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भारत–ओमान CEPA: खाड़ी देशों में भारत की आर्थिक मौजूदगी को रणनीतिक मजबूती का संकेत

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भारत और ओमान के बीच प्रस्तावित व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) नई दिल्ली की खाड़ी क्षेत्र में गहरी और टिकाऊ आर्थिक भागीदारी की रणनीति को रेखांकित करता है। यह समझौता केवल एक व्यापार करार भर नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय वैल्यू चेन में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने, आपूर्ति शृंखलाओं की मजबूती सुनिश्चित करने और वैश्विक पुनर्संरेखण के दौर में दीर्घकालिक आर्थिक साझेदारियां गढ़ने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

ओमान के लिए भी यह समझौता उतना ही महत्वपूर्ण है। यह किसी एक देश के साथ मस्कट का दूसरा मुक्त व्यापार समझौता होगा और लगभग दो दशकों में पहला ऐसा करार है। यह ओमान की उस रणनीति को दर्शाता है, जिसके तहत वह अपनी अर्थव्यवस्था का विविधीकरण, गैर-तेल व्यापार का विस्तार और दीर्घकालिक निवेश आकर्षित करना चाहता है, जहां भारत एक स्वाभाविक और भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभरता है।

भारत–ओमान CEPA, हाल के वर्षों में भारत द्वारा किए गए व्यापार समझौतों की उस व्यापक श्रृंखला का हिस्सा है, जिनसे किसानों, निर्यातकों और विनिर्माताओं को ठोस लाभ मिल रहा है। 2025 में यूनाइटेड किंगडम के साथ CETA के तहत 90 प्रतिशत से अधिक वस्तुओं पर शुल्क में कटौती हुई, जिससे द्विपक्षीय व्यापार के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ।
2024 में EFTA ब्लॉक (स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन) के साथ समझौते ने बाजार पहुंच के साथ-साथ भारत में निवेश प्रतिबद्धताओं को मजबूती दी। 2022 में ऑस्ट्रेलिया और यूएई, तथा 2021 में मॉरीशस के साथ हुए करारों ने भारत के लिए नए बाजार खोले और अफ्रीका तक पहुंच का द्वार बनाया। ये सभी पहलें एक स्पष्ट नीति दिशा दिखाती हैं—निर्भरता के बजाय विविधीकरण, कमजोरी के बजाय लचीलापन और लेन-देन से आगे बढ़कर साझा विकास।

भारत और ओमान के बीच आर्थिक संबंधों में भी यही रुझान दिखता है। बीते आठ वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार 2017–18 में 6.70 अरब डॉलर से बढ़कर 2024–25 में 10.61 अरब डॉलर हो गया। चालू वित्त वर्ष में भी रफ्तार बनी रही और अप्रैल से सितंबर 2025–26 के बीच व्यापार 5.45 अरब डॉलर तक पहुंच गया।

व्यापार संरचना में विविधता भी साफ है। ओमान भारत का 28वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत ओमान के लिए गैर-तेल आयात का चौथा और गैर-तेल निर्यात का तीसरा सबसे बड़ा गंतव्य बन चुका है। यह बदलाव हाइड्रोकार्बन से परे परिपक्व आर्थिक रिश्ते की ओर संकेत करता है।

भारत के ओमान को निर्यात में परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, एल्युमिनियम ऑक्साइड, चावल, मशीनरी, बॉयलर, विद्युत उपकरण, प्लास्टिक, लौह-इस्पात, सिरेमिक, कॉस्मेटिक्स और विमान से जुड़े घटक शामिल हैं। वहीं, ओमान भारत की ऊर्जा और औद्योगिक आपूर्ति शृंखला में अहम भूमिका निभाता है। भारत के आयात में कच्चा तेल और एलएनजी प्रमुख हैं, साथ ही खाद, कार्बनिक रसायन, सल्फर, अमोनिया, लौह अयस्क, प्लास्टिक और विमानन घटक भी शामिल हैं।

व्यापार के साथ-साथ निवेश संबंध भी मजबूत हैं। ओमान में 6,000 से अधिक भारत–ओमान संयुक्त उपक्रम सक्रिय हैं, जिनके माध्यम से करीब 7.5 अरब डॉलर का निवेश ओमानी अर्थव्यवस्था में हुआ है। इसके विपरीत, अप्रैल 2000 से मार्च 2025 के बीच ओमान से भारत में 605 मिलियन डॉलर से अधिक का एफडीआई इक्विटी प्रवाह दर्ज किया गया, जो दीर्घकालिक रणनीतिक विश्वास को दर्शाता है।

संस्थागत ढांचे ने इस साझेदारी को और गहराई दी है। ओमान–इंडिया जॉइंट इन्वेस्टमेंट फंड (OIJIF), जो 2010 में एसबीआई और ओमान इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी की 50:50 भागीदारी से बना, अब तक भारत में 320 मिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है। दिसंबर 2023 में सुल्तान हैथम बिन तारिक की भारत यात्रा के दौरान घोषित 300 मिलियन डॉलर का तीसरा ट्रॉन्च अब लागू हो रहा है। इसी तरह, ओमान इंडिया फर्टिलाइज़र कंपनी (OMIFCO)—2006 से संचालित 969 मिलियन डॉलर का संयुक्त उपक्रम, भारत की खाद सुरक्षा और ओमान के औद्योगिक विकास का अहम स्तंभ बना हुआ है।

भारतीय कंपनियां ओमान के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में संयुक्त उपक्रमों और निवेश के जरिए अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हैं। तेल-गैस, निर्माण, लॉजिस्टिक्स और विनिर्माण के साथ-साथ ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रीन अमोनिया, नवीकरणीय ऊर्जा, हरित इस्पात, अपशिष्ट प्रबंधन और सॉफ्टवेयर जैसे उभरते क्षेत्रों में भी विस्तार हो रहा है। यह ओमान के विजन 2040 और भारत की सतत विकास रणनीति से मेल खाता है।

कुल मिलाकर, प्रस्तावित भारत–ओमान CEPA शुल्क कटौती से कहीं आगे जाकर दीर्घकालिक रणनीतिक संरेखण को मजबूत करने का प्रयास है। बढ़ते व्यापार, गहराते निवेश और भविष्य उन्मुख क्षेत्रों में सहयोग के साथ, यह साझेदारी आने वाले वर्षों में भारत–खाड़ी आर्थिक सहयोग का एक मजबूत मॉडल बनने की दिशा में आगे बढ़ रही है।

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