तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने शनिवार को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि चीन को तिब्बती लोगों की मजबूत भावना का एहसास है और वह हमेशा चीनी सरकार के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने इच्छा जताई, साथ ही स्पष्ट किया कि वह चीन से तिब्बत की आजादी की मांग नहीं कर रहे हैं।
दलाई लामा ने कहा कि, ‘हमने कई वर्षों से निर्णय लिया है कि हम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा बने रहेंगे, अब चीन बदल रहा है। चीनी, आधिकारिक या अनौपचारिक रूप से, मुझसे संपर्क करना चाहते हैं।’ बता दें कि दलाई लामा तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता हैं।
अक्टूबर 1950 में, हजारों चीनी सैनिकों ने तिब्बत में मार्च किया और इसे चीन का हिस्सा घोषित कर दिया था। अगले कुछ वर्षों में, बीजिंग ने तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली लेकिन उसके शासन के प्रति प्रतिरोध फैलने लगा। हालांकि जैसे-जैसे स्थिति तेजी से अस्थिर होती गई, दलाई लामा 1959 में अपनी जन्म भूमि से भागकर पड़ोसी भारत में चले गए।
इसके बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें राजनीतिक शरण दी और वह तब से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मैक्लोडगंज क्षेत्र में रह रहे हैं। वहीं चीन ने अतीत में दलाई लामा पर ‘अलगाववादी’ गतिविधियों में शामिल होने और तिब्बत को विभाजित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है और उन्हें एक विभाजनकारी व्यक्ति मानता आया है।
दलाई लामा की ये टिप्पणी उस वक्त आई है, जब तमाम रिपोर्ट्स में कहा गया है, कि अगले दलाई लामा की तलाश चीन कर रहा है और चीन ये साफ भी कर चुका है, कि अगला दलाई लामा चीन का होगा। दलाई लामा ने कहा, कि “वास्तव में, चीन ऐतिहासिक रूप से एक बौद्ध देश रहा है, जैसा कि जब मैंने उस भूमि का दौरा किया था, तो मैंने कई मंदिरों और मठों को देखा था।”
तिब्बती आध्यात्मिक नेता का लद्दाख रवाना होने से पहले दो दिन दिल्ली में रुकने का कार्यक्रम है। 6 जुलाई को अपने जन्मदिन पर, उन्होंने चार मिनट का एक वीडियो संदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा, “मैं यह जीवन जो मेरे पास है उसे अपनी सर्वोत्तम क्षमता से असीमित संवेदनशील प्राणियों की मदद करने के लिए समर्पित करता हूं, मैं दूसरों को जितना हो सके उतना लाभ पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हूं।”
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