झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल में ‘बच्चा चोरी’ की अफवाहों ने आतंक का रूप ले लिया है। पिछले एक महीने में ही इस अफवाह के चलते 12 से अधिक घटनाओं में 30 से ज्यादा बेगुनाह लोग भीड़ की हिंसा का शिकार हो चुके हैं। यह सिलसिला अब खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है, जहां बिना किसी सच्चाई के, शक के आधार पर लोगों को पीट दिया जाता है, पेड़ से बांध दिया जाता है या घंटों बंधक बना लिया जाता है।
हाल ही की कुछ घटनाएं इसे और भयावह बनाया हैं। दुमका के गोपीकांदर बाजार में एक महिला और पुरुष को सिर्फ इसलिए भीड़ ने घेर लिया क्योंकि वे आधार कार्ड नहीं दिखा सके। उन्हें बच्चा चोर बताकर पीटने की कोशिश की गई। पुलिस समय पर पहुंचती, तभी उनकी जान बची। जांच में पता चला कि वे भाई-बहन हैं और बहुरूपिया बनकर मनोरंजन कर जीवनयापन करते हैं। इसी दिन, डोमपाड़ा में एक व्यक्ति को पेड़ से बांधकर बेरहमी से पीटा गया।
4 अप्रैल को एक बीटेक छात्र रंजीत कुमार को बच्चा चोर समझकर पीटा गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह नशे की हालत में असामान्य हरकत कर रहा था। 1 अप्रैल को गोपीकांदर में एक मूक-बधिर युवक मनोज हांसदा को तीन घंटे तक ग्रामीणों ने बंधक बनाए रखा।
इन मामलों में एक भी केस ऐसा नहीं है, जिसमें सच में बच्चा चोरी हुई हो। दुमका के एसपी पीतांबर सिंह खेरवार खुद मानते हैं कि हाल के दिनों में राज्य में बच्चा चोरी की एक भी पुष्टि नहीं हुई है। इसके बावजूद, अफवाहें इतनी तेज़ी से फैल रही हैं कि कोई भी अनजान चेहरा हिंसक भीड़ के लिए ‘बच्चा चोर’ बन जाता है। मार्च के अंत में गोड्डा और पाकुड़ जिलों में भी ऐसे मामले सामने आए, जहां बिहार के युवक, जड़ी-बूटी बेचने वाले लोग और अन्य राहगीर भी अफवाह की चपेट में आ गए।
प्रशासन अब माइकिंग, पोस्टर और जनजागरूकता अभियान के जरिए लोगों को समझाने की कोशिश कर रहा है कि बच्चा चोरी की कोई घटना नहीं हुई है। लेकिन बड़ा सवाल है—जब तक कानून को हाथ में लेने वाली मानसिकता पर लगाम नहीं लगती, क्या इन बेकसूरों की पिटाई रुक पाएगी?
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