प्रियंगु का उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भावप्रकाश, धन्वंतरी निघण्टु आदि में देखने को मिलता है। इन ग्रंथों में प्रियंगु को विभिन्न कल्पों जैसे पेस्ट, काढ़ा, तेल, घी और आसव के रूप में प्रयोग किया गया है। वाग्भट्ट और सुश्रुत के ग्रंथों में भी इसे कई रोगों के उपचार में शामिल किया गया है।
वर्तमान में प्रियंगु की चर्चा तीन प्रमुख वनस्पतियों- कैलिकार्पा मैक्रोफिला वाहल, एग्लैया रॉक्सबर्गियाना मिक और प्रूनस महालेब लिन के रूप में की जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम कैलिकारपा मैक्रोफिला वाहल है। अंग्रेज़ी में इसे सुगंधित चेरी या ब्यूटी बेरी कहा जाता है। भारत की विभिन्न भाषाओं में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
प्रियंगु का स्वाद तीखा, कड़वा और मधुर होता है। यह स्वभाव से शीतल, लघु और रूखा होता है और वात-पित्त दोषों को संतुलित करने वाला होता है। यह त्वचा की रंगत निखारने, घाव को भरने, उल्टी, जलन, पित्तजन्य बुखार, रक्तदोष, रक्तातिसार, खुजली, मुंहासे, विष और प्यास जैसी समस्याओं में लाभकारी होता है। इसके बीज और जड़ आमाशय की क्रियाविधि को उत्तेजित करने में मदद करते हैं और मूत्र संबंधी विकारों में उपयोगी सिद्ध होते हैं।
दांतों की बीमारियों के इलाज में भी प्रियंगु का उपयोग अत्यंत लाभकारी है। प्रियंगु, त्रिफला और नागरमोथा को मिलाकर तैयार किए गए चूर्ण को दांतों पर रगड़ने से शीताद (मसूड़ों से जुड़ा रोग) में राहत मिलती है।
यूटीआई की दिक्कतों का सामना कर रहे लोगों को प्रियंगु के पत्तों को पानी में भिगोकर उसका अर्क पीने से लाभ मिलता है। कठिन प्रसव को भी प्रियंगु आसान बना देता है। प्रियंगु की जड़ का पेस्ट नाभि के नीचे लगाने से प्रसव में कॉम्पलिकेशन कम होती है। आमवात या गठिया में इसके पत्ते, छाल, फूल और फल का लेप दर्द से राहत दिलाता है। प्रियंगु कुष्ठ रोग और हर्पिज जैसे चर्म रोगों में भी लाभकारी है।
इसके अलावा, कान और नाक से रक्तस्राव होने की स्थिति में लाल कमल, नील कमल का केसर, पृश्निपर्णी और फूलप्रियंगु से तैयार किए गए जल का सेवन लाभकारी होता है। प्रियंगु, सौवीराञ्जन और नागरमोथा के चूर्ण को मधु के साथ मिलाकर बच्चों को देने से उल्टी, पिपासा और अतिसार में लाभ होता है। यह विषनाशक गुणों से युक्त होता है, इसलिए कीटदंश या विषाक्तता के प्रभाव को कम करने में भी प्रियंगु अत्यंत उपयोगी है।
आयुर्वेद के अनुसार प्रियंगु के पत्ते, फूल, फल और जड़ सबसे अधिक औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। किसी भी रोग की स्थिति में इसका प्रयोग करने से पूर्व आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। सामान्यतः चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार इसका 1-2 ग्राम चूर्ण सेवन किया जा सकता है।
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