पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 1 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की मंजूरी मिलने के बाद कांग्रेस पार्टी और पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए भ्रामक आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि भारत ने पाकिस्तान को दिए गए कर्ज के खिलाफ वोट नहीं दिया और ‘पीछे हट गया’। जबकि सच यह है कि IMF की प्रक्रिया में किसी प्रस्ताव के खिलाफ वोट देने का विकल्प होता ही नहीं।
IMF की नियमावली के अनुसार, सदस्य देशों के पास किसी प्रस्ताव पर केवल दो ही विकल्प होते हैं—या तो पक्ष में वोट दें या फिर मतदान से दूरी (abstain) बनाएं। विरोध में मतदान करने की कोई सुविधा नहीं होती। भारत ने इसी प्रक्रिया के तहत मतदान से दूरी बनाकर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज की।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने शुक्रवार (9 मई) को एक्स पर पोस्ट किया, “29 अप्रैल को कांग्रेस ने मांग की थी कि भारत पाकिस्तान को IMF से दिए जाने वाले कर्ज के खिलाफ वोट दे। लेकिन भारत ने सिर्फ मतदान से दूरी बनाई। मोदी सरकार पीछे हट गई। एक सशक्त ‘ना’ एक बड़ा संदेश होता।” इसी तरह पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने भी पोस्ट किया, “भारत ने IMF की बैठक में पाकिस्तान को कर्ज दिए जाने पर मतदान से दूरी बनाई… सवाल है कि जब दांव इतने बड़े थे तो हम इस्लामाबाद के खिलाफ वोट क्यों नहीं दे सके?”
वास्तव में भारत ने IMF की कार्यकारी बोर्ड बैठक में पाकिस्तान के कर्ज अनुरोध का कड़ा विरोध किया। भारत ने स्पष्ट कहा कि पाकिस्तान का रिकॉर्ड बेहद खराब है और उसे मिलने वाला धन सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस्तेमाल हो सकता है।
भारत ने बोर्ड के सामने रखे अपने वक्तव्य में कहा, “पाकिस्तान लंबे समय से IMF का कर्जदार रहा है, लेकिन उसका रिकॉर्ड बेहद कमजोर है। उसने IMF की शर्तों को न तो लागू किया है और न ही उनका पालन किया है।” भारत ने यह भी याद दिलाया कि 1989 से लेकर अब तक के 35 वर्षों में पाकिस्तान को 28 वर्षों तक IMF से फंड मिला है, जिनमें पिछले 5 वर्षों में चार बार सहायता दी गई, लेकिन कोई ठोस सुधार नहीं हुआ।
भारत ने यह भी कहा कि पाकिस्तान की आंतरिक नीतियों और अर्थव्यवस्था में सेना की दखलअंदाज़ी के चलते सुधार की कोई वास्तविक संभावना नहीं है। IMF के 25 सदस्यीय कार्यकारी बोर्ड में सभी सदस्य देशों का एक समान वोटिंग अधिकार नहीं होता। वोटिंग पावर देश की आर्थिक क्षमता के अनुपात में तय होता है। जैसे, अमेरिका का वोटिंग पावर अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक है।
भारत द्वारा ‘अभ्यस्त रहने’ (abstain) का निर्णय उस विरोध का हिस्सा था जो उसने औपचारिक तौर पर बोर्ड के सामने रखा। यह न तो कमजोरी का प्रतीक है और न ही राजनीतिक समझौता। यह अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत भारत का एक संतुलित और स्पष्ट विरोध था।
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