औचक निरीक्षण में खुली पोल: दो दिन पूर्व जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी संजय मिश्रा ने महसी क्षेत्र के मदरसा दारुल उलूम अशरफिया हस्मतुरर्जा का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान जब उन्होंने छात्रों की हिंदी कॉपियां देखीं, तो पाया कि कक्षा सात के एक छात्र ने सप्ताह के सातों दिनों के नाम गलत तरीके से लिखे थे।
शिक्षक ने गलती पर सही का निशान लगाया: चौंकाने वाली बात यह थी कि छात्र की कॉपी पर मौलवी साहब — जो उसी मदरसे में शिक्षक हैं — ने गलत उत्तरों के बावजूद “सही” का निशान लगा दिया था। इस पर अधिकारी ने मौलवी से सीधे सवाल किया कि क्या “बृहस्पतिवार” सही लिखा गया है। मौलवी साहब इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाए और नजरें चुराने लगे।
शिक्षक की भी जानकारी निकली गलत: कई बार पूछने के बाद जब मौलवी साहब ने कॉपी पर उंगली रखते हुए बताया कि “मात्रा इधर से होनी चाहिए”, तो अधिकारी ने पाया कि मौलवी द्वारा सुझाया गया सुधार भी गलत था। यानी शिक्षक न केवल छात्र की गलती को पकड़ नहीं सके, बल्कि खुद भी उस शब्द को ठीक से नहीं लिख सके।
92 हजार वेतन पर गुणवत्ता सवालों में: जब अधिकारी ने शिक्षक से उनका वेतन पूछा, तो मौलवी ने बताया कि वे 92,000 रुपये मासिक वेतन पाते हैं। इस पर अधिकारी भड़क गए और टिप्पणी की कि, “इससे ज्यादा खराब स्थिति और क्या हो सकती है कि एक कक्षा सात का छात्र सप्ताह के सातों दिनों के नाम भी नहीं जानता और शिक्षक भी अनजान है।”
जारी की गई चेतावनी: जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए शिक्षक को चेतावनी जारी की है। उन्होंने कहा कि मदरसों में गुणवत्ता युक्त शिक्षा अनिवार्य है और यदि लापरवाही पाई गई तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
प्रशासन ने जताई चिंता: इस घटना ने शिक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, खासकर उन शिक्षण संस्थानों पर जो सरकार द्वारा वित्तपोषित होते हैं। प्रशासन अब अन्य मदरसों की भी जांच की योजना बना रहा है ताकि शिक्षण की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके।
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