अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार, हिंसा और असहिष्णुता पर गहरी चिंता जताते हुए ट्रंप प्रशासन से इस्लामाबाद के खिलाफ कठोर कदम उठाने की अपील की है। आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता के ‘व्यवस्थित, निरंतर और गंभीर उल्लंघन’ का हवाला देते हुए इस देश को एक बार फिर ‘विशेष चिंता का देश (सीपीसी)’ के रूप में नामित करने की सिफारिश की है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि “धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूप से ईसाई, हिंदू, और शिया और अहमदिया मुस्लिम, पाकिस्तान के कठोर ईशनिंदा कानून के तहत उत्पीड़न का मुख्य शिकार बने रहे।” आयोग का कहना है कि इन समुदायों को न केवल कानूनी अन्याय झेलना पड़ रहा है, बल्कि वे पुलिस की बर्बरता और भीड़ की हिंसा के भी शिकार बनते हैं। इन अपराधों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को शायद ही कभी न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है।
आयोग ने अमेरिकी सरकार से अपील की है कि वह “पाकिस्तानी अधिकारियों और एजेंसियों पर प्रतिबंध लगाए जो उस देश में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं।” साथ ही, ऐसे अधिकारियों की अमेरिका में संपत्ति ज़ब्त करने और उनके अमेरिका प्रवेश पर रोक लगाने की भी सिफारिश की गई है।
यूएससीआईआरएफ ने यह भी कहा कि पाकिस्तान के लिए पूर्व में दी गई रणनीतिक छूटों को हटाया जाए ताकि सीपीसी के रूप में नामित होने के बाद आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जा सके। पहले अमेरिका की ओर से यह छूट इस आधार पर दी गई थी कि “रचनात्मक संबंध बनाए रखना आवश्यक है।”
रिपोर्ट में ईशनिंदा कानूनों को धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का प्रमुख कारण बताया गया है। आयोग ने मांग की है कि अमेरिका, पाकिस्तान सरकार के साथ एक बाध्यकारी समझौता करे, जिसके अंतर्गत इस्लामाबाद को ईशनिंदा कानूनों को निरस्त करने और ऐसे कानूनों के तहत कैद व्यक्तियों को रिहा करने की दिशा में कदम उठाने होंगे।
यूएससीआईआरएफ के अनुसार, जब तक इन कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता, तब तक आरोपियों को जमानत का अधिकार दिया जाना चाहिए और “झूठे आरोप लगाने वालों पर देश की दंड संहिता के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए।”
आयोग ने यह भी कहा कि पाकिस्तान को उन सभी लोगों को भी जवाबदेह बनाना चाहिए “जो हिंसा, टारगेट किलिंग, जबरन धर्मांतरण और धर्म आधारित अन्य अपराधों में भाग लेते हैं या उन्हें उकसाते हैं।”
इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि पाकिस्तान की अल्पसंख्यक ईसाई और हिंदू महिलाओं तथा लड़कियों का जबरन धर्मांतरण कर विवाह कराया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, “स्थानीय अधिकारी जबरन विवाह को खारिज करने से बचते हैं और अदालतें भी अक्सर इन्हें वैध ठहरा देती हैं।”
अमेरिकी आयोग की यह रिपोर्ट पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों की स्थिति पर एक गंभीर वैश्विक संदेश मानी जा रही है, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हस्तक्षेप की दिशा में सोचने के लिए मजबूर कर सकती है।
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