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म्यांमार में जारी संघर्ष से 26,000 लोग विस्थापित, भारत पर पड़ेगा असर!

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प्रशांत कारुलकर

म्यांमार के पश्चिमी रक़ाइन राज्य में म्यांमार की सेना और एक जातीय अल्पसंख्यक सशस्त समूह के बीच नए सिरे से हुए संघर्ष में 26,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अरकान आर्मी (एए) और सेना के बीच चल रहे संघर्षों के कारण “रक़ाइन में 26,175 लोग विस्थापित हो गए हैं”। एए के लड़ाकों ने सोमवार को रक़ाइन और पड़ोसी चिन राज्य में सुरक्षा बलों पर हमले किए, जिससे एक अस्थिर संघर्ष विराम समाप्त हो गया और सेना के उत्तर और पूर्व में विरोधियों से लड़ने के साथ-साथ एक और मोर्चा खुल गया।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने कहा कि नए विस्थापन से मानवीय जरूरतों में वृद्धि हुई है और उन लोगों के लिए संकट और बढ़ गया है जो पहले से ही विस्थापित हैं। कार्यालय ने कहा कि “विस्थापित हुए लोगों को आश्रय, भोजन, पानी, स्वच्छता और चिकित्सा देखभाल सहित तत्काल सहायता की आवश्यकता है।” विस्थापित लोगों में कई बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं, जो संघर्ष के कारण पहले से ही गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। कार्यालय ने कहा कि “म्यांमार सरकार को मानवीय सहायता और राहत के प्रयासों में बाधा नहीं डालनी चाहिए और सभी पक्षों को संघर्ष को समाप्त करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।”

म्यांमार में वर्षों से जातीय अल्पसंख्यक समूहों और सेना के बीच संघर्ष चल रहा है। 2017 में, रक़ाइन राज्य में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सेना के बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई के कारण 700,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए, जिनमें से कई बांग्लादेश भाग गए।

ओचा के अनुसार, विस्थापित लोगों में से अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं, जो अब खाद्य, आश्रय और बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं की सख्त जरूरत है। उनमें से कई लोग भारत की सीमा के पास शिविरों में रहने को मजबूर हैं।भारत सरकार ने कहा है कि वह म्यांमार में मानवीय संकट से प्रभावित लोगों की मदद करने के लिए तैयार है, लेकिन उसने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह स्थिति पर नजर रख रहा है और जरूरत पड़ने पर मदद करने के लिए तैयार है।

हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत को म्यांमार में मानवीय संकट में और अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उनका कहना है कि इससे भारत को म्यांमार के लोगों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने और क्षेत्र में अपनी साख को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

भारत के लिए म्यांमार में मानवीय संकट के कई निहितार्थ हो सकते हैं। सबसे पहले, यह भारत के सुरक्षा पर असर डाल सकता है। विस्थापित लोगों के बड़े पैमाने पर आगमन से सीमा पर अशांति और अपराध में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, म्यांमार में अस्थिरता के कारण भारत के आर्थिक हितों को भी नुकसान हो सकता है। भारत म्यांमार के साथ कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में शामिल है, और यह संघर्ष इन परियोजनाओं में देरी या रद्दीकरण का कारण बन सकता है।

दूसरे, म्यांमार में मानवीय संकट से भारत की विदेश नीति पर भी असर पड़ सकता है। भारत ने लंबे समय से म्यांमार के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने की नीति का पालन किया है, लेकिन हालिया संघर्ष से इस नीति पर सवाल उठ सकते हैं। भारत को यह तय करना होगा कि वह म्यांमार के साथ अपने संबंधों को कैसे बनाए रखना चाहता है और उसे म्यांमार में मानवीय संकट से निपटने में क्या भूमिका निभानी चाहिए।

तीसरे, म्यांमार में मानवीय संकट से भारत के घरेलू राजनीति पर भी असर पड़ सकता है। विस्थापित लोगों के बड़े पैमाने पर आगमन से नस्लवाद और विदेशी विरोधी भावनाओं में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, म्यांमार में संघर्ष से भारत के पूर्वी राज्यों, विशेष रूप से मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश पर भी असर पड़ सकता है, जो म्यांमार के साथ सीमा साझा करते हैं।

कुल मिलाकर, म्यांमार में मानवीय संकट से भारत के लिए कई निहितार्थ हैं। भारत को इस संकट में अपनी भूमिका पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए और अपने हितों की रक्षा के लिए सबसे उपयुक्त कार्रवाई करनी चाहिए।

 

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