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‘शर्मा’ नाम लगाकर भारत में दस साल से रह रहा था पाकिस्तानी परिवार!

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फर्जी पहचान, फर्जी नाम, फर्जी प्रमाणपत्रों के साथ कर्नाटक के बंगलुरु में दस साल से रह रहे पाकिस्तानी परिवार को रविवार (29 सितंबर ) को भारतीय एजेंसियों ने गिरफ्तार कर लिया। आरोपियों की पहचान राशिद अली सिद्दीकी (48), उनकी पत्नी आयशा (38) और उनके माता-पिता हनीफ मोहम्मद (73) और रूबीना (61) के रूप में हुई है। यह पाकिस्तानी परिवार राजपुरा गांव में शंकर शर्मा, आशा रानी, ​​राम बाबू शर्मा और रानी शर्मा के नाम से रह रहा था।

चेन्नई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दो पाकिस्तानियों की गिरफ्तारी के बाद खुफिया कर्मियों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर छापेमारी की गई। यह छापेमारी बेंगलुरु के बाहरी इलाके जगानी में हुई। इमिग्रेशन अधिकारियों ने देखा कि ढाका से चेन्नई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे प्रवासी ने नकली पासपोर्ट का उपयोग कर रहा था, थोड़ी पूछताछ से यह पता चला की वो पाकिस्तानी नागरिक है। जांच में पता चला कि वह आरोपी सिद्दीकी का रिश्तेदार था। पुलिस पूछताछ के लिए अधिकारी राशिद अली सिद्दीकी के पास पहुंची।

सिद्दीकी परिवार आवास छोड़ने के लिए पैकिंग कर रहा था जब पुलिस की एक टीम उन्हें हिरासत में लेने के लिए पहुंची। जब पूछताछ की गई तो सिद्दीकी ने स्वीकार किया कि वह 2018 से बेंगलुरु में रह रहा है। उन्होंने हिंदू नाम वाले परिवार के भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड भी दिखाए। पुलिस को घर की दीवारों पर “मेहदी फाउंडेशन इंटरनेशनल जाहसान-ए-यूनुस” लिखा हुआ मिला। उन्होंने आगे इस्लामी मौलवियों की छवियों की खोज निकली। 2014 में, बेंगलुरु जाने से पहले यह जोड़ा दिल्ली चला गया। परिवार पहले ढाका, बांग्लादेश में रहता था जहाँ सिद्दीकी और आयशा की शादी हुई ।

अधिकारियों के मुताबिक सिद्दीकी किसी स्लीपर सेल का सदस्य हो सकता है। वहीं सिद्दीकी ने कबूला है की, “यहां आने के बाद, मैं पाकिस्तान में अपने रिश्तेदारों को फोन करता था।” अधिकारियों के अनुसार इन घुसपैठों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 468 (धोखाधड़ी के इरादे से जालसाजी), 471 (झूठे दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का उपयोग करना) और 420 (धोखाधड़ी) के साथ-साथ पासपोर्ट अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।

पुलिस के अनुसार यह परिवार शुरू में दिल्ली में रहता था, जहां सिद्दीकी ‘मेहदी फाउंडेशन’ की ओर से तकरीरे करता था, तब उसने “शर्मा” परिवार के नाम से फर्जी पहचान, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट और आधार कार्ड बनवा लिया।

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इंडिया टुडे के अनुसार, पूछताछ के दौरान, सिद्दीकी ने कहा कि पाकिस्तान में धार्मिक नेताओं के उत्पीड़न के कारण उसे बांग्लादेश जाना पड़ा। प्रथम सूचना रिपोर्ट में कहा गया है कि उसने बांग्लादेश में सूफी मिशनरी के रूप में काम किया, जिसके लिए ‘मेहदी फाउंडेशन’ द्वारा वित्त पोषित किया गया। सिद्दीकी पर 2014 में बांग्लादेश में हमला हुआ था।परिणामस्वरूप, उसने भारत में ‘मेहदी फाउंडेशन’ के परवेज से संपर्क किया और अवैध रूप से देश में आ गया।

सिद्दीकी, उनकी पत्नी, ससुर और रिश्तेदार मोहम्मद यासीन उर्फ ​​कार्तिक शर्मा और ज़ैनबी नूर उर्फ ​​नेहा शर्मा बिचौलियों की मदद से पश्चिम बंगाल के मालदा के रास्ते बांग्लादेश से भारत आए। जब वह नेपाल का दौरा कर रहे थे तब स्थानीय लोगों, वसीम और अल्ताफ ने उनसे बेंगलुरु में प्रचार करने का अनुरोध किया, जिसके बाद वर्ष 2018 में यह लोग बंगलुरु में आए। एक तरफ ‘मेहदी फाउंडेशन’ ने उन्हें अलारा टीवी पर इस्लाम-प्रचार प्रसारित करने के लिए भुगतान किया, जबकि अल्ताफ ने किराया संभाला। इसके अलावा, उन्होंने ‘खाद्य सामग्री बेची’ और गैराज में तेल की सप्लाई का काम किया। उनके ससुर ने भी बेंगलुरु में बैंक खाते खोले थे। सिद्दीकी ने पुलिस को बताया कि उसे बांग्लादेश में उसके “आकाओं” ने “अपने नेता की धार्मिक शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए” बैंगलोर भेजा था।

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