मणिपुर तोड़फोड़ और आगजनी की क्या है वजह? जाने मैतई समाज क्या है?      

मणिपुर के मैतई समुदाय चर्चा में है। कहा जा रहा है कि इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग का राज्य के आदिवासी विरोध कर रहे हैं। 

मणिपुर तोड़फोड़ और आगजनी की क्या है वजह? जाने मैतई समाज क्या है?       

मणिपुर तोड़फोड़ और आगजनी के बाद से यहां बड़ी संख्या में पुलिस बल और जवानों को तैनात किया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि मणिपुर में दूसरी बार तोड़फोड़ और हिसंक झड़प की घटना हुई है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर मणिपुर में बार बार हिंसक घटनाएं क्यों हो रही हैं। इस घटना के बाद मणिपुर के मैतई समुदाय चर्चा में आ गया है। कहा जा रहा है कि इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग का राज्य के आदिवासी विरोध कर रहे हैं। बुधवार को मणिपुर में आदिवासी एकता मंच की रैली में हिंसक झड़प हुई।

बताया जा रहा है कि मैतई समुदाय को एसटी में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए छात्रों का एक संगठन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन ऑफ़ मणिपुर ने द्वारा बुधवार को मार्च का आयोजन किया था। विरोध प्रदर्शन के दौरान आदिवासी और गैर आदिवासी आपस में भिड़ गए।  यह घटना तोरंबग इलाके में हुई। जिसके बाद मणिपुर के आठ जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया। साथ ही पांच दिनों के लिये इंटरनेट सुविधा को भी सस्पेंड कर दिया गया।

गौरतलब है कि मणिपुर में मैतई समुदाय की कुल आबादी 64 फीसदी से ज्यादा है। यहां नब्बे प्रतिशत मैतई समुदाय पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। मुख्यतः यह समुदाय इम्फाल में निवास करता है। मैतई समुदाय हिन्दू धर्म को मानता है। मैतई समुदाय का मानना है कि 17वीं और 18वीं   सदी में उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाया था। मैतई समुदाय का कहना है कि वे सदियों से मणिपुर में रह  रहे हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि उनके समुदाय को आदिवासी का दर्जा दिया जाए। कहा जाता है कि मैतई राजाओं का साम्राज्य एक समय म्यांमार में छिंदविन नदी से लेकर वर्तमान में बांग्लादेश के सुरमा नदी तक फैला हुआ था। लेकिन भारत में शामिल होने के बाद राज्य के कुल नौ फीसदी भूभाग पर ही फिलहाल उनका निवास है। बताया जाता है कि इस समुदाय का बड़ा हिस्सा गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय को मानता है। जबकि 16 फीसदी सनामाही धर्म का अनुयायी है।

हालांकि मैतई  समुदाय का राज्य की आबादी और राजनीति में खासा प्रभाव है। इस समुदाय का राज्य की 60 फीसदी विधानसभा सीटों में से चालीस पर मैतई समुदाय का खासा प्रभाव देखा जा सकता है। इसी वजह से राज्य के आदिवासी  इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का विरोध कर रहा है। बता दें कि मणिपुर में 32 मान्यता प्राप्त जनजातियां है। नागा और कुकी को एसटी का दर्जा मिला हुआ है। जो ईसाई समुदाय से आते हैं। इन जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्थाएं 12 साल से मैतई समुदाय को एसटी में शामिल करने का विरोध कर रही हैं।

बताया जाता है कि मणिपुर में आदिवासियों और मैतई समुदाय के रहने के लिए अलग अलग प्रावधान हैं। इसके तहत पहाड़ी इलाकों में केवल आदिवासी ही बस सकते हैं। मैतई समुदाय को एसटी का दर्जा नहीं मिला है इसलिए वह पहाड़ी इलाकों में नहीं रह सकते हैं। वे घाटी के इलाकों में निवास करते हैं। जबकि, नागा और कुकी पहाड़ी इलाकों के अलावा घाटी में भी रहने की व्यवस्था है। कहा जा रहा है कि मैतई और आदिवासियों के बीच इसी वजह से जंग छिड़ी हुई है।      ये भी पढ़ें

 

 

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