28 C
Mumbai
Friday, September 20, 2024
होमदेश दुनियापटोला रेशम का पुराना इतिहास, साल्वे परिवार ने 900 साल पुरानी विरासत...

पटोला रेशम का पुराना इतिहास, साल्वे परिवार ने 900 साल पुरानी विरासत को जिंदा रखा

पटोला साड़ियों का प्राचीन शिल्प 11 वीं शताब्दी का है

Google News Follow

Related

साड़ी भारतीय संस्कृति की पहचान है। साड़ी एकमात्र ऐसा परिधान है जो पांरपरिक और आधुनिक फैशन में फिट बैठता है। ऐसी ही एक प्रसिद्ध साड़ी के बारें में आपको बता रहे है जिसका नाम है पटोला, पटोला साड़ियों का प्राचीन शिल्प 11 वीं शताब्दी का है और पाटन में साल्वे परिवार पीढ़ियों से शिल्पकला की अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहा है। सोलंकी वंश के राजा कुमारपाल के पास पटोला बुनकरों के लगभग 700 परिवार थे, जो जालना से उत्तरी गुजरात के पाटन में बसने के लिए चले गए थे, और साल्वे उनमें से एक हैं। पटोला साड़ी की खास बात यही है कि यह हाथ से बनाई जाती है। वहीं गुजरात में साल्वे परिवार पटोला साड़ियों की 900 साल पुरानी विरासत को जिंदा रखे हुए है। पटोला साड़ियों को खास राजा और उनकी महारानियों के लिए बनाया जाता था। 

साल्वे परिवार के सबसे बड़े सदस्यों में से एक, 68 वर्षीय भरत साल्वे ने पटोला रेशम का इतिहास बताया। भरत साल्वे ने कहा कि यह पटोला करघा यहां 11वीं सदी में आया था, जब राजा हर दिन अपनी पूजा के लिए पटोला का इस्तेमाल करना चाहते थे, वह जैन थे। वहीं अब भी पटोला में पारंपरिक प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता हैं। साड़ी पूरी तरह से प्रिंटेड होती है और धागे को  इतनी बारीकी से बंधा और रंगा जाता है जिससे एक डिजाइन बन जाए। पटोला साड़ी की खासियत इस बात से मान सकते हैं कि एक असली पटोला साड़ी की कीमत 1.5 लाख रुपये से शुरू होती है और इसकी कीमत 6 लाख रुपये तक हो सकती है। 

परिवार के अन्य सदस्य रोहित साल्वे ने कहा कि एक साड़ी तैयार करने में लगभग छह महीने और लगभग 18-19 प्रक्रियाएँ लगती हैं। हम बेंगलुरु से कच्चा रेशम खरीदते हैं और फिर रेशम के धागों को सेट किया जाता है फिर नरम करने जैसी कई प्रक्रियाएं की जाती हैं। साड़ी पर औसतन 4-5 रंगों का उपयोग किया जाता है और साड़ी तैयार करते समय रंगों की संख्या और डिजाइनों की गहनता पर निर्भर करता है। एक साड़ी तैयार करने के लिए 4-5 श्रमिकों की आवश्यकता होती है। बुनकर सदियों पुराने हैं और ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इस मानव निर्मित श्रम की जगह ले सके। वहीं राहुल ने कहा कि उन्होंने आर्किटेक्ट में ग्रेजुएशन किया है लेकिन अपना अच्छा खासा करियर छोड़कर परिवार की परंपरा को अपनाया है। उनके मुताबिक 28वीं पीढ़ी है जो पटोला साड़ी बुनाई में है। 70 वर्षीय रोहित साल्वे से लेकर 37 वर्षीय सावन साल्वे तक, चार महिलाओं सहित साल्वे परिवार के नौ सदस्य इस दुर्लभ शिल्प को संरक्षित करने के लिए अपना प्रयास जारी रखते हैं। 

बता दें कि गुजरात का प्रसिद्ध पटोला हथकरघा हाल ही में तब सुर्खियों में आया, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इंडोनेशिया के बाली में G20 बैठक के दौरान साल्वे परिवार द्वारा बनाई गई इतालवी प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी को पटोला साड़ी भेंट की। साल्वे ने कहा, ‘जब प्रधानमंत्री ग्रामीण गुजरात को वैश्विक स्तर पर ले जाते हैं और हमारे शिल्प को विदेशी सरकारों के प्रमुखों को उपहार में देते हैं तो स्वाभाविक रूप से हमारे लिए बहुत गर्व का क्षण बन जाता है। 

ये भी देखें 

कश्मीर के ‘दुबजान’ में बना है खूबसूरत गर्म पानी का झरना

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,379फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
178,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें