यह अध्ययन क्यूआईएमआर बर्गहोफर मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने किया है और इसे प्रतिष्ठित शोध पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है।
शोध के अनुसार, डिप्रेशन की संभावना महिलाओं में पुरुषों की तुलना में लगभग दोगुनी होती है और इसके पीछे जेनेटिक्स का अहम योगदान हो सकता है।
इस शोध की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. ब्रिटनी मिशेल ने बताया, ”अब तक डिप्रेशन पर जितने भी अध्ययन हुए हैं, वे अधिकतर पुरुषों पर आधारित रहे हैं।
शोध में करीब 130,000 डिप्रेशन से ग्रसित महिलाओं और 65,000 पुरुषों के डीएनए की तुलना की गई, जिसमें पाया गया कि जिन वेरिएंट्स की पहचान की गई है, वे जन्म से मौजूद होते हैं।
शोध में देखा गया कि पुरुषों और महिलाओं में डिप्रेशन का असर अलग-अलग होता है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि इलाज और दवाओं को भी अब इस फर्क के हिसाब से विकसित किया जाना चाहिए।
इस शोध की एक अन्य प्रमुख वैज्ञानिक, डॉ. जोडी थॉमस, कहती हैं कि अगर हम डिप्रेशन की जड़ तक जाना चाहते हैं तो हमें पुरुषों और महिलाओं के बीच के जेनेटिक फर्क को समझना ही होगा।
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