ट्रंप को अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अगर हम कहें भी तो हमें ये भूलना नहीं चाहिए की ये उनकी दूसरी टर्म है। अपनी पहली ही टर्म में घी निकालने के लिए टेढ़ी उंगली लेकर घूमने वाले डोनाल्ड ट्रंप इस बार घी का पैकेट फाड़कर ही मानेंगे ऐसा लग रहा है। वो सिर्फ घी पैकेट फाड़ेंगे या डेमोक्रेटस की… किस्मत?
20 जनवरी को अमेरिका के 47 वे राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेते ही डोनाल्ड ट्रंप ने भरभराकर आदेश निकाले। इनमें से कई निर्णय तो ऐसे थे की जो रचाने के लिए जो बाइडेन, कमला हैरिस और ओबामा को चार साल लगे थे, उसे हटाने के लिए ट्रंप को मात्र २ घंटे लगे। डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे पहले जो बाइडेन के कार्यकाल में लिए 78 विघाताक निर्णयों को रद्द किया ऐसा करने की मंशा साफ़ थी, डोनाल्ड ट्रंप नहीं चाहते थे ऐसे निर्णय जो कल को उनके ही रस्ते का कांटा बने उन्हें पालापोसा जाए।
ट्रंप ने बाइडेन दौर में झूठे केसेस या जोर जबरदस्ती के केसेस में फंसाए गए 1500 लोगो को क्षमादान दिया है। अगर अमेरिका का क्षमादान का पिछला चैप्टर ये था, की प्रेजिडेंट बायडन ने अपने ही बेटे को सभी मामलों में क्षमादान दिया था। जिसमें नाबालिग लड़कियों से यौन संबंध, ड्रग्स का इस्तेमाल, और देशद्रोह के मामले तक शामिल है। ट्रंप के क्षमादान में ये बात भी सच है की इसमें ज्यादातर क्षमादान पाने वाले 6 जनवरी को व्हाइट हाउस पर मोर्चा ले जाने वालों में से है।
ट्रंप ने अमेरिका में नागरिकता का डिफेनेशन बदलकर इसे जन्म के साथ अधिकार देने से मना किया है। अर्थात अगर किसी का जन्म अमेरिका में हुआ तो अब उसे अमेरिकन नागरिक नहीं कह सकेंगे।
इतना ही नहीं ट्रंप ने अमेरिका के 2006 के ड्रिल बेबी ड्रिल इस स्लोगन को दोहराते हुए तेल कंपनियों पर लगी पाबंदियां हटा दी है। साथ ही अमेरिका में बाइडन की इलेक्ट्रिक गाड़ियों की जिद को साइड लाइन करते हुए ट्रंप ने तेल से चलने वाली गाड़ियों को हरी झंडी दिखाई है। ट्रंप ने अमेरिकन्स को चुनाव से पहले आश्वासन दिया था कि बढ़ते बिजली के दामों को सीधा आधा किया जा सकता है जो कि बाइडन प्रशासन की जिद के कारण मुमकिन नहीं हो पा रहा, लेकीन ट्रंप जैसे ही सत्ता में लौटे उन्होंने पेरिस क्लाइमेट अग्रिमेंट से बाहर निकलने का फैसला लिया, साथ ही अपने देश में फॉसिल फ्यूल के उत्पादन को बढ़ोतरी देने के निर्णय लिए। इससे अमेरिकन लोगों के बिजली, गॅस, पेट्रोल के दाम आधे तक आ सकते है।
ट्रंप ने एक और महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए WHO को लाथ मारी। ट्रंप और WHO के बीच की 2020 की तू-तू में-में कौन नहीं जानता, जो नहीं जानते उनको बस इतना बता दूं की दुनिया भर में कोविड महामारी से इतने लोगों को मृत्यु नहीं होती अगर WHO के अध्यक्ष ट्रेडोस घबरेसेस चीन के बचाव में झूठ नहीं बोलते की कोविड कोई महामारी इतना भीषण रूप धारण करें इससे पहले काफी कुछ किया जा सकता था। WHO को सजा के तौर पर ट्रंप ने उन्हें अपना बोरिया बिस्तरा उठाने के लिए कहा था। लेकीन तब तक ट्रंप चुनाव हार गए और WHO को बाइडेन ने और ताकद दी। यानि WHO का सबसे बड़ा दानी सदस्य अब सदस्य नहीं रहा, तो वो करोडो डॉलर्स देगा भी नहीं। अमेरिकी चुनाव के सबसे बड़े मुद्दों में शामिल मुद्दा है अवैध अप्रवासियों का, जिसपर डायरेक्ट एक्शन का निर्णय लेते हुए ट्रम्प ने अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में राष्ट्रीय इमरजेंसी घोषित की है। जिसके तहत अमेरिका से अवैध घुसपैठों को देश से बाहर निकाला जाएगा। इसमें बड़ी बात यही है की अमेरिका इन घुसपैठ करने वालों को बाहर निकालने के लिए 10 अरब अमेरिकी डॉलर्स खर्च करेगा। और सबसे महत्वपूर्ण निर्णय मतलब अमेरिका में गवर्मेंट सेंसरशिप को हटाया गया।
ट्रंप के कुछ निर्णय ऐसे है की अगर उन्हें समझाने की कोशिश करें तो घंटो निकल जाए, ऐसा ही एक फैसला है ड्रग्स कार्टल को आतंकवादी घोषित करने का। दोस्तों अमेरिका में नशीली दवाओं की समस्या बहुत गंभीर है, सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 2021 में 106,000 से ज़्यादा अमेरिकन्स ड्रग ओवरडोज़ से मरे। इनमें फ़ेंटेनाइल जैसे ओपिओइड के सेवन करने वाले सबसे ज्यादा थे। अमेरिका में नशे के सेवन से लाखों लोग प्रभावित होते हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवा, कानून प्रवर्तन और सामाजिक व्यवस्था पर सब पर दबाव पड़ता है। वहीं ट्रंप ने कहा सरकार के १ लाख के आंकड़े झूठे है, असल में मरने वालों की संख्या ढाई से तीन गुना है, जिसके कारण ड्रग्स कार्टल को आतंकी घोषित किया गया है।
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पिछले चार सालों में डाइवर्सिटी, इक्विटी और इन्क्लूसिविटी के नाम पर LGBTQ का जो ड्रामा बाइडेन प्रशासन ने प्रमोट किया था, उसे एक ही झटके में ख़ारिज करते हुए ट्रंप ने अमेरिका में पुरुष और स्त्री इन दो ही गेंडेर्स को मान्यता दी है।
ट्रंप के इन सभी निर्णयों की चर्चा हम इसलिए कर रहें है, ताकि लोगों को पता चले की वॉकिजम किसी भी देश का भला नहीं कर सकता, डाइवर्सिटी और इन्क्लुजिविटी के नाम पर घुसपैठियों को बर्दाश्त करना मुर्खो के दिमाग की उपज है, इससे किसी भी देश का भला नहीं हो सकता। दुनिया को स्वार्थ रहित कठीण लेकिन मजबूत निर्णय लेने वाले मोदी और ट्रंप जैसे लोगों की जरूरत होती है। हर बुरे फैसले से थोड़ा बहुत अच्छा भी होता है, वैसे ही अच्छे फैसलों से कुछ बुरा होना भी संभव होता है।ट्रंप के लिए ये अच्छे फैसले कितने अच्छे कितने बुरे ये तो वक्त बताएगा।