगले साल होनेवाला चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। और सांसद नहीं बन पाएंगे।

सुनवाई के दौरान गुजरात हाईकोर्ट ने चार महत्वपूर्ण बातें कही जिसमें पहली बात किसी भी बात से नहीं कहा जा सकता की मानहानी के इस मामले में राहुल गांधी के साथ नाइंसाफी हुई है। दूसरा इस मामले में कोर्ट में मौजूद जरूरी सभी तथ्य और सबूत राहुल गांधी के खिलाफ थे। तीसरा सिर्फ पूर्व सांसद होना इस बात का कोई महत्व नहीं है कि राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाई जाई। इसी तरह की बात गुजरात की निचली अदालत ने राहुल गांधी की याचिका खारिज करते हुई कही थी। चौथा राहुल गांधी के खिलाफ अब जो अन्य मामले दर्ज है गुजरात हाई कोर्ट ने उन्हें भी महत्वपूर्ण माना है क्यूंकी राहुल गांधी इससे पहले भी कई बार ऐसे बयान दे चुके है। जिनमें उनके खिलाफ आपराधिक मानहानी के मुकदमे दर्ज कराए गए है। जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हालांकि अब राहुल गाँधी के पास सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता बचा है। और कॉन्ग्रेस ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट जाएगी।

हालांकि अगर सुप्रीम कोर्ट सूरत कोर्ट द्वारा दी गई सजा पर रोक लगा देता है तो उनकी सांसदी बहाल हो सकती है और वे अगला चुनाव लड़ेंगे वर्ना वे प्रधानमंत्री तो दूर, विधानसभा का चुनाव भी नहीं लड़ पाएँगे। कानून के मुताबिक, दो साल और उससे अधिक की सजा होने पर अगले 6 साल के लिए दोषी चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाता है। ऐसे में राहुल गाँधी अभी तक अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हैं। ऐसे में राहुल गाँधी के साल 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने पर तलवार लटका हुआ है। हालांकि सिर्फ 2024 नहीं बल्कि 2029 का चुनाव लड़ने में भी वह असक्षम हो सकते है यानी ये 8 साल का वनवास उन्हें राजनीति में देखने मिल सकता है। और इसका असर विपक्षी एकता गठबंधन पर भी पड़ेगा, जो पहले से ही धाराशायी होती दिख रही है।

लेकिन अगर राहुल गांधी ने पिछले कई मामलों की तरह इस मामले में माफी मांग ली होती तो उन्हें आज ये दिन नहीं देखना पड़ता। और 3 विकल्पों का संकट उन्हें नहीं देखना पड़ता। इस पूरे मामले में राजनीति 2 केंद्रों पर टिकी हुई है। जिसमें एक है न्याय और दूसरा है अन्याय। दरअसल हाईकोर्ट के फैसले के बाद सभी कॉंग्रेसी नेता कह रहे है कि राहुल गांधी निडर है और जनता की हितों के लिए वो केंद्र की मोदी सरकार से लड़ रहे है। हालांकि इन सबके बीच सरकार की बात कहा से आ रही है। राहुल गांधी को दोषी गुजरात की निचली अदालत ने ठहराया है। और आज भी जो फैसला आया है वो मोदी सरकार का नहीं बल्कि गुजरात हाई कोर्ट का है। सोचनेवाली बात यह है कि अगर राहुल गांधी सत्य की लड़ाई लड़ रहे है तो कोर्ट ने आज उन्हें दोषमुक्त क्यों नहीं कर दिया। अगर राहुल गांधी सत्य है तो वो अपने सत्य का सबूत हाई कोर्ट के सामने पेश क्यों नहीं कर पाए।

गुजरात हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने पोस्ट शेयर करते हुए कोर्ट को गलत कहा तो राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राहुल गांधी के बयान का समर्थन करते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है। 53 वर्ष के राहुल गांधी के खिलाफ देश में कुल 16 आपराधिक मामले दर्ज हुए है जिसमें से 8 मामलों में राहुल गांधी को जमानत मिल गई है। इसमने से 7 मामले मानहानी मामले से जुड़े हुए है। और 1 मामला नैशनल हेराल्ड केस से जुड़ा हुआ है। इस मामले में पिछले साल ईडी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी से पूछताछ भी की थी। इस मामले को रद्द करने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी लगाई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। और इस मामले में दोनों ही अभी जमानत पर है। लेकिन इसके बावजूद काँग्रेस पार्टी कहती है कि इन तमाम मामलों में केंद्र सरकार उन्हें फंसा रही है।

कॉंग्रेस के लोगों का कहना शायद यह है कि सारी अदालतें बिकी हुई है, निचली अदालते, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट वही करती है जो उन्हें केंद्र सरकार करने के लिए कहती है। एक तरफ से ये अदालत की अवमानना हुई। राहुल गांधी, उनका परिवार और पार्टी के नेता एक नेरेटिव सेट करने की कोशिश कर रह है कि उनके खिलाफ जीतने भी मामले है वे सारे झूठे है। और उन्हें फँसाया जा रहा है। हालांकि सवाल यह है कि अगर ये सारे मामले झूठे होते या गलत होते और उनके खिलाफ एक भी सबूत नहीं होता तो फिर देश के अलग अलग राज्यों की इतनी सारी अदालतें उन्हें सजा क्यों देती। कोर्ट में भी सबूत पेश किया गए वो राहुल गांधी को दोषी करार देने के लिए पर्याप्त है बावजूद इसके कॉंग्रेस परिवार का आरोप ये हास्यास्पद लगता है।

वहीं पिछले दिनों जब पटना में विपक्षी दलों की बैठक हुई थी तो आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने राहुल गांधी से कहा था कि आप दूल्हा बनिए, बरात में हम सब चलेंगे। उनका मतलब विपक्षी एकता का अग्रसर बनने से था। वहीं अगर अब, राहुल गांधी चुनाव ही नहीं लड़ पाएँगे तो उन्हें दूल्हा बनाने पर आख़िर कोई क्यों राज़ी होगा? वैसे महाराष्ट्र के घटनाक्रम से तो विपक्षी एकता को धक्का लगा ही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी अगर राहुल गांधी हार गए तो नुक़सान भारी होगा और उसकी भरपाई बहुत मुश्किल हो जाएगी। सत्ता पक्ष के ख़िलाफ़ साझा उम्मीदवार खड़ा करने का विचार तो अच्छा है, लेकिन इसे मंजिल तक पहुँचाना बहुत मुश्किल दिखाई पड़ रहा है।

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