यूपी के प्रयागराज में अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई। सबसे बड़ी बात यह कि इन दोनों माफिया को मारवाने में सबसे बड़ा कोई रोल अदा किया है तो वह है मीडिया। इस हत्या के लिए अगर किसी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए तो मीडिया को। अन्यथा इस मामले में पुलिसकर्मी को दोष देना में मुद्दे की अनदेखी करना होगा। जिस तरह से मीडिया इन माफिया भाइयों के पीछे पड़ी थी। उसमें कहीं न कहीं इस हत्या के लिए मीडिया को आत्ममंथन करने की जरुरत है। उसे आत्मनिरीक्षण करने की जरुरत है कि क्या मीडिया को माफिया के पीछे पीछे क्यों भागना पड़ रहा था। क्या वे सेलिब्रेटी थे। जिसकी पहली झलक दिखाकर टीवी चैनल टीआरपी बढ़ाना चाहते थे।
गुजरात के साबरमती जेल से प्रयागराज लाते समय जिस तरह से अतीक अहमद के पीछे पीछे मीडिया हाउसेस की गाड़ियां चल रही थी। वह मुख्य धारा की मीडिया हो नहीं सकती। मीडिया को सोचना चाहिए कि इस कवरेज से जनता में क्या संदेश जा रहा है। इस दौरान मीडिया से अतीक अहमद ने जिस तरह से बात करते हुए कहा था कि अगर हम आज ज़िंदा है तो आप लोगों की वजह से, मीडिया की वजह से। टीआरपी के नशे में चूर मीडिया ने जिस तरह से माफिया का महिमामंडन कर रही थी। वह अक्षम्य है। जिस तरह से मीडिया हाउसेस ने दोनों माफिया भाइयों के मुंह में बूम घुसेड़ने की कोशिश की यह सारी दुनिया ने देखा है। अब जब अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ मारा गया है तो मीडिया को सोचने की जरुरत है कि कब, कहां, कैसे और क्यों जैसे मामलों के लिए माफियों का पिछलगू नहीं होना चाहिए।
इस घटना में भी तीनों हमलावर मीडियाकर्मी के रूप में मौके पर पहुंचे थे। भले अब मीडिया यह सवाल कर रहा है कि इस घटना के दौरान पुलिस सुरक्षा कहां थी तो मीडिया वालों को सोचना चाहिए कि हमलावर भी पत्रकार के ही भेष में आये थे। तो साफ़ है कि कोई भी पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश नहीं कर सकती थी। अगर उन्हें रोकने का प्रयास किया जाता तो मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देकर टीवी स्किन को काला करने पर आमादा हो जाती।
भले टीवी चैनलों के पत्रकार गला फाड़ फाड़कर चिल्ला रहे हो कि पुलिस सुरक्षा क्या कर रही थी। उसका इंतजाम क्या था, खुफिया एजेंसिया क्या कर रही थी। ये बातें कह कहकर मीडिया अपनी नाकामी ही छुपायेगा। अगर मेडिकल के लिए लाये गए माफिया भाइयों को इन पत्रकारों से बात नहीं करने दिया गया होता तो यह हादसा नहीं होता। मीडिया से भी सवाल पूछा जाना चाहिए इतने बड़े माफिया और उन्हें जान का खतरा है इसके बावजूद मीडिया कर्मी दोनों भाइयों से बाइट ले रहे थे।
वहीं, अब अगर शासन प्रशासन अभी भी नहीं चेता तो ऐसी घटनाएं भविष्य में होती रहेंगी। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरुरी है कि ऐसे खतरनाक लोगों को मीडिया से दूर रखा जाए। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे मामले में मीडिया का साथ होना सबसे बड़ा रिस्क है। जिस सुरक्षा घेरे में माफिया भाइयों को रखा गया था। लेकिन इन माफिया भाइयों तक अगर कोई पहुंच रहा था तो केवल मीडिया। आज मीडिया ही दोनों भाइयों की काल बन गई।
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