शेख हसीना के तख्तापलट के बाद अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस की सरकार ने बांग्लादेश के शासन में सुधार के सुझाव देने के लिए छह सुधार आयोगों का गठन किया। चार आयोगों ने 14 जनवरी को मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस को अपनी सिफारिशें सौंप दी हैं। वहीं संविधान सुधार आयोग के प्रमुख ने संविधान से राष्ट्रवाद, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसी व्यवस्था को हटाने के सुझाव दिए है।
दरअसल चुनाव सुधार आयोग, भ्रष्टाचार निरोधक आयोग, पुलिस सुधार आयोग और संविधान सुधार आयोग इन चारों आयोगों के प्रमुखों (बदीउल आलम मजूमदार, इफ्तेखारुज्जमां, सफर राज हुसैन और अली रियाज)ने ढाका के तेजगांव स्थित यूनुस के कार्यालय में अपनी रिपोर्ट सौंपी।
मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के तहत बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं के खिलाफ महीनों तक चली हिंसा के बाद इस तरह धर्मनिरपेक्षता को मिटाने की सिफारिश आई है। संविधान सुधार आयोग ने संविधान में राष्ट्रवाद, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को बदलने का सुझाव दिया है।
रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए अली रियाज़ ने आयोग की कुछ प्रमुख सिफारिशों पर प्रकाश डाला, जिसमें बांग्लादेश का आधिकारिक बंगाली नाम ‘गण प्रजातंत्र बांग्लादेश’ से बदलकर ‘जन गणतंत्र बांग्लादेश’ करना शामिल है। हालांक, देश का अंग्रेजी नाम ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश’ ही रहेगा। संविधान में संशोधन करने के लिए जनमत संग्रह कराने का प्रावधान भी सुझाया गया है।
चुनाव सुधार आयोग ने लगभग 150 सिफारिशें प्रस्तुत कीं, जिनमें यह भी शामिल है कि प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कभी भी राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त होने का पात्र नहीं होना चाहिए। पुलिस सुधार आयोग ने पुलिस को लोगों के अनुकूल बनाने के उपाय सुझाए।
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संविधान से धर्मनिरपेक्षता को हटाने की सिफारिश की रिपोर्ट मिलने मुहम्मद यूनुस ने इसे ‘ऐतिहासिक क्षण’ करार कर दिया। अपने सार्वजनिक संबोधन में यूनुस ने कहा, “यह केवल औपचारिकता नहीं है; यह एक ऐतिहासिक क्षण है। विभिन्न समितियाँ बनाई जाती हैं, रिपोर्ट प्रकाशित की जाती हैं, और औपचारिकताएँ निभाई जाती हैं, लेकिन आज की घटना इन सबसे परे है। इस घटना को इतिहास के हिस्से के रूप में याद किया जाएगा क्योंकि ये आयोग एक ऐतिहासिक मोड़ से पैदा हुए थे।”