टाइप 2 डायबिटीज से जूझ रहे मरीजों के लिए एक अहम चेतावनी सामने आई है। अमेरिका के एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि इस बीमारी में आमतौर पर दी जाने वाली सस्ती और प्रचलित दवा ‘ग्लिपिजाइड’ हृदय स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। यह शोध अमेरिका के प्रतिष्ठित मास जनरल ब्रिघम के वैज्ञानिकों ने किया है और इसके नतीजे ‘जामा नेटवर्क ओपन’ नामक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन में करीब 48,165 टाइप 2 डायबिटीज मरीजों का डेटा विश्लेषण किया गया, जो अमेरिका के 10 अलग-अलग अस्पतालों में इलाज करा रहे थे। इन मरीजों को मेटफॉर्मिन के साथ या तो सल्फोनीलुरिया समूह की दवाएं दी जा रही थीं (जिसमें ग्लिपिजाइड शामिल है) या डीपीपी-4 इनहिबिटर जैसे आधुनिक विकल्प।
शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्लिपिजाइड का सेवन करने वाले मरीजों में अगले पांच वर्षों में दिल की बीमारियों का खतरा उन मरीजों की तुलना में 13 प्रतिशत ज्यादा था, जो डीपीपी-4 इनहिबिटर ले रहे थे। इसमें दिल का दौरा, हार्ट फेल्योर, स्ट्रोक और कार्डियक अरेस्ट जैसी स्थितियां शामिल थीं।
ब्रिघम एंड विमेन्स हॉस्पिटल के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग के प्रमुख लेखक डॉ. अलेक्जेंडर टर्चिन ने कहा,
“सल्फोनीलुरिया दवाएं जैसे ग्लिपिजाइड किफायती और आमतौर पर दी जाने वाली हैं, लेकिन इनके दीर्घकालिक प्रभावों की जानकारी सीमित है। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि ग्लिपिजाइड हृदय रोग के खतरे को बढ़ा सकती है, जबकि डीपीपी-4 इनहिबिटर अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित हैं।”
शोध में यह भी सामने आया कि ग्लिमेपिराइड और ग्लायबुराइड जैसी अन्य सल्फोनीलुरिया दवाओं के प्रभाव उतने स्पष्ट नहीं थे, लेकिन ग्लिपिजाइड के प्रति संकेत निश्चित रूप से चिंताजनक हैं।
डॉक्टर टर्चिन और उनकी टीम ने यह भी सुझाव दिया कि इस विषय में आगे विस्तृत शोध की आवश्यकता है ताकि यह समझा जा सके कि आखिर ग्लिपिजाइड दिल पर ज्यादा नकारात्मक असर क्यों डालती है।
यह अध्ययन खासतौर पर उन मरीजों के लिए जरूरी है जो लंबे समय से डायबिटीज से पीड़ित हैं और दवा का चुनाव करते समय हृदय जोखिम की संभावना को नहीं समझते। शोधकर्ताओं की सिफारिश है कि मरीजों और डॉक्टरों को दवा का चयन करते समय न केवल उसकी कीमत, बल्कि उसके हृदय पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए।
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