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पहलगाम आतंकी हमले के पिछे खुद पाकिस्तानी आर्मी चीफ; पाकिस्तानी पूर्व मेजर का भयानक दावा!

यहां तक कह दिया कि यह एक "फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन" था—यानी हमला खुद करवाकर आरोप दूसरे पर थोपना।

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जम्मू-कश्मीर के सुरम्य पहलगाम में हुए हालिया इस्लामी आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव की लहर आई है। इस खूनी वारदात ने जहां कश्मीर के पर्यटन और अमन के माहौल को दहला दिया, वहीं अब इस हमले की गूंज इस्लामाबाद की सैन्य गलियों तक जा पहुंची है। पाकिस्तान सेना के पूर्व मेजर और रणनीतिक विश्लेषक आदिल रज़ा ने जो दावा किया है, वह न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि पाकिस्तान की सैन्य साख पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।

आदिल रज़ा ने आरोप लगाया है कि यह हमला पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा था। रज़ा के मुताबिक, मुनीर भलीभांति जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु संतुलन है और भारत बड़ा युद्ध नहीं छेड़ेगा। लेकिन सीमित कार्रवाई की संभावना अवश्य है। ऐसे में पहलगाम जैसे आतंकी हमले का उद्देश्य पाकिस्तान में भारत विरोधी नैरेटिव को हवा देना और कश्मीर के नाम पर जनता को भावनात्मक रूप से एकजुट करना था।

रज़ा ने यहां तक कह दिया कि यह एक “फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन” था—यानी पाकिस्तान भारत को खुद पर हमला करने के लिए मजबूर करवाकर विक्टीम कार्ड खेलना चाहता है, जिससे पाकिस्तानी आर्मी के खिलाफ पाकिस्तान में पनपता असंतोष काम हो जाए। उन्होंने याद दिलाया कि पुलवामा हमले के समय असीम मुनीर ISI प्रमुख थे और अब पहलगाम के समय वे सेना प्रमुख हैं। उनके अनुसार, इन दोनों घटनाओं में उनकी भूमिका पाकिस्तानी खुफिया तंत्र के कई स्रोतों ने भी स्वीकार की है।

इतना ही नहीं, आदिल रज़ा ने जनरल मुनीर के हालिया इस्लामाबाद भाषण की ओर भी इशारा किया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर हिंदू-विरोधी टिप्पणी की थी। रज़ा का कहना है कि उस भाषण के तुरंत बाद पहलगाम की घटना का होना यह दर्शाता है कि इस पूरे सिलसिले में धार्मिक आधार पर हिंसा को भड़काने का उद्देश्य निहित था। उन्होंने इस व्यवहार को “मानसिक रूप से असंतुलित व्यक्ति की कार्यशैली” करार दिया और दावा किया कि मुनीर इमरान खान की लोकप्रियता से घबराए हुए हैं, इसलिए ऐसी साजिशें रचकर जनता की सहानुभूति बटोरना चाहते हैं।

यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान की सेना के भीतर से इस तरह की असहज सच्चाइयों की गूंज सुनाई दी हो, लेकिन इस बार मसला न सिर्फ कश्मीर की शांति का है बल्कि भारत-पाक के रिश्तों की नई खाई का भी। ऐसे में आदिल रज़ा के इन बयानों को महज ‘विवादास्पद’ कहकर टाल देना आसान है, लेकिन अगर इनमें ज़रा भी सच्चाई है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गंभीरता से इसकी जांच की मांग करनी चाहिए।

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