अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक बार फिर नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने को लेकर नाराज़गी जताई है। उन्होंने कहा कि चाहे वे भारत-पाकिस्तान युद्ध रोकें, यूक्रेन में शांति की कोशिश करें या मिडिल ईस्ट में अब्राहम समझौते करवाएं — उन्हें “नोबेल प्राइज कभी नहीं मिलेगा।”
ट्रंप ने यह बयान ट्रुथ सोशल नामक मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा किया। उन्होंने लिखा, “No matter what I do, I won’t get a Nobel Peace Prize… न भारत-पाकिस्तान की जंग रोकने पर, न सर्बिया-कोसोवो की शांति के लिए, न मिस्र और इथियोपिया के बीच तनाव कम करने पर। लेकिन मुझे परवाह नहीं, लोगों को सब याद है।”
डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब भारत ने 7 मई को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए, तब पाकिस्तान ने 8-10 मई के बीच भारतीय सैन्य ठिकानों पर जवाबी हमले की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि इस स्थिति को वॉशिंगटन की मध्यस्थता से टाला गया और 10 मई को दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल्स ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स (DGMOs) के बीच बातचीत के बाद संघर्षविराम पर सहमति बनी। ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा कि यह एक बड़ी कूटनीतिक सफलता थी और इसी के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर से फोन पर बात की।
हालांकि, भारत सरकार ने इस दावे का खंडन किया है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कनाडा के कनानास्किस में स्पष्ट रूप से कहा कि भारत ने अमेरिका को कोई मध्यस्थता का प्रस्ताव नहीं दिया और यह बातचीत सिर्फ भारत और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों के बीच हुई थी। मोदी ने ट्रंप को साफ कह दिया कि भारत कभी किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं स्वीकार करेगा।
दूसरी ओर, पाकिस्तान सरकार ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि वे राष्ट्रपति ट्रंप को 2026 का नोबेल शांति पुरस्कार देने के लिए औपचारिक नामांकन करेंगे। उनके बयान में कहा गया, “जब दक्षिण एशिया में परमाणु युद्ध का खतरा था, ट्रंप ने अपने कूटनीतिक प्रयासों से स्थिति को संभाला और लाखों लोगों की जान बचाई।उनकी मध्यस्थता के बिना भारत-पाक संघर्ष विकराल रूप ले सकता था। ट्रंप ने एक सच्चे ‘पीसमेकर’ की भूमिका निभाई है।”
ट्रंप ने अपनी पोस्ट में अब्राहम समझौते, रूस-यूक्रेन वार्ता, ईरान-इज़राइल तनाव, और कांगो-रवांडा के बीच नए शांति समझौते का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि सोमवार को कांगो-रवांडा संधि के प्रतिनिधि वॉशिंगटन में दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेंगे। उन्होंने कहा, “यह अफ्रीका के लिए एक महान दिन है… लेकिन फिर भी मुझे नोबेल नहीं मिलेगा। कोई फर्क नहीं पड़ता मैं क्या करूं।”
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने ट्रंप की पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि ट्रंप को नोबेल इसलिए चाहिए क्योंकि ओबामा को मिला था। “ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति नहीं ला पाए, भारत-पाक संघर्ष में भी सच्ची भूमिका नहीं निभा सके, और ईरान से अभी तक कोई समझौता नहीं हो पाया। वे सिर्फ क्रेडिट लेना चाहते हैं।” गौरतलब है कि बराक ओबामा को राष्ट्रपति बनने के आठ महीने के भीतर 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार मिल गया था, जिसे लेकर रिपब्लिकन खेमे में लंबे समय से नाराज़गी है।
डोनाल्ड ट्रंप के ताज़ा बयान से स्पष्ट है कि वे अपने कूटनीतिक प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने के लिए लगातार सक्रिय हैं। लेकिन भारत ने जिस साफगोई से अमेरिका की किसी भी मध्यस्थता की भूमिका को खारिज किया है, उससे ट्रंप के दावे सवालों के घेरे में आ गए हैं। हालांकि, पाकिस्तान की ओर से नोबेल नामांकन की घोषणा की गई है।
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