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Tuesday, December 9, 2025
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मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश!

इस मामले पर बात करते हुए माननीय बेंच ने अपनी बात को स्पष्ट किया की गुजारा भत्ता सभी शादी शुदा महिलाओं को लागू होता है चाहे वह किसी भी धर्म से आती हों।

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क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के क्षेत्र 125 के अनुसार शादीशुदा महिला अपने गुजारे के लिए पति से भत्ता अपेक्षित कर सकती है। इस बात का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति बी.वी.नागरत्न और न्यायमूर्ति अगस्टिन जॉर्ज मसीह इन्होंने एक मुस्लिम पुरुष की महिला को गुजारा भत्ता देने की विरोध में दायर की याचिका पर फैसला सुनाया।

न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा, हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर। इस मामले पर बात करते हुए माननीय बेंच ने अपनी बात को स्पष्ट किया की गुजारा भत्ता सभी शादी शुदा महिलाओं को लागू होता है चाहे वह किसी भी धर्म से आती हों।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह जोर देकर कहा कि यह केवल महिलाओं के भरण पोषण की बात नहीं किंतु यह उनका मौलिक अधिकार भी है। यह अधिकार धार्मिक सीमाओं से परे है, सभी विवाहित महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और वित्तीय सुरक्षा के सिद्धांत को मजबूत करता है।

राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष रेखा शर्मा ने न्यायालय के इस निर्णय का खुशी से स्वागत किया है उन्होंने कहा है की सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए एक मिसाल सिद्ध होगा, सीआरपीसी क्षेत्र 125 के अनुसार सभी महिलाओं को मिलने वाले इस गुजारा भत्ते का मार्ग खुला करना स्त्री पुरुष समानता और महिलाओं के न्याय के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

दरअसल मोहम्मद अब्दुल समद नाम के व्यक्ति ने तेलंगाना हाई कोर्ट में अपनी तलाकशुदा पत्नी को मासिक 20,000 रूपये की गुजारा भत्ता देने के खिलाफ याचिका दायर की थी, परंतु हाईकोर्ट ने इस बदलकर मात्र 10,000 कर दिया था। इसके बाद मोहम्मद अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

मोहम्मद अब्दुल समद के वकील ने दावा किया कि मुस्लिम वुमन( प्रोटक्शन ऑफ राइट्स एंड डायवोर्स) एक्ट 1986 के तहत मुस्लिम महिला को सीआरपीसी क्षेत्र 125 से ज्यादा अधिकार मिले हैं। मोहम्मद के वकील ने अधिनियम का संदर्भ देते हुए यह तर्क भी दिया था कि, एक विशेष कानून एक सामान्य कानून पर हावी होता है।

याद दिला दें कि, मुस्लिम वूमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स एंड डायवोर्स) एक्ट 1986 दरसल शाह बानो केस के निर्णय के बाद मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण और समुदाय के मामलों में हस्तक्षेप से बचने के लिए बनाया गया था।

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