ईरान की ‘हॉर्मुज जलडमरूमध्य’ बंद करने की योजना से भारत पर क्या होगा असर!

तेल कीमतों का क्या होगा भविष्य

ईरान की ‘हॉर्मुज जलडमरूमध्य’ बंद करने की योजना से भारत पर क्या होगा असर!

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अमेरिका द्वारा ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हवाई हमलों के बाद पश्चिम एशिया में तनाव तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसी बीच ईरानी मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि तेहरान अब ‘हॉर्मुज जलडमरूमध्य’ को बंद करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। यह वही रणनीतिक जलमार्ग है जो दुनिया की ऊर्जा आपूर्ति की नसों में से एक माना जाता है, और अगर यह बंद होता है तो वैश्विक तेल आपूर्ति पर बड़ा असर पड़ सकता है — खासकर भारत जैसे ऊर्जा-निर्भर देशों पर।

हॉर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी को अरब सागर और हिंद महासागर से जोड़ने वाला एक बेहद संकरा, लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण समुद्री रास्ता है। इसकी चौड़ाई सबसे संकरी जगह पर महज 33 किलोमीटर है, और इसमें आने-जाने के लिए सिर्फ 3 किलोमीटर चौड़ी जलमार्ग लेन ही जहाजों के लिए सुरक्षित मानी जाती है। यही वजह है कि यह क्षेत्र किसी भी भौगोलिक या सैन्य तनाव के दौरान बेहद संवेदनशील बन जाता है।

यह जलडमरूमध्य दुनिया के कुल तेल व्यापार का लगभग 20% वहन करता है। सऊदी अरब, ईराक, ईरान, कुवैत, कतर और यूएई जैसे देशों के तेल निर्यात का मुख्य मार्ग यही है। अगर ईरान इसे बंद करता है, तो यह न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती देगा, बल्कि वैश्विक बाजारों में तेल की आपूर्ति के लिए खतरा बन जाएगा।

भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए प्रतिदिन करीब 5.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल आयात करता है, जिसमें से लगभग 2 मिलियन बैरल तेल हॉर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते आता है। ऐसे में यह मार्ग बंद होने की स्थिति में भारत पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार फिलहाल चिंता की कोई बड़ी वजह नहीं है।

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अपने तेल आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाई है। अब भारत रूस, अमेरिका और ब्राज़ील जैसे देशों से भी बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा है, जिनके आपूर्ति मार्ग हॉर्मुज जलडमरूमध्य से नहीं गुजरते। रूस का तेल आमतौर पर सुज कैनाल, अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप या प्रशांत महासागर के रास्ते भारत पहुंचता है।

गैस की बात करें तो भारत के प्रमुख एलएनजी (LNG) सप्लायर — जैसे कतर, ऑस्ट्रेलिया, रूस और अमेरिका — भी इस जलमार्ग पर निर्भर नहीं हैं, जिससे भारत की गैस आपूर्ति फिलहाल सुरक्षित मानी जा रही है।

हालांकि भारत पर प्रत्यक्ष आपूर्ति संकट की आशंका कम है, लेकिन वैश्विक बाजारों की अनिश्चितता के कारण कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तनाव यूं ही बना रहा तो कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं। इससे भारत में पेट्रोल-डीज़ल और एलपीजी की कीमतों पर असर पड़ सकता है और महंगाई का दबाव बढ़ सकता है।

ईरान द्वारा हॉर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का इशारा निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक बड़ी चेतावनी है। भले ही भारत ने अपने विकल्प मजबूत किए हों, लेकिन वैश्विक कच्चे तेल बाजार में अस्थिरता घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। अब सारी निगाहें ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई के फैसले पर टिकी हैं, जो इस संभावित कदम को मंजूरी देंगे या नहीं — यह आने वाले कुछ दिनों में स्पष्ट होगा।

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