सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन को लेकर संविधान में कोई जिक्र नहीं है|इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि विधानमंडल और कैबिनेट कर्मचारियों की पदोन्नति के मानदंड, प्रकृति और योग्यता तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली मनोज मिश्रा की पीठ ने उक्त फैसला सुनाया| भारत में कोई भी सरकारी कर्मचारी यह दावा नहीं कर सकता कि पदोन्नति उसका अधिकार है, क्योंकि संविधान में पदोन्नति का कोई उल्लेख नहीं है।
पीठ ने आगे कहा कि विधानमंडल या कैबिनेट पदोन्नति पदों को भरने के लिए मानदंड और प्रक्रिया निर्धारित कर सकते हैं। पदोन्नति पदों में रिक्तियों को भरने के लिए नियम नौकरी की प्रकृति और उम्मीदवार के प्रदर्शन के आधार पर बनाए जा सकते हैं। साथ ही, कोर्ट इस बात की भी समीक्षा नहीं कर सकता कि प्रमोशन के लिए अपनाई गई नीति सक्षम उम्मीदवार के लिए उपयुक्त है या नहीं|
गुजरात में जिला जजों के प्रमोशन को लेकर विवाद चुनाव को लेकर शुरू हुआ था| विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो बेंच ने इस पर टिप्पणी की| सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकारी विभागों में प्रमोशन से जुड़े कई मुद्दों में स्पष्टता का रास्ता साफ हो गया है| कई जगहों पर सरकारी कर्मचारी प्रमोशन के मुद्दे पर कोर्ट चले जाते हैं|
पारदीवाला ने कहा कि कई जगहों पर वर्षों से काम कर रहे कर्मचारी संगठन के प्रति अपनी वफादारी के इनाम का इंतजार कर रहे हैं| सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन के मामले में बार-बार कहा है कि प्रमोशन के लिए काम की गुणवत्ता के साथ-साथ वरिष्ठता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
प्रमोशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई मामलों की सुनवाई हो चुकी है| प्रमोशन में आरक्षण मिलने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था| सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राज्य पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं और पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
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