गुरुवार (13 फरवरी) को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मोहम्मद अजान खान नामक आरोपी को जमानत दे दी, जिस पर एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने और उसे दो बार गर्भवती करने का आरोप है। जजमेंट कॉपी के अनुसार, अपराध के समय पीड़िता की उम्र सिर्फ़ 16 साल थी जबकि खान की उम्र 22 साल थी। यह दरिंदगी 15 महीने तक चली और जनवरी 2023 से अप्रैल 2024 तक चली।
पुलिस शिकायत के अनुसार आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई। मोहम्मद अजान खान पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376, 376 (3), 376 (2) (एन) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। दरम्यान आरोपी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में जमानत याचिका दायर की थी, जिस पर न्यायमूर्ति मिलिंद एन जाधव की एकल पीठ ने सुनवाई की।
न्यायमूर्ति मिलिंद एन जाधव ने गुरुवार (13 फरवरी) को आदेश में कहा कि पीड़िता नाबालिग थी जबकि आरोपी मोहम्मद अजान खान वयस्क था। उन्होंने कहा, “वे एक-दूसरे को जानते थे और एफआईआर में अभियोक्ता के बयान और मेडिकल अधिकारी के समक्ष दर्ज बयान के अनुसार यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वे दोनों पिछले दो वर्षों से प्रेम संबंध में थे और एफआईआर दर्ज होने से 15 महीने पहले से शारीरिक संबंध में थे, जबकि उसकी उम्र 18 वर्ष से कम थी। यह तथ्य उसके स्पष्ट स्वीकारोक्ति और उसके बाद उसके जुड़वां गर्भधारण और एमटीपी के कारण पुष्ट होता है।”
न्यायमूर्ति मिलिंद एन जाधव ने आगे कहा, “इससे प्रथम दृष्टया पता चलता है कि दोनों पक्षों के बीच की हरकतें सहमति से हुई थीं। रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह आवेदक से प्यार करती थी और इसलिए उसने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, जैसा कि उसने स्वीकार किया है।”
बॉम्बे कोर्ट ने मोहम्मद अजान खान को जमानत दे दी, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि इस मामले में कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है और पक्षों के बीच कोई हिंसा नहीं हुई है। कोर्ट ने फैसला सुनाया,“ मेरे सामने रखी गई सामग्री से यह संकेत नहीं मिलता कि आवेदक ने अपने रिश्ते के दौरान अभियोक्ता पर किसी तरह का बल प्रयोग किया है। मामला सहमति से हुआ प्रतीत होता है, जो अभियोक्ता के एक बार नहीं, बल्कि दो बार गर्भवती होने पर उसकी माँ को पता चला। आवेदक ने जमानत दिए जाने के लिए एक मजबूत मामला बनाया है, क्योंकि समान आयु वर्ग के एक लड़के और लड़की के बीच सहमति से लंबे समय से प्रेम संबंध में शामिल होने से उसे हिरासत में रखना अपराध नहीं बनता है, आवेदक एक यौन शिकारी नहीं है, बल्कि एक युवा व्यक्ति है जो सहमति से संबंध में शामिल था, जिसे अभियोक्ता ने स्वीकार किया है।”
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अदालत ने कहा कि पीड़ित और आरोपी दोनों ही अपने आचरण को समझने की उम्र के हैं। अदालत ने आगे कहा कि जेल के माहौल और युवा अपराधियों को जमानत पर रिहा करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों के कारण प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। आरोपी को जमानत देते हुए न्यायमूर्ति मिलिंद एन जाधव ने कुछ शर्तें लगाईं है, जिनमें 15,000 रुपये का बांड भरना, मुकदमे के दौरान सहयोग करना, महाराष्ट्र छोड़ने से पहले पूर्व अनुमति लेना तथा कुछ अन्य शर्तें शामिल हैं।
बता दें की, इस फैसले से पूर्व सहायक लोक अभियोजक (एपीपी) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी और उसे इस रिश्ते में बहला-फुसलाकर लाया गया था। उन्होंने तर्क दिया था कि मामले के संदर्भ में नाबालिग लड़की की सहमति का कोई महत्व नहीं है।