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न्यूज़ीलैंड में 16 वर्ष से कम उम्र वालों पर सोशल मीडिया बैन की तैयारी

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किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य और ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर बढ़ती वैश्विक चिंता के बीच न्यूज़ीलैंड सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। देश की संसद में ऐसा विधेयक पेश किया गया है जो 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाएगा। इस प्रस्तावित कानून के तहत टेक कंपनियों को नए उपयोगकर्ताओं की आयु की अनिवार्य पुष्टि (Age Verification) करनी होगी, ताकि नाबालिगों को सोशल मीडिया से दूर रखा जा सके।

यह बिल नेशनल पार्टी की सांसद कैथरीन वेड (Catherine Wedd) द्वारा पेश किया गया है। यदि इसे संसद की मंज़ूरी मिलती है, तो न्यूज़ीलैंड उन कुछ देशों में शामिल हो जाएगा, जिन्होंने नाबालिगों के लिए सोशल मीडिया पर इतनी कड़ी पाबंदी लागू की है।

इस बिल के अनुसार, Instagram, TikTok, Facebook, Snapchat और X (पूर्व में Twitter) जैसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी नया उपयोगकर्ता 16 वर्ष या उससे अधिक उम्र का हो, तभी उसे खाता बनाने की अनुमति दी जाए। यह विधेयक टेक कंपनियों पर पहली बार कानूनी दायित्व डालता है कि वे उपयोगकर्ताओं की आयु की पुष्टि के लिए प्रभावी प्रणाली लागू करें।

यह पहल ऑस्ट्रेलिया के 2024 के उस कानून से प्रेरित बताई जा रही है, जिसमें 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर सोशल मीडिया प्रतिबंध लगाया गया था और पहचान सत्यापन (ID Verification) को अनिवार्य बनाया गया था। हालांकि यह बिल मई 2025 में पेश किया गया था, लेकिन अब हाल ही में इसे न्यूज़ीलैंड की ‘मेंबर बिल लॉटरी’ प्रक्रिया में चुने जाने के बाद संसद में बहस के लिए लाया गया है। इस प्रक्रिया में गैर-कैबिनेट सांसदों को भी विधेयक लाने का अवसर मिलता है।

प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन (Christopher Luxon) और अन्य शीर्ष नेताओं ने कहा है कि सोशल मीडिया का अनियंत्रित प्रभाव बच्चों और किशोरों के मानसिक विकास के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।

सरकार के अनुसार, सोशल मीडिया कंटेंट से जुड़ी डिप्रेशन, चिंता और आत्मसम्मान की कमी जैसी समस्याओं में वृद्धि। साइबरबुलिंग से होने वाला भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक नुकसान। फेक न्यूज़ और खतरनाक ऑनलाइन ट्रेंड्स, जिन्हें नाबालिग उपयोगकर्ता समझ नहीं पाते। बॉडी इमेज से जुड़ा दबाव, जिसे एल्गोरिदम आधारित कंटेंट और अधिक बढ़ा देता है। लक्सन ने कहा कि अगर डिजिटल स्पेस को नियंत्रित न किया गया तो यह “किशोर मस्तिष्कों के लिए गंभीर खतरा” साबित हो सकता है।

हालांकि इस प्रस्तावित कानून को लेकर नागरिक अधिकार समूहों ने तीखी आपत्ति जताई है। PILLAR नामक एडवोकेसी संगठन ने चेतावनी दी है कि अनिवार्य आयु सत्यापन उपयोगकर्ताओं की निजता का उल्लंघन कर सकता है और निजी डेटा टेक कंपनियों के पास पहुंचा सकता है। कानून के बावजूद तकनीकी उपायों से प्रतिबंध तोड़ना संभव रहेगा, जिससे यह अप्रभावी साबित हो सकता है। ऐसी नीतियां अत्यधिक नियमन और ऑनलाइन सेंसरशिप का रास्ता खोल सकती हैं।

PILLAR के कार्यकारी निदेशक नाथन सियूली (Nathan Seiuli) ने इस कदम को “आलसी नीति निर्माण (lazy policymaking)” बताया और कहा कि सरकार को प्रतिबंधों के बजाय शिक्षा, डिजिटल साक्षरता और अभिभावकीय भागीदारी पर ध्यान देना चाहिए।

न्यूज़ीलैंड में यह बहस अब दो ध्रुवों में बंट चुकी है, एक ओर वे लोग हैं जो बच्चों की डिजिटल सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा को प्राथमिकता देना चाहते हैं, और दूसरी ओर वे जो ऑनलाइन स्वतंत्रता और गोपनीयता के हनन से चिंतित हैं।

अगर यह कानून पारित होता है, तो यह न केवल न्यूज़ीलैंड बल्कि पूरी दुनिया के लिए सोशल मीडिया नियमन का एक नया मॉडल पेश करेगा जो यह सवाल उठाएगा कि क्या बच्चों की सुरक्षा के लिए डिजिटल स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना उचित है या नहीं।

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